'महंगाई डायन खाए जात है...'। 2010 में आई 'पीपली लाइव' फ़िल्म के गाने के इस बोल का तब ख़ूब इस्तेमाल किया जाता था जब यूपीए सरकार में पेट्रोल की क़ीमतें क़रीब 71 रुपये प्रति लीटर तक पहुँच गई थीं। अब सात साल बाद ये क़ीमतें 100 रुपये से ज़्यादा हो गई हैं, लेकिन न तो उस तरह का कोई नारा है और न ही नारा लगाने वाले। सात साल पहले बीजेपी नेता स्मृति ईरानी से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक क़ीमतों पर बात करते थे, पूरी बीजेपी प्रदर्शन करती थी, गैस की क़ीमतें बढ़ने पर सिलेंडर लेकर प्रदर्शन की तसवीरें होती थीं। अब वैसा कुछ नहीं है। सवाल है कि वे अब 100 रुपये से ज़्यादा पेट्रोल होने पर क्या वैसी हायतौब मचा रहे हैं? आख़िर वे अब क्या कह रहे हैं?