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प्रतीकात्मक तस्वीर।

केंद्र जल्द ही 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक पेश कर सकता है: रिपोर्ट

क्या 'एक देश एक चुनाव' पर सरकार क़ानून बनाने की जल्दी में है? सूत्रों के हवाले से कई मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि सरकार संसद के चालू सत्र के दौरान ही 'एक देश एक चुनाव' विधेयक को पेश करने वाली है। इस प्रस्ताव का मक़सद पूरे देश में एक साथ चुनाव कराना है। कहा जा रहा है कि इससे मौजूदा चरणबद्ध चुनाव प्रणाली के तहत खर्च होने वाले समय, लागत और संसाधनों को कम करने में मदद मिलेगी और इसे एक महत्वपूर्ण सुधार के रूप में देखा जा रहा है।

लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने के उद्देश्य से इस विधेयक को लाने की तैयारी है। इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से रिपोर्ट दी है कि इस विधेयक को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर कैबिनेट की मंजूरी मिल गई है। यह मंजूरी इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता का संकेत देती है।

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हालांकि सरकार व्यापक समर्थन प्राप्त करने के प्रति आशावादी है, लेकिन इस प्रस्ताव पर तीखी राजनीतिक बहस छिड़ने की संभावना है, तथा विपक्षी दल इसकी व्यवहार्यता और संघवाद पर इसके प्रभाव के बारे में चिंता जता सकते हैं।

विपक्ष ने लगातार इस प्रस्ताव की आलोचना की है और इसे अव्यावहारिक, अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक बताया है। उनका तर्क है कि एक साथ चुनाव कराने की तार्किक और दूसरी चुनौतियां शासन को बाधित कर सकती हैं और संघीय सिद्धांतों को कमजोर कर सकती हैं। 

आलोचना के बावजूद सरकार ने कहा है कि मौजूदा प्रणाली चुनाव से पहले आदर्श आचार संहिता के बार-बार लागू होने के कारण विकास में बाधा पड़ती है। कोविंद समिति की रिपोर्ट ने एक देश एक चुनाव के प्रस्ताव को लागू करने से पहले राष्ट्रीय संवाद शुरू करने की सलाह दी है। रिपोर्ट यह भी सुझाव देती है कि इसमें शामिल जटिलताओं को देखते हुए इस तरह के सुधार को 2029 के बाद ही लागू किया जा सकता है। लेकिन लगता है कि इस विधेयक को जल्द ही पेश करने की तैयारी है।

विधेयक के पेश होने के साथ ही सभी की निगाहें इस बात पर टिकी होंगी कि क्या सरकार इस ऐतिहासिक चुनाव सुधार पर आम सहमति बनाने के लिए राजनीतिक बाधाओं को पार कर पाएगी।
कहा जा रहा है कि सरकार अब विधेयक के लिए आम सहमति बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है और इसे विस्तृत विचार-विमर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति यानी जेपीसी को भेजने की योजना बना रही है।
जेपीसी से राजनीतिक दलों, राज्य विधानसभा अध्यक्षों से बातचीत करने और यहां तक ​​कि जनता की राय जाने जाने की संभावना है। हालांकि जनता की भागीदारी के तरीकों को अभी अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। 
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'एक देश एक चुनाव' के ढांचे को लागू करने के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की ज़रूरत होगी। खासकर संसद के दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत के साथ कम से कम छह विधेयक पारित करने पड़ सकते हैं। एनडीए को लोकसभा और राज्यसभा दोनों में साधारण बहुमत मिला है, संवैधानिक संशोधनों के लिए ज़रूरी संख्या हासिल करना उसके लिए एक बड़ी चुनौती होगी। 

बता दें कि राज्यसभा में एनडीए के पास 112 सीटें हैं, लेकिन दो तिहाई बहुमत के लिए उसे 164 सीटों की ज़रूरत है। इसी तरह, लोकसभा में गठबंधन की 292 सीटें ज़रूरी 364 सीटों से कम हैं। सरकार की रणनीति उसके गठबंधन के बाहर के दलों से समर्थन जुटाने और मतदान के दौरान अनुकूल मतदान करने पर निर्भर हो सकती है। 

(इस रिपोर्ट का संपादन अमित कुमार सिंह ने किया है)

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