बुलडोजर से घरों को गिराने के औचित्य पर सवाल उठाते हुए तमाम याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट से लेकर देश की तमाम अदालतों में लंबित हैं। यानी अंतिम फैसला आना बाकी है, इसके बावजूद बीजेपी शासित यूपी, एमपी, गुजरात में बुलडोजर पॉलिटिक्स जारी है। इसीलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस गोविन्द माथुर को कहना पड़ा कि बुलडोजर से इस तरह घरों को गिराना अवैध है। इंडियन एक्सप्रेस ने रविवार को पूर्व चीफ जस्टिस से बात की, जिसे सोमवार के अखबार में प्रमुखता से छापा गया है। पूर्व चीफ जस्टिस की टिप्पणी इस मामले में खासी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
पूर्व चीफ जस्टिस माथुर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि यह पूरी तरह से अवैध है। भले ही आप एक पल के लिए भी मान लें कि निर्माण अवैध था, वैसे ही करोड़ों भारतीय कैसे रहते हैं, यह अनुमति नहीं है कि आप रविवार को एक घर को ध्वस्त कर दें जब उस घर के सारे लोग हिरासत में हों। उन्होंने कहा कि यह तकनीकी मुद्दा नहीं बल्कि कानून के शासन का सवाल है।
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पूर्व चीफ जस्टिस की ये टिप्पणियां महत्वपूर्ण हैं क्योंकि यह वही जज हैं, जिन्होंने 8 मार्च, 2020, रविवार को, सीएए विरोधी प्रदर्शनों में आरोपियों के लखनऊ शहर में "नाम और शर्म" के पोस्टर लगाने के लखनऊ प्रशासन के विवादास्पद निर्णय पर स्वत: संज्ञान लिया था। अदालत ने योगी सरकार के इस कदम को गैरकानूनी बताया था और कहा था कि आरोपियों के निजता के अधिकार का उल्लंघन किया गया है।
प्रयागराज में रविवार को वेलफेयर पार्टी के राज्य महासचिव मोहम्मद जावेद की पत्नी परवीन फातिमा के घर को बुलडोजर से मलबे के ढेर में बदल दिया गया। इसकी खास वजह यह है कि जावेद को पिछले जुमे पर हुए प्रदर्शन का मास्टरमाइंड बताया गया। हालांकि प्रयागराज के एसएसपी का बयान है कि बाप-बेटी मिलकर प्रोपेगेंडा करते हैं। इसमें जिस बेटी का उन्होंने अप्रत्यक्ष जिक्र किया, उसका नाम आफरीन फातिमा है। वो जेएनयू की पूर्व छात्र नेता है और इस समय एक्टिविस्ट है। दरअसल, सरकार के निशाने पर आफरीन फातिमा ही है। इसलिए घर को टारगेट किया गया।
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आफरीन फातिमा
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी इस रिपोर्ट में लिखा है कि यूपी सरकार द्वारा रविवार को प्रयागराज में मोहम्मद जावेद के घर को तोड़ने के लिए लाया गया बुलडोजर एक परिचित प्लेबुक का हिस्सा है। यह मुद्दा तीन अदालतों, सुप्रीम कोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट विचाराधीन है, जहां इन्हें चुनौती दी गई है।तीनों में मामले अधर में हैं।
इन याचिकाओं में राज्य के नगरपालिका और शहरी नियोजन कानूनों के कथित उल्लंघन के बहाने घरों को बुलडोजिंग करने को मौलिक अधिकारों और उचित प्रक्रिया के उल्लंघन के रूप में अदालतों के समक्ष चुनौती दी गई है।
इस साल 21 अप्रैल को, सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में बुलडोजर के खिलाफ स्टे जारी किया था, जहां उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) ने इलाके में हिंसा के एक दिन बाद अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू किया था। जस्टिस एल. नागेश्वर राव और जस्टिस बी. आर. गवई की बेंच ने कहा था कि वह इस बात की जांच करेगी कि अभियान से पहले उचित प्रक्रिया का पालन किया गया था या नहीं। जबकि जस्टिस राव रिटायर हो चुके हैं, यह मामला अगस्त में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है।
उधर, उसी दिन, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें सरकार को आरोपी व्यक्तियों के घरों को बुलडोज करने से रोकने की मांग की गई थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि इस याचिका को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करना उचित नहीं होगा।
हालांकि, जो लोग प्रभावित हुए थे, उन्होंने भी अलग से हाईकोर्ट का रुख किया है और मामलों की सुनवाई होनी बाकी है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने वालों में 22 वर्षीय आसिफ खान है, जिनका घर और तीन दुकानों को एक हिंदू महिला के अपहरण के आरोप में ध्वस्त कर दिया गया था। जबकि इस मामले की हकीकत यह है कि हाईकोर्ट की सिंगल जज की बेंच ने माना था कि महिला बालिग थी। उसने आसिफ को स्वीकार किया था। हाईकोर्ट ने उस समय इस अंतर-धार्मिक जोड़े को सुरक्षा तक प्रदान की थी। जिसका घर यह कहकर गिराया गया कि उसने हिन्दू महिला का अपहरण किया था।
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दिसंबर 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम के विरोध के बाद, यूपी सरकार ने प्रदर्शनकारियों से नुकसान की वसूली और यहां तक कि उनकी संपत्ति की नीलामी के लिए नोटिस जारी किया था। इस इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरिम रोक लगाने के लिए कदम बढ़ाया था। यह 3 दिसंबर, 2020 का केस है, लेकिन तब से किसी भी मामले की विस्तार से सुनवाई नहीं हुई है।
इस साल फरवरी में, सुप्रीम कोर्ट ने भी यूपी सरकार की खिंचाई की कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2011 के फैसले के तहत सीएए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई उचित प्रक्रिया के अनुरूप नहीं थी और अदालत द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का उल्लंघन करती थी।
यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह 2020 में बनाए गए एक नए कानून के तहत नोटिस वापस लेगी। नया कानून भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष चुनौती के अधीन है और इस पर सुनवाई होनी बाकी है।
पिछले महीने, द इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि कैसे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत खरगोन (एमपी) में बने एक घर को इसलिए गिरा दिया गया, क्योंकि वो एक मुस्लिम का घर था। खारगोन में साम्प्रदायिक हिंसा हुई थी, उस हिंसा में पुलिस ने उस घर के शख्स को आरोपी बना दिया था और इसके बाद उसका घर बुलडोजर से गिरा दिया गया। जिसका घर गिराया गया, उसे अपील करने तक का समय नहीं दिया गया।
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