सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सरकार से जम्मू-कश्मीर में सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए कहा हो, लेकिन इसके साथ ही इसने सरकार द्वारा रखे गए राज्य में हिंसा के आँकड़ों को पाबंदी के पीछे ‘ठोस कारण’ भी माना है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने सरकार की ओर से जम्मू-कश्मीर में 1990 के बाद से मौत, आतंकवाद और हिंसा के हज़ारों मामलों का आँकड़ा पेश किया गया। अनुच्छेद 370 में फेरबदल के मामले में दायर की गई याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से ये तर्क रखे गए।
जम्मू-कश्मीर में पाबंदी के ख़िलाफ़ अलग-अलग कई याचिकाएँ दायर की गई हैं। इसी की काट के लिए सरकार ने अपने तर्क को सही साबित करने के लिए हिंसा के आँकड़ों का सहारा लिया। सरकार की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के. के. वेणुगोपाल ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में हिंसा से जुड़े आँकड़ों को धड़ाधड़ बताना शुरू किया ताकि वह यह साबित करें कि पाबंदी लगने से घाटी में ख़ूनी हिंसा रुकी है। उन्होंने यह भी साबित करने की कोशिश की कि आम कश्मीरियों के लिए सुविधाओं की कोई कमी नहीं है।
'द हिंदू' की रिपोर्ट के अनुसार, वेणुगोपाल ने मुख्य न्यायाधीन रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली बेंच से कहा कि 1990 से लेकर अब तक 71038 आतंकवादी घटनाओं में 41866 लोगों की जानें गईं। इसमें 14038 नागरिक, 5292 सुरक्षा कर्मी और 22536 आतंकवादी शामिल हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की बेंच में शामिल जस्टिस एस. ए. बोबडे ने कहा, 'भयावह स्थिति... ये ठोस कारण हैं... ये सुरक्षा से जुड़े मामले हैं।'
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 5 अगस्त के बाद से एक भी गोली नहीं चली है। इसी दौरान जस्टिस बोबडे ने पूरी जानकारी के साथ सरकार से हलफनामा देने को कहा। इसके साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए सरकार से सामान्य स्थिति बहाल करने को भी कहा गया। कोर्ट ने केंद्र सरकार और जम्मू-कश्मीर सरकार से इस मामले को सुलझा कर 30 सितंबर तक हलफनामा देने को कहा है। अब इस मामले में उसी दिन सुनवाई होगी।
नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेता व सांसद फ़ारूक़ अब्दुल्ला की नज़रबंदी के ख़िलाफ़ भी दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। अनुच्छेद 370 पर ही दायर एक अन्य याचिका के मामले में अदालत ने ग़ुलाम नबी आजाद को श्रीनगर, जम्मू, अनंतनाग और बारामुला जाने की अनुमति दे दी है।
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