कल्पना सोरेन
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हेमंत सोरेन
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मोदी सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय को लेकर एक और बड़ा दांव खेलने जा रही है। सरकार ने उस संविधान संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को यह ताक़त देता है कि वे अपनी ओबीसी जातियों की सूची ख़ुद बना सकते हैं। इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में रखा जाना है।
मोदी सरकार ने 2018 में 102वें संविधान संशोधन के जरिये अनुच्छेद 342-ए पेश किया था। यह अनुच्छेद पिछड़ी जातियों के राष्ट्रीय आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के लिए लाया गया था। तब विपक्षी दलों ने सरकार को चेताया था कि यह संशोधन ओबीसी जातियों की सूची तैयार करने के राज्यों के अधिकार को प्रभावित कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में महाराष्ट्र सरकार के उस फ़ैसले को खारिज कर दिया था जिसमें उसने मराठा समुदाय को आरक्षण दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अनुच्छेद 342-ए के तहत सिर्फ़ केंद्र सरकार को ही इस बात का अधिकार है कि वह ओबीसी जातियों की केंद्रीय सूची को तैयार करे।
केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में मेडिकल पाठ्यक्रमों में ओबीसी समुदाय को 27 फ़ीसदी आरक्षण देने का एलान किया था। ओबीसी समुदाय इस मुद्दे पर बेहद मुखर था। केंद्रीय कैबिनेट के विस्तार में इस समुदाय के नेताओं को अच्छी-खासी जगह दी गई है। इससे साफ है कि पार्टी को इस बात का भान है कि देश में 55 फ़ीसदी आबादी वाले इस समुदाय को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
आने वाले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें उत्तर प्रदेश बेहद अहम है और इस राज्य में 43 फ़ीसदी आबादी ओबीसी की है। ऐसे में ओबीसी समुदाय को अपनी ओर खींचने के लिए केंद्र सरकार लगातार क़दम उठा रही है। देखना होगा कि उसे इससे फ़ायदा होगा या नहीं।
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