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प्रधानमंत्री मोदी 'मुफ़्त की रेवड़ियों' को मुद्दा क्यों बना रहे हैं?

'15 लाख रुपये हर भारतीय के खाते में डाले जाएँगे'। चुनाव पूर्व यह वादा 'मुफ्त की रेवड़ियाँ' बांटना कहा जाएगा या नहीं? ऐन चुनाव से पहले किसानों को 6000 रुपये देने की घोषणा को क्या कहा जाएगा? चुनाव तक मुफ्त राशन योजना को बढ़ाने को क्या कहा जाएगा? और चुनाव के घोषणा पत्र में 3 एलपीजी सिलेंडर मुफ़्त देने, महिलाओं की मुफ़्त बस यात्रा, छात्राओं को स्कूटी, लैपटॉप देने, मछुआरों को 4000 रुपये देने जैसी घोषणाओं को क्या कहा जाएगा? क्या इन्हें फ्रीबीज या मुफ्त की रेवड़ियाँ कहा जा सकता है? 

प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी ने भले ही ये घोषणाएँ या ऐसी ही और घोषणाएँ अलग-अलग चुनावों में की हों, लेकिन अब वही पीएम ऐसी घोषणाओं पर सवाल उठा रहे हैं। वह ऐसी घोषणाओं को मुफ़्त की रेवड़ियाँ बांटना कहकर विपक्षी दल, खासकर, अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी पर निशाना साध रहे हैं। प्रधानमंत्री द्वारा फ्रीबीज को लेकर की जा रही आपत्ति से सवाल उठ रहे हैं कि आख़िर ऐसा वह अब क्यों कह रहे हैं? क्या सरकार की आर्थिक स्थिति ख़राब है और इसलिए वह सचेत हो रहे हैं या फिर अरविंद केजरीवाल की पार्टी की घोषणाओं से वह सशंकित हैं?

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इन सवालों का जवाब बाद में, पहले यह जान लें कि बीजेपी का इस मामले में अब तक कैसा रवैया रहा है। सबसे पहले बात 2014 के चुनावों की जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने थे।

2014 के आम चुनावों के प्रचार के दौरान मोदी ने कहा था कि अगर विदेशों से काला धन वापस आ जाता है तो उनकी सरकार हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपये जमा करेगी। लेकिन सत्ता में आने के एक साल बाद ही बीजेपी ने बता दिया था कि वह एक जुमला था। तब तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने खुद इन्हें जुमला कहा था यानी ऐसे लोकलुभावन वादे जो सिर्फ चुनाव जीतने के लिए गढ़े जाते हैं। ऐसी ही उज्ज्वला योजना थी। सरकार उज्ज्वला योजना की सफलता का बखान करती रहती है, लेकिन जब तब ख़बरें आती रहती हैं कि गरीबों को मुफ्त एलपीजी कनेक्शन तो दिया गया, लेकिन गैस इतनी महंगी हो गई कि गरीब सिलेंडर को रिफिल ही नहीं करा पा रहे हैं। 

2019 में चुनाव से पहले भी ऐसे ही लोकलुभावन घोषणाएँ की गई थीं। इसमें सबसे प्रमुखता से किसानों पर केंद्रित किया गया था। कहा गया था कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत छोटे और सीमान्त किसानों को 6000 रुपये सालाना मिलेंगे। 24 फरवरी 2019 से यह योजना लागू हुई। इसके दो महीने बाद देश में आम चुनाव हुए थे।

चुनाव से पहले यह भी दावा किया गया था कि किसानों की आमदनी 2022 तक दोगुनी कर दी जाएगी। इस पर बार-बार सवाल उठाए जाते हैं। 2019 के चुनाव से पहले बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के लिए संकल्प पत्र में भारत की आज़ादी के 75 साल के लिए 75 वादे किए थे।

यूपी 2022: बीजेपी के चुनावी वादे

  • बीजेपी ने मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना के अंतर्गत वित्तीय सहायता को 15,000 से बढ़ाकर 25,000 रुपए करने का वादा किया।
  • हर विधवा और निराश्रित महिला को 1500 रुपए प्रतिमाह पेंशन देने का वादा किया।
  • कॉलेज जाने वाली मेधावी छात्राओं को 'रानी लक्ष्मी बाई' योजना के तहत मुफ्त स्कूटी देने का वादा।
  • 'मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह अनुदान योजना' के अंतर्गत गरीब परिवार की बेटियों के विवाह के लिए 1 लाख रुपए तक की सहायता।
  • 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं के लिए सार्वजनिक परिवहन में मुफ्त यात्रा का वादा।
  • उज्ज्वला योजना के सभी लाभार्थियों को होली तथा दिवाली के मौके पर दो मुफ्त एलपीजी सिलेंडर की घोषणा।

चुनाव में अन्न योजना!

महामारी के दौर में शुरू हुई प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना पिछले साल (नवंबर, 2021) में ख़त्म हो रही थी। इसको देखते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ ने केन्द्र सरकार की योजना के साथ भागीदार बनकर यूपी की जनता के लिए होली तक मुफ्त राशन वितरण किये जाने की घोषणा की। उसके बाद से यूपी के पात्र कार्ड धारकों को हर महीने 10 किलो राशन मुफ्त दिया जाने लगा। केंद्र ने भी प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को मार्च 2022 तक बढ़ा दिया था। यूपी में 10 फ़रवरी से 7 मार्च तक ही चुनाव थे।

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मणिपुर में 'मुफ़्त रेवड़ियाँ'?

इसी साल मणिपुर में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी की ओर से जेपी नड्डा ने घोषणापत्र जारी किया था। उसमें मेधावी छात्राओं को दोपहिया वाहन देने, वरिष्ठ नागरिकों के लिए मासिक पेंशन को 1,000 रुपये तक बढ़ाने तथा 100 करोड़ रुपये का स्टार्ट-अप कोष स्थापित करने का वादा किया गया। नड्डा ने कहा था कि ‘12 वीं कक्षा पास करने वाले सभी मेधावियों को लैपटॉप भी उपलब्ध कराए जाएंगे।’पार्टी ने वादा किया था कि मणिपुर के किसानों के लिए प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की वित्तीय सहायता 6,000 रुपये से बढ़ाकर 8,000 रुपये प्रति वर्ष की जाएगी।

राजस्थान, गोवा में भी फ्रीबीज

गोवा व‍िधानसभा 2022 में बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में कहा था क‍ि पार्टी की ओर से हर घर को 3 एलपीजी स‍िलेंडर मुफ्त और युवा बेरोजगारों को 5 हजार प्रति माह का रोजगार भत्‍ता दिया जाएगा। 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी ने बेरोज़गारों को 5 हज़ार रुपए भत्ता देने का वादा किया था। इसके साथ ही बीजेपी ने राजस्थान में हर साल 30 हजार सरकारी नौकरी देने, किसानों की आय दोगुनी करने का वादा भी किया था। 

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पश्चिम बंगाल 2021: बीजेपी का संकल्प पत्र

2021 में पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले अमित शाह ने कहा था कि हर वर्ष किसानों को भारत सरकार के जो 6000 रुपये आते हैं उसमें राज्य सरकार का 4,000 रुपये जोड़कर कुल 10,000 रुपये किसानों को हर साल दिए जाएँगे। उन्होंने कहा था-

  • कृषक सुरक्षा योजना के तहत हम हर भूमिहीन किसान को हर वर्ष 4,000 रुपये की सहायता देंगे।
  • 5 रुपये की कीमत पर दिन में तीन बार पोषण युक्त आहार देने के लिए अन्नपूर्णा रसोई शुरू की जाएगी।
  • चाय बागान के श्रमिकों का वेतन बढ़ाकर 350 रुपये प्रतिदिन किया जाएगा।
  • मछुआरों को सालाना 6,000 रुपये की सहायता देने का काम भाजपा सरकार करेगी।
'फ्रीबीज़' को लेकर अब बहस शुरू हो गई है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा है कि चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार का वादा और इसे बाँटना एक गंभीर मुद्दा है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था को नुक़सान हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें चुनावों से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए 'मुफ्त' का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई। आम आदमी पार्टी यानी आप ने इस याचिका का विरोध किया और कहा कि योग्य और वंचित जनता के सामाजिक आर्थिक कल्याण के लिए योजनाओं को 'मुफ्त' के रूप में नहीं कहा जा सकता है। पार्टी ने याचिकाकर्ता पर आरोप लगाया कि उनके बीजेपी से मजबूत संबंध हैं और वह एक विशेष राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।

आप का यह आरोप इसलिए अहम है कि फ्रीबीज को लेकर बीजेपी और आम आदमी पार्टी में जुलाई महीने से ही तकरार बढ़ गई है। 16 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का उद्घाटन के दौरान 'लोगों को मुफ्त सुविधाएँ देने' को 'रेवड़ी संस्कृति' बताया था।

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प्रधानमंत्री के इस बयान के तुरंत बाद अरविंद केजरीवाल ने कहा था, 'मैं दिल्ली के ग़रीब और मध्य वर्ग के 18 लाख बच्चों को मुफ़्त में शानदार शिक्षा दे रहा हूँ। पहले 18 लाख बच्चों का भविष्य बर्बाद था। मैं इनका भविष्य बना रहा हूँ तो क्या गुनाह कर रहा हूँ...।' उन्होंने पूछा था कि क्या यह रेवड़ी बांटना है। आठ अगस्त को एक बयान में अरविंद केजरीवाल ने फिर से हमला किया और कहा था कि कॉर्पोरेट क्षेत्र का कर्ज '10 लाख करोड़ रुपये' माफ करना मुफ़्त की रेवड़ी है। 

आप प्रमुख केजरीवाल ने गुरुवार को कहा, 'पिछले 75 वर्षों में कभी भी सरकार ने बुनियादी खाद्यान्न पर टैक्स नहीं लगाया। पेट्रोल और डीजल पर टैक्स 1000 करोड़ से अधिक है। वे अब कह रहे हैं कि सरकार की सभी मुफ्त चीजें खत्म होनी चाहिए, सरकारी स्कूलों, अस्पतालों में फीस ली जानी चाहिए। वे कह रहे हैं कि मुफ्त राशन बंद कर दिया जाए।' उन्होंने सवाल किया - “कहां गया केंद्र का सारा पैसा? वे इस सरकारी पैसे से अपने दोस्तों का कर्ज माफ कर रहे हैं। उन्होंने अपने अरबपति दोस्तों के टैक्स भी माफ कर दिए हैं। लेकिन जनता को टैक्स चुकाना पड़ रहा है।'

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केजरीवाल ने कहा- 'केंद्र ने बार-बार दोहराया है कि उनके पास पैसा नहीं है, राज्यों को दिया गया पैसा कम कर दिया है। टैक्स संग्रह 2014 की तुलना में बहुत अधिक है लेकिन उनके पास पैसा नहीं है। पैसा कहां जा रहा है?' 

तो सवाल वही है कि प्रधानमंत्री मोदी बार-बार क्यों 'मुफ़्त की रेवड़ी' या फ्रीबीज का ज़िक्र कर रहे हैं? क्या अरविंद केजरीवाल द्वारा लगाए गए आरोप सही हैं या फिर उनकी बढ़ती लोकप्रियता की वजह से वह इसको मुद्दा बना रहे हैं? ये सवाल इसलिए कि हाल की सर्वे रिपोर्ट अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता बढ़ी हुई दिखाती हैं।

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अमित कुमार सिंह
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