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सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार विनोद दुआ के ख़िलाफ़ हिमाचल प्रदेश में दर्ज देशद्रोह के एफ़आईआर को खारिज कर दिया है। इसके साथ ही इसने कहा कि ऐसे मामलों से सुरक्षा के लिए हर पत्रकार हकदार है। एक स्थानीय बीजेपी नेता ने पिछले साल दिल्ली दंगे पर विनोद दुआ के यूट्यूब शो को लेकर देशद्रोह का मुक़दमा दर्ज कराया था। एफ़आईआर में उनपर फ़ेक न्यूज़ फैलाने, सार्वजनिक उपद्रव फैलाने, मानहानि वाली सामग्री छापने और सार्वजनिक रूप से ग़लत बयान देने का आरोप लगाया गया था। इस एफ़आईआर के ख़िलाफ़ ही विनोद दुआ सुप्रीम कोर्ट में गए थे।
इस मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उस एफ़आईआर को तो रद्द किया ही, इसके साथ ही विनोद दुआ की उस मांग को भी खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने मांग की थी कि 10 साल से ज़्यादा अनुभव वाले किसी भी पत्रकार पर तब तक एफ़आईआर दर्ज नहीं की जाए जबतक हाईकोर्ट जज के नेतृत्व वाले पैनल से इसके लिए सहमति नहीं ली गई हो।
जस्टिस यूयू ललित और विनीत सरन की पीठ ने यह फ़ैसला दिया। इस बेंच ने पिछले साल अक्टूबर में सुनवाई कर इस पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था। उसमें याचिकाकर्ता विनोद दुआ, हिमाचल प्रदेश सरकार और एफ़आईआर दर्ज कराने वाले बीजेपी नेता की दलीलें सुनी गई थीं। उसी मामले में आज यानी गुरुवार को फ़ैसला आया है। सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने पिछले फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा कि हर पत्रकार ऐसे आरोपों से सुरक्षित होने के हकदार हैं। न्यायाधीशों ने कहा, 'देशद्रोह पर केदार नाथ सिंह के फ़ैसले के तहत हर पत्रकार सुरक्षा का हकदार होगा।'
बता दें कि 1962 के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले में कहा गया है कि 'सरकार के क़दमों से असहमति व्यक्त करने, उनके सुधार या वैध तरीक़ों से बदलाव करने के लिए कहने के लिए केवल कड़े शब्दों का इस्तेमाल करना राजद्रोह नहीं है'।
सुप्रीम कोर्ट का यह फ़ैसला उन सरकारों के लिए तगड़ा झटका है जहाँ सरकारी नीतियों में कथित गड़बड़ी की मामूली आलोचना पर या सामान्य रिपोर्ट छापने पर भी राजद्रोह का केस दर्ज करा दिया जाता है।
बता दें कि जब इस राजद्रोह के मामले को विनोद दुआ सुप्रीम कोर्ट ले गए थे और अपनी दलीलें रखी थीं तो सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 20 जुलाई को विनोद दुआ को अगले आदेश तक के लिए गिरफ़्तारी से राहत दी थी। तब पहले की सुनवाइयों में अदालत ने हिमाचल प्रदेश सरकार से यह भी कहा था कि जाँच से 24 घंटे पहले विनोद दुआ को इसकी जानकारी दी जानी चाहिए।
पिछले साल मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार-स्तंभकार आकार पटेल के ख़िलाफ़ भी सिर्फ़ इसलिए मामला दर्ज किया गया कि उन्होंने अमेरिका में चल रहे विरोध-प्रदर्शन की तरह ही भारत में भी प्रदर्शन की बात कही थी। हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश में कई पत्रकारों के ख़िलाफ़ ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं।
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