आप अपने फ़ेसबुक पेज पर क्या लिखते हैं, क्या पोस्ट करते हैं, सरकार इसकी जानकारी कभी भी इस सोशल मीडिया वेबसाइट से माँग सकती है और आपके पोस्ट को हटवा भी सकती है। सरकार की इस गतविधि में बढ़ोतरी हुई है। उसने पहले से अधिक फ़ेसबुक ख़ातों की जानकारी मांगी है और कॉन्टेन्ट को डिलीट करवाया है। इस अमरीकी माइक्रोब्लॉगिंग साइट ने बीते शुक्रवार को इस साल की ट्रांसपैरेन्सी रिपोर्ट जारी की। (आप भारत से जुड़ी रिपोर्ट
यहां पढ़ सकते हैं।)
फ़ेसबुक ने कहा है कि भारत सरकार ने इस साल जनवरी से जून महीने के दौरान 23,047 ख़ातों की ‘एक्सेस’ माँगी थी यानी उन खातों तक अपनी पँहुच के लिए कंपनी से कहा था।
साल 2013 में सरकार ने महज 4,144 खातों तक ‘एक्सेस’ मांगी थी। इतना ही नहीं, मोदी सरकार ने इस साल के पहले छह महीनों में फ़ेसबुक से 16,580 खातों के पोस्ट हटा देने को कहा था। साल 2013 में भारत सरकार ने सिर्फ़ आठ ख़ातों के पोस्ट हटाने को कहा था।
ट्रांसपैरेन्सी रिपोर्ट की एक झलक
नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट
सरकार ने ज़्यादातर मामलों में धर्म, जाति, संप्रदाय से जुड़ी जानकारियाँ माँगी या नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट हटाने को कहा। भारत सरकार ने साल 2015 में सबसे ज़्यादा 30,000 खातों से पोस्ट हटाने को कहा था। बाद में इसमें कमी आई और यह गिरते हुए 3,500 तक आ गया। भारत अकेला देश नहीं
भारत इस तरह की माँग करने वाला अकेला देश नहीं है। अमरीका समेत तमाम देश फ़ेसबुक से उसके सदस्यों की जानकारी मांगते रहते हैं और कॉन्टेन्ट को हटाने की मांग भी करते रहते हैं। इस सोशल मीडिया वेबसाइट ने इस साल अप्रैल से जून तक 30 लाख कॉन्टेन्ट हटाए हैं। इनमें से अधिकतर नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट रहे हैं। कॉन्टेन्ट हटाने की माँग करने वालों में अमरीका अभी भी सबसे आगे है। पर इस तरह की माँग बढ़ने की दर सबसे अधिक भारत के मामले में ही है। क्या करता है फ़ेसबुक?
फ़ेसबुक भारत सरकार को तमाम जानकारियां मुहैया करा देती है और उसके कहे मुताबिक़ पोस्ट हटा देती है। कंपनी ने एक बयान में कहा, ‘हम इस तरह के हर आग्रह की क़ानून की नज़र से समीक्षा करते हैं, हम उस आग्रह को ख़ारिज कर सकते हैं या उस पर और अधिक जानकारी मांग सकते हैं।’सरकार के इस तरह जानकारी मांगने और फ़ेसबुक की ओर से वे जानकारियाँ मुहैया कराने का मामला बेहद संवेदनशील और विवादित रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह एक तरह से निज़ता का उल्लंघन है। कोई व्यक्ति फ़ेसबुक पर जो कुछ भी डालता है, उसकी निगरानी नहीं होनी चाहिए, यह उसके अधिकारों का उल्लंघन है। सरकार इसका दुरुपयोग कर सकती है। वह अपने विरोधियों से बदला लेने के लिए, उन्हें फंसाने के लिए, उनके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाइयां करने के लिए इन जानकारियों का इस्तेमाल कर सकती है।
फ़ेसबुक पर यह आरोप लगा कि कई तरह के अपराधी, नशीली दवाओं के व्यापार का सिंडिकेट चलाने वाले माफ़िया और आतंकवादी उसके प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल करते हैं। कुछ मामलोें में इसे सच पाया गया।
उसके बाद फ़ेसबुक इस पर राज़ी हो गया कि वह हर मामले की अलग-अलग जाँच करेगा और यदि उसे लगा कि जानकारी देना क़ानून की नज़र में ठीक है तो वह देगा।
सरकार का तर्क
भारत सरकार यह कहती रही है कि वह नफ़रत फैलाने वाले कॉन्टेन्ट ही हटाने को कहती है और उस तरह के खातों का ही एक्सेस माँगती है। पर हर खाते की निगरानी नहीं करती है, न ही उनका एक्सेस माँगती है। ऐसे कई उदाहरण हैं जहां सरकार ने विरोधियों के फ़ेसबुक खातों पर नज़र रखी है और उन्हें परेशान किया है। मनमोहन सिंह सरकार का एक मामला काफ़ी चर्चित हुआ था। उस समय के वित्त मंत्री पी चिदंबरम के बेटे कार्ती पर किसी ने कोई टिप्पणी की थी, पुलिस उसे आधी रात को उठा ले गई। इसी तरह बाल ठाकरे पर टिप्पणी करने पर एक युवती को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया था। इस तरह के आरोप मोदी इस सरकार पर भी लगे हैं। इस पर आरोप लगे हैं कि मानवाधिकारोें के लिए काम करने वाले लोगों, धुर वामपंथियों या उनके समर्थक माने जाने वालों के सोशल मीडिया खातों पर सरकार नज़र रखती है। सोशल मीडिया भारत में तेज़ी से फैल रहा है। आने वाले समय में मोबाइल फ़ोन और कनेक्टिविटी सस्ता होने और इंटरनेट अधिक उपलब्ध होने पर फ़ेसबुक जैसे माइक्रोब्लॉगिंग साइट की लोकप्रियता भी बढ़ेगी। इसके साथ ही सरकार पहले से अधिक खातों की जानकारी फ़ेसबुक से माँगेगी या उनके कॉन्टेन्ट हटाने को कहेगी, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है।
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