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पसीने छूट जाएंगे सिसोदिया के जंगपुरा में!

मनीष सिसोदिया ने अपनी सीट बदल ली है। अगले दिल्ली विधान सभा चुनाव में वे पटपड़गंज छोड़कर जंगपुरा सीट से लड़ेंगे। पटपड़गंज से वो पिछला चुनाव भी बड़ी मुश्किल से जीते थे। अगर वो इस बार भी यहां से लड़ते तो हार भी सकते थे। वो दस साल पटपड़गंज से विधायक रहे पर अपने एरिया की मेन सड़क की हालत सुधार नहीं सके। इसे मदर डेयरी रोड कहते हैं। उन्हें जंगपुरा से सीट निकालने के लिए भी लोहे के चने चबाने होंगे। 

किसी बहुत 'अपने' ने उन्हें निजामउद्दीन का रुख करने की सलाह दी है। जंगपुरा में कांग्रेस से फरहद सूरी लड़ सकते हैं। भाजपा का तरविंदर सिंह मारवाह को टिकट देना तय है। मारवाह भी पहले कांग्रेस में थे। उनके पुत्र नगर निगम सदस्य हैं।

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फरहद सूरी और मारवाह दोनों का जबरदस्त जनाधार है। फरहद दिल्ली के मेयर भी रहे हैं। जब मतीन अहमद से लेकर सुरेन्द्र बिट्टू जैसे कांग्रेस के नेता पार्टी को छोटे-छोटे लाभ के लिए छोड़कर जाते रहे, तब फरहद सूरी ने कांग्रेस का साथ नहीं छोड़ा। वे पिछला दिल्ली नगर निगम का चुनाव दरियागंज सीट से 200 -250 वोट के अंतर से आप की उम्मीदवार से अप्रत्याशित रूप से हार गए थे। दरियागंज हिस्सा है जंगपुरा विधान सभा सीट का। फरहद सूरी की मम्मी, ताजदार बाबर, को सब मम्मी ही कहते थे। वो कांग्रेस की चार बार बाराखंभा सीट से एमएलए रहीं।

अगर कांग्रेस ने फरहद सूरी और भाजपा ने मारवाह को टिकट दिया तो यकीन मानिए कि जंगपुरा सीट पर सारी दिल्ली की निगाहें होंगी। फरहद सूरी और मारवाह के सामने सिसोदिया के लिए सीट निकालने के लाल पड़े सकते हैं। उनके जंगपुरा से लड़ने के संकेत पिछले हफ्ते मिलने लगे थे। 

कुछ दिन पहले ही निजामउद्दीन के दोस्त शेख जिलानी कह रहे थे, भैया, मनीष सिसोदिया हमारी जंगपुरा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं। मैंने वजह पूछी। जवाब मिला, सिसोदिया बार-बार निजामउद्दीन का दौरा कर रहे हैं। वे दरगाह में भी जियारत के लिए पहुंचे हैं। 
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निजामउद्दीन के बहुत सारे लोगों को याद है जब दिल्ली में दंगे भड़के तो कुछ लोग उनसे मिले। उनसे गुजारिश की कि वो दंगे रूकवाएं। वो दंगा ग्रस्त क्षेत्रों का दौरा करें। सिसोदिया ने उन्हें टका सा जवाब दे दिया- ये मेरे बस की बात नहीं है।

एक बात और। केजरीवाल को भरोसा है कि वो फिर दिल्ली में सरकार बनाने जा रहे हैं। बहुत अच्छी बात है। पर केजरीवाल यह भी बता दें कि वो कांग्रेस और भाजपा के नेताओं को अपनी पार्टी में थोक के भाव से क्यों शामिल कर रहे हैं?

(विवेक शुक्ला के फ़ेसबुक पेज से साभार)
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विवेक शुक्ला
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