हाल ही में जारी की गयी एक रिपोर्ट में भारत को महिलाओं पर यौन हिंसा के सन्दर्भ में सबसे असुरक्षित देशों की सूची में दूसरा स्थान दिया गया है। वर्ष 2018 में इस सूची में भारत का स्थान चौथा था। इस रिपोर्ट को आर्म्ड कनफ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट नाम की संस्था ने तैयार किया है। यानी भारत में महिलाओं की स्थिति पिछले साल से ज़्यादा ख़राब हुई है। ऐसे में क्या महिला सुरक्षा और ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा बेमानी साबित नहीं हो रहा है? महिलाओं की स्थिति पर दुनिया की हर रिपोर्ट में भारत की रिपोर्ट ख़राब क्यों आ रही है?
आर्म्ड कनफ्लिक्ट लोकेशन एंड इवेंट डाटा प्रोजेक्ट की इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में युद्ध और सामाजिक अराजकता बढ़ने के कारण महिलाओं पर यौन हिंसा बढ़ती जा रही है। इस रिपोर्ट को बनाने के लिए दुनिया में जनवरी 2018 से जून 2019 के बीच सरकारी तौर पर प्रकाशित 400 यौन हिंसा के मामलों का विस्तृत अध्ययन किया गया।
वर्ष 2018 में यौन हिंसा के सन्दर्भ में सबसे असुरक्षित देश क्रम से डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो, साउथ सूडान, बुरुंडी, भारत और सूडान थे। लेकिन वर्ष 2019 में यह क्रम बदल कर डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो, भारत, साउथ सूडान, बुरुंडी और मोजांबिक हो गया।
हिंसा का यह क्रम दुनियाभर में बढ़ रहा है। 2019 के पहले तीन महीनों में ही इस तरह के 140 मामले सामने आये, जो वर्ष 2018 की तुलना में दुगुने से भी अधिक है। इस रिपोर्ट के अनुसार ऐसे अनेक मामलों में अपराधियों को सरकार या सेना का संरक्षण रहता है। ऐसे लोगों को संरक्षण देने के सन्दर्भ में कांगो, भारत, म्यांमार, साउथ सूडान, बुरुंडी और सूडान का नाम प्रमुख है।
10 लाख लड़कियाँ मारी जा रहीं हर साल
जिस देश में लगभग 10 लाख लड़कियाँ प्रतिवर्ष भ्रूण हत्या और उपेक्षा के कारण मर रही हों, वहाँ महिलाएँ सबसे अधिक असुरक्षित हैं इसे बताने के लिए किसी रिपोर्ट की आवश्यकता भी नहीं है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2007 से 2016 के बीच महिलाओं पर होने वाले अपराध में 83 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है और देश में हरेक घंटे औसतन 4 मामले बलात्कार के सामने आते हैं।
सोशल मीडिया पर जिस तरीक़े से महिलाओं पर हमला किया जा रहा है, वैसा इसके पहले कभी देखा नहीं गया। अनेक महिला पत्रकार पहले भी इसका शिकार हो चुकी हैं। बलात्कार की धमकी तो जैसे सामान्य हो चली है, हत्या तक की धमकियाँ खुलेआम दी जा रही हैं। इन सबके बावजूद सरकार चुप है तो उसकी मंशा पर सवाल उठाना लाज़िमी है। कुछ महीनों पहले पत्रकार राना अय्यूब पर सोशल मीडिया में धमकियों का ऐसा सिलसिला शुरू किया गया था जिसकी भर्त्सना संयुक्त राष्ट्र के ह्यूमन राइट्स कमीशन ने भी की थी।
थॉमसन रायटर्स की रिपोर्ट
पिछले साल थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में हमारे देश को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश क़रार दिया गया था। इस रिपोर्ट को सरकार ने बिना पढ़े ही नकार दिया था। थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन की इस रिपोर्ट में बताया गया है कि यौन हिंसा, शोषण और महिलाओं को बंधक बनाकर ग़ुलामों जैसे काम करवाने में भारत सबसे आगे है। भारत के बाद क्रम से अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, सोमालिया, सऊदी अरब, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, यमन, नाइजीरिया और अमेरिका का नाम था। विकसित देशों में अमेरिका ही ऐसा देश है जो सबसे ऊपर के 10 देशों में शामिल है। वैसे, यौन हिंसा के सन्दर्भ में अमेरिका तीसरे स्थान पर है।
2011 में भारत था चौथे पायदान पर
थॉमसन रायटर्स फाउंडेशन की इस रिपोर्ट को विश्व के 550 चुनिन्दा महिलाओं के मामलों के विशेषज्ञों की राय के आधार पर बनाया गया था। इन विशेषज्ञों में नीति निर्माता, सामाजिक टिप्पणीकार, ग़ैर-सरकारी संगठनों के विशेषज्ञ, स्वास्थ्य सेवा विशेषज्ञ, शिक्षाविद और मददगार संस्थाओं के प्रतिनिधि सम्मिलित थे। इससे पहले वर्ष 2011 में ऐसी पहली रिपोर्ट तैयार की गयी थी, जिसमें अफ़ग़ानिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, पाकिस्तान, इंडिया और सोमालिया क्रम से सबसे असुरक्षित देश थे। इन विशेषज्ञों से महिलाओं से संबंधित 6 विषयों – स्वास्थ्य सेवा, भेदभाव, सांस्कृतिक परंपरा, यौन हिंसा, ग़ैर-यौन हिंसा, और मानव तस्करी – के सन्दर्भ में संयुक्त राष्ट्र के कुल 192 सदस्यों में से सबसे ख़राब 10 देशों का नाम बताने को कहा गया था।
सरकार का रवैया
रिपोर्ट से इतना तो साफ़ है कि महिलाओं पर हिंसा या उनसे भेदभाव के मसले पर हमारे देश की छवि पूरी दुनिया में कैसी है, पर सरकार इन रिपोर्टों पर अपनी आँखें बंद कर लेती है। दूसरी तरफ़ संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक महिलाओं को बराबरी का दर्जा हरेक देश को देना है और इनसे भेदभाव ख़त्म करना है, और भारत ने भी हस्ताक्षर किया है।
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