सरकारी नौकरियाँ मिलने में दलितों के साथ कितना भेदभाव होता है, यह सरकार द्वारा ज़िम्मेदारी सौंपी गई एक कमेटी की रिपोर्ट में ही सामने आया है। इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि यदि सिविल सेवा की परीक्षा में शामिल होने वाले अभ्यर्थियों के उपनाम छुपा दिए जाएँ तो उनको बराबरी का मौक़ा मिल सकता है। उपनाम छुपाने की बात इसलिए की गई है क्योंकि 90 फ़ीसदी भारतीय नामों के उपनाम से संबंधित व्यक्ति की जाति का पता चल जाता है। यानी समिति का साफ़ तौर पर कहना है कि उपनाम छुपा दिए जाएँ तो ज़्यादा दलितों को नौकरी मिलेगी। इसका एक मतलब यह भी है कि ऐसे लोगों को नौकरियाँ देने में भेदभाव किया जाता है।