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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से पूछा, मतदान का डेटा अपलोड करने में देरी क्यों?

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय चुनाव आयोग (ईसीआई) से कहा कि वो वोटिंग के 48 घंटे के अंदर मतदान केंद्रों का फाइनल प्रमाणित डेटा जारी न करने के सवाल का जवाब दे। सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में याचिका दायर कर कहा गया है कि लोकसभा चुनाव में हर चरण के मतदान के बाद हर बूथ के वोट प्रतिशत का डेटा चुनाव आयोग की साइट पर अपलोड नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि वो चुनाव आयोग को इस संबंध में निर्देश जारी करे।

याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई करते हुए भारत के चीफ जस्टिस (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने चुनाव आयोग के वकील अमित शर्मा से पूछा कि वेबसाइट पर मतदाता वोटिंग विवरण डालने में क्या परेशानी आ रही है।

कोर्ट रूम संवाद

  • सीजेआईः मिस्टर शर्मा, इसे वेबसाइट पर डालने में क्या कठिनाई है?
  • आयोग के वकीलः इसमें समय लगता है। हमें बहुत सारा डेटा इकट्ठा करना होगा।
  • सीजेआई बेंचः लेकिन हर मतदान अधिकारी शाम तक ऐप पर डेटा जमा करता है? इसलिए रिटर्निंग अधिकारी के पास दिन के अंत तक पूरे लोकसभा क्षेत्र का डेटा होता है।
  • आयोग वकीलः तुरंत नहीं।
  • सीजेआईः ठीक है, अगले दिन। (यानी अदालत का कहना था कि वो डेटा अगले दिन तो डाला जा सकता है।)

वकील की चुप्पी के बाद अदालत ने आयोग को एक सप्ताह के भीतर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। मामले की अगली सुनवाई 24 मई को होगी।
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अदालत में यह याचिका इसलिए दायर की गई कि लोकसभा चुनावों के पहले दो चरणों के बाद आयोग ने अंतिम मतदान प्रतिशत घोषित करने में जरूरत से ज्यादा समय लिया। और जब अंतिम डेटा आया तो उसमें मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई। अदालत को बताया गया कि 30 अप्रैल को प्रकाशित आंकड़ों में मतदान के दिन चुनाव आयोग द्वारा घोषित शुरुआती प्रतिशत की तुलना में अंतिम मतदाता मतदान में तेज वृद्धि (लगभग 5-6%) दिखाई गई है।

मतदान प्रतिशत की घोषणा में देरी की वजह से मतदाताओं और राजनीतिक दलों में ऐसे आंकड़ों की विश्वसनीयता को लेकर चिंता पैदा हो गई हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इस मामले में याचिका दायर की है। इस याचिका में आयोग को अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17 सी भाग- I (रिकॉर्ड किए गए वोटों का खाता) की स्कैन की गई, पढ़ी जाने वाली प्रतियां अपलोड करने के निर्देश देने की मांग की गई है।
एडीआर की याचिका में कहा गया है कि मौजूदा 2024 के चुनावों में हर चरण के मतदान के बाद डेटा अपलोड किया जाना चाहिए और मतदाता मतदान के निर्वाचन क्षेत्र और मतदान केंद्र-वार आंकड़े प्रतिशत के रूप में दिए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त, एडीआर ने फॉर्म 17सी के भाग- II का खुलासा करने की भी मांग की, जिसमें परिणामों को जमा करने के बाद उम्मीदवार-वार गिनती के नतीजे शामिल किए जाएं। यानी किसी लोकसभा क्षेत्र में किस प्रत्याशी का कितना वोट मिला।

एडीआर ने आरोप लगाया कि एकदम सही और निर्विवाद डेटा के आधार पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के जरिए चुनाव नतीजे घोषित करने में ईसीआई की ओर से कर्तव्य में लापरवाही की गई है। एडीआर ने अदालत को बताया कि अब तक, ईसीआई द्वारा 30 अप्रैल को प्रकाशित मतदाता आंकड़े पहले चरण के 11 दिन बाद और दूसरे चरण के 4 दिन बाद के थे।

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सुनवाई के दौरान एडीआर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि ईसीआई को डाले गए वोटों की पूर्ण संख्या का खुलासा करना चाहिए। ईसीआई के वकील अमित शर्मा ने याचिका का विरोध किया और एडीआर के अधिकार क्षेत्र पर भी सवाल उठाया। बता दें कि देशभर में ईवीएम के जरिए चुनाव कराए जाने को काफी लंबे समय से चिन्ता जताई जा रही है। 2024 के आम चुनाव में जब चुनाव आयोग ने अंतिम मतदान प्रतिशत जारी करने में जरूरत से ज्यादा देरी लगाई तो लोगों की चिन्ता और भी बढ़ गई। दिल्ली समेत देश के कई हिस्सों में ईवीएम की विश्वसनीयता को लेकर जन संगठन प्रदर्शन कर रहे हैं। लोगों का कहना है कि ईवीएम से चुनाव को खत्म करके वापस बैलेट पेपर पर चुनाव होने चाहिए। दुनिया के तमाम देशों में बैलेट पेपर से ही चुनाव होते हैं।

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क़मर वहीद नक़वी
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