संघीय ढाँचा कमज़ोर?
या यूं कह लें कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के रिश्ते में कड़वाहट घोलने का जो दौर शुरू हुआ है वह देश और प्रदेश के विकास के लिए घातक मार्ग है। आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और अब राजस्थान ने अपने यहाँ सीबीआई पर अंकुश लगा दिए हैं। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र या कोई और प्रदेश भी इस सूची में शामिल हो सकता है?इसलिए सवाल यह उठता है कि सत्ता की होड़ कहीं देश के संघीय ढाँचे को नुक़सान तो नहीं पहुँचा रही है?
मामला राजस्थान का
राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच कई दिनों से विवाद चल रहा है। गहलोत ने पायलट पर बीजेपी के साथ मिल कर राज्य सरकार को गिराने की साजिश रचने का आरोप लगाया है। ऐसे में चुरू ज़िले के राजगढ़ थाने के एसएचओ विष्णुदत्त विश्नोई की कथित खुदकुशी के संबंध में सीबीआई ने सोमवार को राजस्थान की कांग्रेसी विधायक कृष्णा पूनिया के घरों पर छापे मारे और उनसे पूछताछ की। इसके बाद 23 मई को विश्नोई का शव उनके आवास की छत से लटकता पाया गया था। राजस्थान सरकार ने इस मामले की जाँच सीबीआई को सौंपी थी।कांग्रेस का हमला
इसे लेकर कांग्रेस ने केंद्र सरकार पर हमला बोला था। इस विधायक ख़रीद फ़रोख़्त काण्ड में कुछ ऑडियो टेप आये, जिसमें बीजेपी नेताओं के साथ साथ केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का नाम भी सामने आया तो बीजेपी की तरफ से मामला सीबीआई को देने की बात उठने लगी। सीबीआई का नाम आते ही अशोक गहलोत सरकार यह निर्णय करने पर मजबूर दिखी।सवाल यह नहीं है कि किसी आपराधिक मामले की जाँच से नहीं होनी चाहिए, सवाल यह है कि इन मामलों की जाँच ऐसे ही समय क्यों तेज़ क्यों हो जाती है जब राजनीतिक माहौल गरमाया हुआ रहता है या किसी प्रदेश में सरकार अस्थिर होने का खेल चलता रहता है?
पिंजड़े का तोता!
केंद्रीय जाँच एजेंसियों के दुरुपयोग के मामले हमारे देश में नए नहीं हैं। इन केंद्रीय एजेंसियों में सबसे ज़्यादा कोई बदनाम हुई है तो वह है सीबीआई, जिसे देश के सुप्रीम कोर्ट ने ‘पिंजरे का तोता’ तक कह दिया है। हालिया दौर में जो दिखाई दे रहा है कि सरकार किस तरह से इस तोते का प्रयोग करती रहती है। केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार हुआ करती थी तब बीजेपी के नेता अरुण जेटली सीबीआई के दुरुपयोग पर ब्लॉग लिखा करते थे और अब बीजेपी की सरकार है तो कांग्रेस के नेता इसके कामकाज की आलोचना करते हैं। सीबीआई को लेकर राहुल गांधी, ममता बनर्जी, शरद यादव, अरविंद केजरीवाल समेत तमाम विपक्षी नेता यह आरोप लगाते लगा रहे हैं।साख पर सवाल
देश की सबसे बड़ी जाँच एजेंसी यानी सीबीआई की विश्वसनीयता की साख पर अंगुली उठना या केंद्र सरकार पर इस एजेंसी के दुरुपयोग का आरोप लगना कोई नई और चौंकाने वाली बात नहीं है।दरअसल सीबीआई के गठन को गुवाहाटी हाई कोर्ट अपने एक फ़ैसले में असंवैधानिक बता चुका है।
सीबीआई है असंवैधानिक?
न्यायाधीश आई. ए. अंसारी तथा इंदिरा शाह के खंडपीठ ने यह फ़ैसला हाई कोर्ट के एक न्यायाधीश द्वारा वर्ष 2007 में दिए गए फैसले को चुनौती देते हुए नावेन्द्र कुमार द्वारा दायर रिट याचिका पर दिया था। इस फैसले में अदालत ने कहा, ‘हम 01.04.1963 के प्रस्ताव को रद्द करते हैं, जिसके जरिए सीबीआई का गठन किया गया था। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ केंद्र सरकार और सीबीआई दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है।केंद्र-राज्य टकराव
लेकिन वर्तमान दौर में सीबीआई को जिस तरह से घेरा जा रहा है वह केंद्र राज्य संबंधों में टकराव के एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, उससे पहले आंध्र प्रदेश में चंद्राबाबू नायडू, छत्तीसगढ़ और अब राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार ने फ़ैसला लिया है कि राज्य में सीबीआई को किसी की जाँच करने के लिए राज्य सरकार से अनुमति लेनी होगी।
राज्य का अधिकार क्षेत्र
क़ानून-व्यवस्था राज्य के अधिकारों की सूची में शामिल है, लिहाज़ा, इस एक्ट की धारा 6 के तहत मामलों की जाँच के लिए राज्यों की सहमति आवश्यक है और ज़्यादातर राज्य सरकारें बहुत सारे मामलों के लिए स्थायी सम्मति की अधिसूचना जारी कर चुकी हैं।अब इस सम्मति को एक एक कर राज्य सरकारें वापस लेने लगी हैं, जिससे इस एजेंसी के बनाये जाने के सिद्धांत या औचित्य पर ही सवाल खड़े होने लगे हैं।
राज्य जो आदेश जारी कर रहे हैं उनके मुताबिक़ राज्यों में अब किसी भी ज़रूरी मामले में तलाशी, छापामारी या जाँच का काम सीबीआई के बजाय राज्य सरकार के अधीन काम करने वाला ऐंटी करप्शन ब्यूरो करेगा।
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