सुदर्शन टीवी के 'यूपीएससी जिहाद' कार्यक्रम को लेकर शुक्रवार को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूरे उस मीडिया के लिए संदेश दिया है जो किसी न किसी समुदाय को निशाना बनाते रहते हैं। अदालत ने कहा है कि वह पत्रकारिता के बीच में नहीं आना चाहती है लेकिन यह संदेश मीडिया में जाए कि किसी भी समुदाय को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए। तीन दिन पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम पर रोक लगाई थी तब भी कोर्ट ने यही कहा था कि ‘ऐसा लगता है कार्यक्रम का उद्देश्य मुसलिम समुदाय को बदनाम करना है और उन्हें कुछ इस तरह दिखाना है कि वे चालबाज़ी के तहत सिविल सेवाओं में घुसपैठ की कोशिश कर रहे हैं।’
सुप्रीम कोर्ट की इस रोक के बाद सुदर्शन टीवी के मुख्य संपादक सुरेश चव्हाणके की ओर से अपने कार्यक्रम के बचाव में कोर्ट में हलफ़नामा पेश कर कहा गया था कि वह ‘नागरिकों और सरकार को राष्ट्र विरोधी और समाज विरोधी गतिविधियों के बारे में जगाने के लिए खोजी पत्रकारिता’ कर रहा है।
इसी मामले में शुक्रवार को सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, 'हम पत्रकारिता के रास्ते में नहीं आना चाहते हैं। हम एक अदालत के रूप में जानते हैं कि आपातकाल के दौरान क्या हुआ था। इसलिए हम बोलने और विचार की आज़ादी सुनिश्चित करेंगे। हम सेंसरशिप नहीं लागू करना चाहते। हम सेंसर बोर्ड नहीं हैं।'
इसके साथ ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम चाहते हैं कि आपके मुवक्किल हमारे पास आएँ और हमें बताएँ कि वह हमारी आशंकाओं को कैसे दूर करेंगे।
सुदर्शन टीवी की ओर से शुक्रवार को कोर्ट को बताया गया कि वह एक हफ़्ते के भीतर इस संदर्भ में हलफ़नामा दायर करेगा। हालाँकि एक दिन पहले गुरुवार को सुरेश चव्हाणके की ओर से सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दायर कर सुदर्शन टीवी ने कहा था कि उसका किसी भी समुदाय या व्यक्ति के ख़िलाफ़ कोई दुर्भावना नहीं है। इसने यह भी कहा था कि ये चार एपिसोड जो प्रसारित किए गए हैं उनमें कोई बयान या संदेश नहीं था कि किसी विशेष समुदाय के सदस्यों को यूपीएससी में शामिल नहीं होना चाहिए।
आज सुनवाई के दौरान जस्टिस के एम जोसफ ने भी तीखे सवाल किए। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम इस समुदाय के प्रति गंभीर अनादर दिखाता है। उन्होंने कहा,
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हर कोई सत्ता के केंद्र में रहना चाहता है। आप जो कर रहे हैं वह यह है कि आप उन लोगों को हाशिए पर डाल रहे हैं जिन्हें मुख्यधारा में लाया जाना चाहिए। ऐसा करके आप उन्हें ग़लत हाथों में पड़ने को मजबूर कर रहे होंगे। हम कहाँ जा रहे हैं?
जस्टिस के एम जोसफ
जस्टिस जोसफ़ ने कहा, 'मुसलिमों के अलावा जैन भी हैं। मेरे क़ानूनी कलर्क ने जैन संगठनों द्वारा वित्त पोषित पाठ्यक्रम की पढ़ाई की। ईसाई संगठन अपने उम्मीदवारों को फ़ंड देते हैं। हर कोई शक्ति के केंद्र का हिस्सा बनना चाहता है। सभी समुदाय शक्ति के केंद्र का एक हिस्सा होना चाहते हैं। आपने विभिन्न कारकों का एक कॉकटेल बनाया है, लेकिन आप एक पूरे समुदाय को बदनाम कर रहे हैं।'
एनबीए की तीखी आलोचना
कोर्ट ने एनबीए यानी न्यूज़ ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन की भी इसलिए आलोचना की कि वह देश भर में ऐसे उकसाने वाले कंटेंट को नियंत्रित करने में 'शक्तिहीन' साबित हुआ है। इस पर एनबीए ने कहा था कि वह सिर्फ़ एनबीए सदस्यों के साथ इस पर काम करता है और सुदर्शन टीवी उसका सदस्य नहीं है।
बता दें कि एनबीए टेलिविज़न चैनलों के मालिकों की एक संस्था है और न्यूज़ ब्राडकॉस्टिंग स्टैंडर्स अथॉरिटी यानी एनबीएसए प्रसारण में आचार संहिता और दिशा-निर्देशों को लागू कराता है। ये दिशा-निर्देश उन चैनल के लिए होते हैं जो इसके सदस्य होते हैं।
एनबीए की ओर से पेश वकील ने कहा, 'हम प्राइम टाइम पर चैनल से माफ़ी भी मँगवाते हैं। हम शक्तिहीन नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के कई जज हमारे नियमन की तारीफ़ करते हैं।' इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा- 'क्या आप टीवी देखते हैं'। वकील ने कहा- 'हाँ'। फिर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- 'क्या आप नियंत्रित करने में सक्षम हैं'? इस पर वकील ने कहा- 'काफ़ी सुधार हुआ है, लेकिन कई चैनल हमारे सदस्य नहीं हैं'।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एनबीए से पूछा कि कैसे इस संगठन को मज़बूत किया जा सकता है जिससे बेहतर नियमन हो सके। इस मामले में अब अगली सुनवाई सोमवार को होगी।
बता दें कि इससे तीन दिन पहले भी सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने एनबीए की तीखी आलोचना की थी। तब न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था, ‘हमें आपसे यह पूछने की ज़रूरत है कि क्या आपका (एनबीए) लेटर हेड से आगे बढ़कर भी कुछ अस्तित्व है। जब किसी आपराधिक मामले की सामानांतर जाँच या मीडिया ट्रायल चलता है और प्रतिष्ठा धूमिल की जाती है तो आप क्या करते हैं?’
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