सोनिया गांधी ने मंगलवार को केंद्र की बीजेपी सरकार पर मनरेगा को व्यवस्थित रूप से कमजोर करने का गंभीर आरोप लगाया है। यह योजना यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा शुरू की गई एक प्रमुख गरीबी उन्मूलन नीति थी। राज्यसभा में शून्यकाल के दौरान सोनिया गांधी ने कहा कि यह कार्यक्रम ग्रामीण गरीबों के लिए एक महत्वपूर्ण सुरक्षा उपाय रहा है, लेकिन मौजूदा सरकार इसे कमजोर कर रही है।
कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद सोनिया गांधी ने कहा, 'मनमोहन सिंह सरकार का यह ऐतिहासिक क़ानून करोड़ों ग्रामीण गरीबों के लिए जीवन रेखा रहा है। यह चिंताजनक है कि बीजेपी सरकार ने इसे व्यवस्थित रूप से कमजोर किया है।' उन्होंने बताया कि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा के लिए बजट आवंटन 86000 करोड़ पर स्थिर है, जो जीडीपी के प्रतिशत के हिसाब से पिछले 10 सालों में सबसे कम है। महंगाई को ध्यान में रखते हुए हालिया केंद्रीय बजट में यह राशि वास्तव में 4000 करोड़ कम हो गई है। इसके अलावा, अनुमान है कि आवंटित धन का करीब 20% हिस्सा पिछले वर्षों के बकाया भुगतान में खर्च होगा।
बता दें कि सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए मनरेगा के लिए 86,000 करोड़ रुपये आवंटित किए। यह पिछले वित्त वर्ष 2023-24 में योजना के वास्तविक व्यय 1.05 लाख करोड़ रुपये से 19,297 करोड़ रुपये कम था। बहरहाल, एक रिपोर्ट के अनुसार 2024 के अंतरिम बजट में सरकार द्वारा इस योजना के लिए आवंटित किए गए 86,000 करोड़ रुपये कम पड़ने के बावजूद केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने मंत्रालय के कई अनुरोधों के बाद भी योजना के लिए बजट में संशोधन नहीं किया।
पिछले साल योजना के लिए कम फंड के आवंटन पर आलोचना का जवाब देते हुए सरकार ने कहा था कि यह कार्यक्रम एक मांग आधारित योजना है और जब भी ज़रूरत होती है, अतिरिक्त आवंटन किया जाता है। इसके लिए वित्त वर्ष 2020-21 का उदाहरण दिया गया जब कोविड काल में आवंटन को बढ़ाया गया था।
कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी ने मनरेगा को मज़बूत करने के लिए पाँच सुधारों की माँग की।
- योजना को बनाए रखने और विस्तार के लिए पर्याप्त वित्तीय प्रावधान।
- न्यूनतम मजदूरी दर को बढ़ाकर 400 रुपये प्रतिदिन करना।
- मजदूरी का समय पर भुगतान सुनिश्चित करना।
- गारंटीशुदा कार्यदिवसों की संख्या को 100 से बढ़ाकर 150 करना।
- आधार-आधारित भुगतान और अन्य तकनीकी चुनौतियों को हल किया जाए।
इन माँगों का मक़सद ग्रामीण गरीबों को गरिमापूर्ण रोजगार और वित्तीय सुरक्षा देना है। हालाँकि, उन्होंने अपने संक्षिप्त भाषण में केंद्र और पश्चिम बंगाल सरकार के बीच चल रहे गतिरोध का जिक्र नहीं किया, जहाँ दिसंबर 2022 से यह योजना बंद पड़ी है।
क्या मोदी सरकार वाक़ई मनरेगा को खत्म करना चाहती है?
मनरेगा को लेकर यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर निशाना साधा हो। पीएम मोदी ने 2015 में इस योजना को 'कांग्रेस की विफलताओं का जीवंत स्मारक' क़रार दिया था। लेकिन कोविड-19 महामारी के दौरान इस योजना की उपयोगिता साबित हुई, जब लाखों प्रवासी मजदूरों के लिए यह रोजगार का एकमात्र जरिया बनी।
पिछले साल एक रिपोर्ट आई थी कि मनरेगा से क़रीब 8 करोड़ रजिस्टर्ड मजदूरों के नाम दो साल के अंदर उड़ा दिए गए। यह बात लिबटेक इंडिया और नरेगा संघर्ष मोर्चा की रिपोर्ट में कही गई है। दोनों सिविल सोसाइटी के एनजीओ हैं और अस्थायी मजदूरों के बीच काम करते हैं।
मनरेगा हर ग्रामीण परिवार को न्यूनतम वेतन के साथ 100 दिन के रोज़गार की गारंटी देता है। कहा जाता है कि मनरेगा भारत में ग्रामीण रोजगार के लिए एक क्रांतिकारी क़दम है।
अर्थशास्त्र में नोबल पुरस्कार विजेता जोसेफ़ स्टिग्लिट्ज़ ने कहा था, 'मनरेगा भारत का एकमात्र सबसे बड़ा प्रगतिशील कार्यक्रम और पूरी दुनिया के लिए सबक़ है।' जब 2008 में वैश्विक आर्थिक संकट आया था, इसने भारत को आर्थिक मंदी से उबरने में मदद की थी। यही स्थिति कोविड काल में भी हुई थी जब ग्रामीण मज़दूरों के लिए मनरेगा वरदान साबित हुआ।
सोनिया गांधी का यह बयान न केवल मनरेगा की स्थिति पर चिंता जताता है, बल्कि बीजेपी सरकार की ग्रामीण नीतियों पर कांग्रेस का हमला भी तेज करता है। मनरेगा को यूपीए की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है, जिसने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने में अहम भूमिका निभाई थी। बीजेपी पर इसे कमजोर करने का कांग्रेस का आरोप तब लगा है जब देश में बेरोजगारी और आर्थिक असमानता बड़े मुद्दे बने हुए हैं।
सोनिया गांधी की माँगें सरकार पर दबाव डाल सकती हैं कि वह मनरेगा के लिए अधिक संसाधन और बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित करे। अगर इन माँगों को नजरअंदाज किया गया, तो यह विपक्ष के लिए एक बड़ा राजनीतिक हथियार बन सकता है।
दूसरी ओर, बीजेपी इसे तकनीकी सुधार और वित्तीय अनुशासन के तौर पर पेश कर सकती है। पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में योजना का रुकना भी केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव को दिखाता है, जिसे सोनिया ने भले ही छुआ न हो, लेकिन यह एक छिपा संकट है।
सोनिया गांधी का यह हस्तक्षेप मनरेगा के भविष्य और ग्रामीण भारत की स्थिति पर एक जरूरी बहस छेड़ता है। यह योजना न केवल रोजगार का साधन है, बल्कि सामाजिक सुरक्षा का भी प्रतीक है। बीजेपी सरकार के लिए यह मौका है कि वह इन आलोचनाओं के बाद समस्याओं को निपटाए और योजना को मजबूत करे, वरना यह मुद्दा आगामी चुनावों में उसकी राह मुश्किल कर सकता है। कांग्रेस के लिए यह ग्रामीण गरीबों के हितों की रक्षा का दावा करने का एक अवसर है, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये माँगें कागजों से आगे बढ़ पाएँगी।
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