पी. चिदंबरम ने शनिवार को चुनावी बॉन्ड को 'वैध रिश्वतखोरी' क़रार दिया है। उन्होंने दावा किया है कि जैसे ही इसकी नई किश्त 4 अक्टूबर को खुलेगी, यह भारतीय जनता पार्टी के लिए सुनहरी फसल होगी। जिस चुनावी बॉन्ड पर कांग्रेस नेता चिदंबरम ने सवाल उठाए हैं उस पर लगातार विवाद होते रहे हैं। बिना नाम के मिलने वाले चुनावी बॉन्ड को अपारदर्शी बताया जाता रहा है जबकि इसको पारदर्शिता के नाम पर ही शुरू किया गया था। इसके तहत मिलने वाले चुनावी चंदे का अधिकतर हिस्सा बीजेपी को ही मिलता रहा है।
इसी को लेकर चिदंबरम ने बीजेपी पर हमला किया। उन्होंने ट्वीट किया, 'चुनावी बॉन्ड की 28वीं किश्त 4 अक्टूबर को खुलेगी। यह भाजपा के लिए सुनहरी फसल होगी। पिछले रिकॉर्ड को देखें तो तथाकथित गुमनाम चंदे का 90 प्रतिशत हिस्सा भाजपा को जाएगा। साठगांठ वाले पूंजीपति अपनी चेकबुक खोलकर दिल्ली में स्वामी और मास्टर को परोसेंगे। चुनावी बॉन्ड वैध रिश्वतखोरी है।'
The 28th tranche of Electoral Bonds will open on October 4.
— P. Chidambaram (@PChidambaram_IN) September 30, 2023
It will be a golden harvest for the BJP
Going by the past records, 90 per cent of the so-called anonymous donations will go to the BJP
The crony capitalists will open their cheque books to write out their
'tribute' to…
उनका यह ट्वीट इसलिए आया है कि केंद्र सरकार ने एक दिन पहले ही यानी शुक्रवार को चुनावी बॉन्ड की 28वीं किश्त जारी करने को मंजूरी दी है। यह 4 अक्टूबर से 10 दिनों के लिए बिक्री के लिए उपलब्ध होगा। यह फैसला राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव से पहले आया है। इन राज्यों में चुनाव की तारीखों की घोषणा जल्द होने की संभावना है।
बता दें कि राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत चुनावी बॉन्ड को राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में पेश किया गया है।
क्या है चुनावी बॉन्ड?
मोदी सरकार ने 2017 में चुनावी डोनेशन योजना की घोषणा की थी। 2019 के आम चुनाव से एक साल पहले यह योजना 2018 में केंद्र सरकार लेकर आई। इसके तहत साल में चार बार चुनावी बॉन्ड खरीदे जा सकते हैं। अप्रैल, जनवरी, जुलाई और अक्टूबर महीने के पहले दस दिनों तक चुनावी बॉन्ड खरीदने का नियम तय हुआ था। मोदी सरकार ने पिछले साल नवंबर में हिमाचल और गुजरात चुनावों से पहले बदलाव किया। उसके मुताबिक केंद्र सरकार द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभा के आम चुनावों के वर्ष में पंद्रह दिनों की अतिरिक्त अवधि में चुनावी बॉन्ड खरीदने की तारीख तय की जा सकेगी।
इस बॉन्ड को कोई नागरिक या बड़े कॉरपोरेट, उद्योगपति भारतीय स्टेट बैंक की शाखा से खरीद सकते हैं। यह एक तरह का पैसे के रूप में वचन है जो आप किसी राजनीतिक दल को डोनेशन के तौर पर देते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये का लिया जा सकता है।
चुनावी बॉन्ड में चंदे देने वाले की पहचान छिपी रहती है। यानी कोई भी उद्योगपति, कॉरपोरेट, आम आदमी चुनावी बॉन्ड खरीदकर अपनी पहचान बताए बिना किसी भी राजनीतिक दल को डोनेशन दे सकता है। पुराने नियम में बड़ी रकम देने पर बताना पड़ता था कि उन्हें चंदा या डोनेशन कहाँ से आया है।
इसी को लेकर लगातार सवाल उठाए जाते रहे हैं कि जब चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले की जानकारी सार्वजनिक नहीं होगी तो पता कैसे चलेगा कि कौन सा शख्स वैध या अवैध कमाई चंदे के रूप में किसी पार्टी को दे रहा है। यहीं पर पारदर्शिता का सवाल उठा।
बता दें कि पिछले साल जून में चुनाव सुधार पर काम करने वाला संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि 2020-21 में बीजेपी को सबसे ज़्यादा चंदा मिला था। 20,000 रुपये से अधिक का चंदा देने के मामले में चुनाव आयोग में जमा की गई रिपोर्ट के अनुसार, बीजेपी को वित्तीय वर्ष 2020-21 में 477.54 करोड़ रुपये का चंदा मिला, जबकि इसी अवधि के दौरान कांग्रेस को 74.5 करोड़ रुपये मिले थे।
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 2020 में पार्टियों द्वारा 3,429.56 करोड़ रुपये के चुनावी बांड को भुनाया गया और इसमें से 87.29 प्रतिशत चार राष्ट्रीय दलों– बीजेपी, कांग्रेस, टीएमसी और एनसीपी को मिला।
एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार बीजेपी ने साल 2019-20 में अपनी संपत्ति 4847.78 करोड़ घोषित की। दूसरे नंबर पर मायावती की बीएसपी थी जिसने अपनी संपत्ति 698.33 करोड़ बताई। कांग्रेस तीसरे नंबर पर रही और उसकी संपत्ति 588.16 करोड़ बताई गई थी।
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