सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्रीय चुनाव आयोग (ईसीआई) से कहा कि वो वोटिंग के 48 घंटे के अंदर मतदान केंद्रों का फाइनल प्रमाणित डेटा जारी न करने के सवाल का जवाब दे। सुप्रीम कोर्ट में इस संबंध में याचिका दायर कर कहा गया है कि लोकसभा चुनाव में हर चरण के मतदान के बाद हर बूथ के वोट प्रतिशत का डेटा चुनाव आयोग की साइट पर अपलोड नहीं किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि वो चुनाव आयोग को इस संबंध में निर्देश जारी करे।
कोर्ट रूम संवाद
- सीजेआईः मिस्टर शर्मा, इसे वेबसाइट पर डालने में क्या कठिनाई है?
- आयोग के वकीलः इसमें समय लगता है। हमें बहुत सारा डेटा इकट्ठा करना होगा।
- सीजेआई बेंचः लेकिन हर मतदान अधिकारी शाम तक ऐप पर डेटा जमा करता है? इसलिए रिटर्निंग अधिकारी के पास दिन के अंत तक पूरे लोकसभा क्षेत्र का डेटा होता है।
- आयोग वकीलः तुरंत नहीं।
- सीजेआईः ठीक है, अगले दिन। (यानी अदालत का कहना था कि वो डेटा अगले दिन तो डाला जा सकता है।)
अदालत में यह याचिका इसलिए दायर की गई कि लोकसभा चुनावों के पहले दो चरणों के बाद आयोग ने अंतिम मतदान प्रतिशत घोषित करने में जरूरत से ज्यादा समय लिया। और जब अंतिम डेटा आया तो उसमें मतदान प्रतिशत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई। अदालत को बताया गया कि 30 अप्रैल को प्रकाशित आंकड़ों में मतदान के दिन चुनाव आयोग द्वारा घोषित शुरुआती प्रतिशत की तुलना में अंतिम मतदाता मतदान में तेज वृद्धि (लगभग 5-6%) दिखाई गई है।
मतदान प्रतिशत की घोषणा में देरी की वजह से मतदाताओं और राजनीतिक दलों में ऐसे आंकड़ों की विश्वसनीयता को लेकर चिंता पैदा हो गई हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इस मामले में याचिका दायर की है। इस याचिका में आयोग को अपनी वेबसाइट पर फॉर्म 17 सी भाग- I (रिकॉर्ड किए गए वोटों का खाता) की स्कैन की गई, पढ़ी जाने वाली प्रतियां अपलोड करने के निर्देश देने की मांग की गई है।
एडीआर ने आरोप लगाया कि एकदम सही और निर्विवाद डेटा के आधार पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (ईवीएम) के जरिए चुनाव नतीजे घोषित करने में ईसीआई की ओर से कर्तव्य में लापरवाही की गई है। एडीआर ने अदालत को बताया कि अब तक, ईसीआई द्वारा 30 अप्रैल को प्रकाशित मतदाता आंकड़े पहले चरण के 11 दिन बाद और दूसरे चरण के 4 दिन बाद के थे।
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