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राज्यों को कोटे के लिए एससी, एसटी में उप-वर्गीकरण का अधिकार: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को फैसला सुनाया कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के भीतर उप-वर्गीकरण ठीक है। उसे इस पर ऐतराज नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में 2004 के फैसले को खारिज कर दिया है। उस समय पांच जजों की बेंच ने यह तर्क देते हुए कहा था कि उप-वर्गीकरण की अनुमति नहीं है कि एससी/एसटी पूरा एक वर्ग है, वो भी उसी का हिस्सा हैं।

मैंने अपने फैसले में 1949 में डॉ. बीआर अंबेडकर के एक भाषण का जिक्र किया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जब तक हमारे पास सामाजिक लोकतंत्र नहीं होगा, तब तक राजनीतिक लोकतंत्र का कोई फायदा नहीं है।


- जस्टिस बीआर गवई, सुप्रीम कोर्ट 1 अगस्त 2024 सोर्सः लाइव लॉ

अनुच्छेद 14 जाति के उप-वर्गीकरण की अनुमति देता है।


-चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट 1 अगस्त 2024 सोर्सः लाइव लॉ

चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात जजों की संविधान पीठ ने 6:1 के बहुमत से कहा कि राज्यों द्वारा एससी और एसटी के आगे उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जा सकती है ताकि इन समूहों के अंदर अधिक पिछड़ी जातियों को कोटा प्रदान किया जा सके।

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इस बेंच में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा शामिल थे। सिर्फ बेला एम त्रिवेदी का फैसला अलग था जो 6 के बहुमत वाले फैसले से सहमत नहीं था।

संवैधानिक बेंच ने माना कि सामाजिक समानता के सिद्धांत राज्य को अनुसूचित जातियों के बीच सबसे पिछड़े वर्गों को भी मौका देने का अधिकार देते हैं। सुप्रीम कोर्ट पंजाब अधिनियम की धारा 4(5) की संवैधानिक वैधता की समीक्षा कर रहा था, जो इस बात पर निर्भर है कि क्या अनुसूचित जाति या जनजाति के भीतर उप-वर्गीकरण किया जा सकता है या क्या उन्हें उन्हीं समूहों के रूप में माना जाना चाहिए।

सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने इस सवाल पर विचार किया कि क्या एससी/एसटी समुदायों के भीतर अधिक सुविधा प्राप्त समूहों के बच्चों को आरक्षण का लाभ मिलते रहना चाहिए। अदालत ने इन वर्गों के भीतर एकरूपता की धारणा की भी जांच की।

यहां यह बताना जरूरी है कि केंद्र सरकार ने कोर्ट में भी यही कहा था कि वह एससी और एसटी के बीच उप-वर्गीकरण के पक्ष में है। यानी सुप्रीम कोर्ट का गुरुवार का फैसला केंद्र सरकार की लाइन पर ही है।

इस केस में मुख्य मुद्दा यह था कि क्या इन समुदायों के सबसे कमजोर सदस्यों को आगे आरक्षण प्रदान करना स्वीकार्य है, खासकर तब जब आरक्षण का लाभ सबसे वंचित लोगों तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुंचा है। अदालत ने उन असमानताओं पर गौर किया जहां एससी/एसटी समुदायों के भीतर आर्थिक रूप से मजबूत समूहों ने मुख्य रूप से आरक्षण का लाभ उठाया है, जिससे सबसे कमजोर वर्ग हाशिये पर चला गया है।

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बहुमत के फैसले में कहा गया है कि उप-वर्गीकरण के आधार को "राज्यों द्वारा योग्य डेटा द्वारा उचित ठहराया जाना चाहिए। सीजेआई और बाकी जजों ने सहमति वाले फैसले लिखे जबकि जस्टिस बेला त्रिवेदी ने असहमति जताई।

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क़मर वहीद नक़वी
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