तीन राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे के राजनीतिक निहितार्थों की चर्चा करने के पहले इसके सांस्कृतिक रूप से शुभ परिणामों को नोट कर लेना चाहिए। कितना रोचक है संबित पात्रा को सभ्यता का पाठ पढ़ाती उन ऐंकर महोदया को देखना जो स्वयं बदतमीज़ी की पाठशाला पिछले कई सालों से चलाती रही हैं। कितना सुखदायी है, इतने बरसों बाद बीजेपी के प्रवक्ताओं को सामान्य स्वर में बात करते सुनना, और कितना रोचक है उनका यह प्रयत्न देखना कि इन चुनावों से मोदी जी की लोकप्रियता के गिरने-उठने का कोई संबंध न जुड़ने पाए।