कोरोना के संक्रमण से जूझ रहे लोगों को इलाज के दौरान दी जाने वाली प्लाज्मा थेरेपी को भारत सरकार ने इस महामारी के इलाज के प्रोटोकॉल से हटा दिया है। यह फ़ैसला एम्स-आईसीएमआर, कोरोना के लिए बनी नेशनल टास्क फोर्स और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने लिया है। इस फ़ैसले से पता चलता है कि प्लाज्मा थेरेपी कोरोना संक्रमितों के इलाज में उतनी कारगर नहीं रही, जितना इसके होने की बात कही जा रही थी।
पीटीआई के मुताबिक़, 16 मई को हुई टास्क फ़ोर्स की बैठक में इसके सदस्यों ने कहा था कि वे कोरोना के मरीजों के इलाज के लिए प्लाज्मा थेरेपी को जारी रखने के पक्ष में नहीं हैं। नेशनल टास्क फ़ोर्स ने कहा था कि प्लाज्मा थेरेपी उतनी प्रभावी नहीं है और कई मामलों में इसका बेवजह इस्तेमाल किया जा रहा था।
टास्क फ़ोर्स की सिफ़ारिश पर आईसीएमआर ने नई गाइडलाइंस जारी की है और इसमें कोरोना के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी को हटा दिया गया है।
इस्तेमाल ग़ैर ज़रूरी और अवैज्ञानिक
कुछ दिन पहले कई चिकित्सकों और वैज्ञानिकों ने प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन को पत्र लिखकर कहा था कि प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल ग़ैर ज़रूरी और अवैज्ञानिक है। पत्र में कहा गया था कि प्लाज़्मा थेरेपी को लेकर जारी की गई गाइडलाइंस कोरोना के शुरुआती दौर की हैं।
चिकित्सकों ने लिखा था कि ताज़ा शोध से पता चलता है कि प्लाज़्मा थेरेपी का कोरोना के इलाज में कोई भी फ़ायदा नहीं है और इसके बाद भी देश भर के अस्पतालों में इसके इस्तेमाल के लिए कहा जा रहा है। मरीजों और उनके परिजनों को इसके लिए जहां-तहां भागना पड़ता है।
मेडिकल जर्नल लांसेट में कोरोना महामारी के संक्रमण से जूझ रहे लोगों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी को लेकर एक रिपोर्ट छपी थी। यह रिपोर्ट एक बड़े ट्रायल के आधार पर छापी गई थी। इससे पता चला था कि प्लाज्मा से मरीजों की सेहत में कोई ख़ास सुधार नहीं होता। ऐसी ही रिपोर्ट चीन और नीदरलैंड में भी सामने आ चुकी है।
भारत की ओर से कराए गए बड़े ट्रायल PLACID में भी इस बात का पता चला था कि कोरोना के इलाज में प्लाज्मा कारगर नहीं है।
क्या है प्लाज्मा थेरेपी?
प्लाज्मा थेरेपी को मेडिकल साइंस की भाषा में प्लाज़्माफेरेसिस नाम से जाना जाता है। कोरोना से ठीक हो चुके मरीज जिनके खून में एंटीबॉडी विकसित हो चुकी है, उन मरीजों का खून निकालकर उसमें से प्लाज्मा को अलग कर कोरोना पीड़ित दूसरे मरीजों को इसे दिया जाता था। माना जाता है कि इससे संक्रमित व्यक्ति का इम्यून सिस्टम मजबूत होता था और उसके शरीर को कोरोना के संक्रमण से लड़ने में मदद मिलती थी।
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