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एक देश - एक खाद के पीछे मोदी सरकार की मंशा क्या है

एक देश एक उर्वरक...यानी किसानों को अब खाद नए कलेवर में मिलेगी। खाद के राजनीतिकरण की यह शुरुआत है। अभी तक किसानों को सब्सिडी पर मिलने वाली खाद तमाम राजनीति से दूर रही है। केंद्र में सरकारें बदलती रहीं लेकिन खाद पर सब्सिडी कायम रही और उसे राजनीति का शिकार नहीं बनाया गया। केंद्र सरकार ने 24 अगस्त को फर्टिलाइजर (उर्वरक यानी खाद) कंपनियों के लिए इस संबंध में एक आदेश जारी किया, जिसका विश्लेषण जरूरी है।

क्या कहा है सरकार ने

उर्वरक मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, मोदी सरकार ने केंद्र के उर्वरक सब्सिडी कार्यक्रम को प्रधान मंत्री योजना के रूप में एक ब्रांड बनाने का फैसला किया है। जिसका नाम "प्रधानमंत्री भारतीय जन उर्वरक परियोजना" रखा गया है। यहां यह बता देना जरूरी है कि किसान सभी उर्वरक को अपनी भाषा में खाद बोलते हैं। लेकिन असल में फर्टिलाइजर कारखानों से जो खाद निकलती है वो उर्वरक है और जो खाद प्राकृतिक रूप से बनती है वो देसी भाषा में भी खाद ही कहलाती है। लेकिन प्रचलन में खाद शब्द सभी के लिए इस्तेमाल होता है।

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सरकार के मुताबिक देश भर के लाखों किसानों द्वारा खरीदी जाने वाली खाद के पैकेजिंग बैग में एक समान नया लोगो और डिजाइन होगा। उर्वरक कंपनियों को अपनी पैकेजिंग में नया नाम प्रमुखता से प्रदर्शित करना होगा। नए पैकेजिंग स्टैंडर्ड के अनुसार, एक खाद बैग के सबसे ऊपर आधे हिस्से पर दो-तिहाई स्पेस का इस्तेमाल प्रधानमंत्री की योजना के रूप में सब्सिडी कार्यक्रम को बताने के लिए होगा। जाहिर है कि इसमें प्रधानमंत्री का फोटो होगा। अधिसूचना में कहा गया है कि उर्वरक फर्म शेष स्पेस का इस्तेमाल अपने लोगो और ब्रांडिंग के साथ उत्पाद की जानकारी के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं। लेकिन कंपनी का नाम बहुत छोटा करके दिया जाएगा।
15 सितंबर से पुरानी बोरी यानी जैसा अभी चल रहा है, वो सब खत्म हो जाएगा। नई बोरियां लानी होंगी और उसमें खाद को भरना होगा।  सरकार का आदेश है कि 2 अक्टूबर से एक भी पुरानी बोरी की खाद बाजार में दिखाई नहीं देनी चाहिए। हालांकि कुछ मामलों में 15 दिसंबर तक का समय बोरियों को नए लोगो के साथ बदलने का आदेश भी दिया गया है।
सरकार ने नाम भी सुझाएः सब्सिडी वाले खाद की ब्रांडिंग में "प्रधानमंत्री" (हिंदी में) और "भारत" शब्द होंगे।सभी खाद बैग, चाहे यूरिया या डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) या म्यूरेट (एमओपी) या एनपीके हों, ब्रांड नाम 'भारत यूरिया', 'भारत डीएपी', 'भारत एमओपी' और ' भारत एनपीके' लिखना पड़ेगा। यह आदेश सरकारी और गैर सरकारी दोनों तरह की खाद कंपनियों पर लागू होगा।

राजनीतिक मकसद

इस आदेश का स्पष्ट रूप से राजनीतिक मकसद है। यूपी में जब गरीबों के लिए पांच किलो राशन जब लॉकडाउन में बांटा गया था, तो उस पर भी पीएम मोदी और सीएम योगी के फोटो लगाए गए थे। यानी संदेश यही था कि सरकार नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष की मेहरबानी की वजह से उनको यह राशन मिल रहा है। वही प्रक्रिया खाद में भी अपनाई गई है। किसान यह बखूबी जानता है कि सरकार की सब्सिडी की वजह से उसे सस्ती खाद मिल रही है, हालांकि उसके दाम भी बहुत बढ़ चुके हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय से खाद पर सब्सिडी मिल रही है। यह वह दौर था जब भारत के पास कोई फर्टिलाइजर कंपनी नहीं थी। सारी खाद बाहर से आयात होती थी। लेकिन बहुत जल्द भारत में फर्टिलाइजर के कारखाने खुले। लेकिन किसानों को सब्सिडी मिलती रही। 
नेहरू से लेकर लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, पी वी नरसिम्हा राव, अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ मनमोहन सिंह तक किसी को भी यह जरूरत महसूस नहीं हुई कि वो अपने फोटो छापकर किसानों को बताएं कि यह सब्सिडी उन्हें केंद्र सरकार से मिल रही है। हालांकि पीएम मोदी को भी अभी तक जरूरत महसूस नहीं हुई थी। पिछला आम चुनाव उन्होंने बिना ऐसे किसी प्रचार के जीता था। लेकिन अब खाद की बोरियों पर प्रधानमंत्री योजना का लोगो 2024 के आम चुनाव की तैयारी का हिस्सा क्यों न माना जाए। इसके अलावा और कोई वजह नहीं है कि सरकार सब्सिडी के बारे में गा-गा कर बताए।
2 अक्टूबर से बाजार में नई बोरियों में नए लोगो और नाम के साथ खाद मिलने लगेगी। शायद गांधी जयंती पर पीएम मोदी खाद सब्सिडी को नए नाम के साथ जोर-शोर से पेश भी करें। हालांकि अभी इस संबंध में आधिकारिक रूप से कोई घोषणा नहीं की गई है। लेकिन पीएम मोदी को ऐसी योजनाओं की मार्केटिंग में महारत हासिल है तो बहुत मुमकिन है कि सरकार इसे भव्य इवेंट के रूप में पेश करे।

कंपनियों की उलझन

यह आदेश जारी हुए अभी एक ही दिन हुआ है। इसलिए कंपनियों की पूरी बात सामने नहीं आ सकी है। अलबत्ता बिजनेस स्टैंडर्ड अखबार ने एक बड़ी खाद कंपनी के अधिकारी का नाम न छापने की शर्त के साथ बताया है कि यह आदेश 'उनकी ब्रांड वैल्यू और बाजार की प्रतियोगिता की हत्या कर देगा।

उस अधिकारी ने कहा कि कुल पैकेजिंग के बहुत छोटे हिस्से में कंपनी के नाम का उल्लेख किया जा सकता है। यह कदम फर्टिलाइजर कंपनियों को नुकसान पहुंचा सकता है क्योंकि हर प्रॉडक्ट की पहचान उसके नाम से है। नाम ही उसे एक दूसरी कंपनी के प्रॉडक्ट से अलग करते हैं। किसानों के खेतों में जाते समय फर्म की छवि बनाने में भी इससे मदद मिलती है। खाद कंपनियाँ बहुत सारी गतिविधियाँ गांवों में जाकर करती हैं जैसे कि क्षेत्र स्तरीय प्रदर्शन, फसल सर्वेक्षण आदि, जहाँ उनके ब्रांड प्रमुखता से प्रदर्शित होते हैं। किसान भी उसकी पहचान दिल दिमाग में बैठा लेते हैं और उसी हिसाब से खरीदारी करते हैं। यह सब अब रुक जाएगा। एक अन्य मैनेजर ने कहा हमे मार्केटिंग के नए रास्ते तलाशने में बहुत समय लगेगा।

सब्सिडी का गणित

केंद्र सरकार सब्सिडी कार्यक्रम के तहत फर्टिलाइजर कंपनियों को अपने उत्पादों को बाजार से कम कीमतों पर किसानों को बेचने के लिए पैसे देती है। यह सब्सिडी 2021-22 में ₹1.62 लाख करोड़ थी और अंतरराष्ट्रीय कीमतों में उछाल के कारण 2022-23 में रिकॉर्ड ₹2.50 लाख करोड़ को छूने का अनुमान है। भारत डीएपी जैसी प्रमुख खाद की बड़ी मात्रा की घरेलू मांग को पूरा करने के लिए आयात पर निर्भर है।

भारत, यूरिया और डाइ-अमोनियम फॉस्फेट का दुनिया का सबसे बड़ा खरीदार है। महंगा कच्चा माल, उच्च माल भाड़ा और यूक्रेन युद्ध के कारण कोयले और प्राकृतिक गैस की आपूर्ति में कमी से इस साल खाद की कीमतें बढ़ने की संभावना है। केंद्र सरकार पहले ही इस वित्तीय वर्ष में दो बार खाद सब्सिडी बढ़ा चुकी है। चालू जून-सितंबर खरीफ फसलों के लिए, सरकार ने फर्टिलाइजर कारखानों और माल ढुलाई सब्सिडी के लिए 60,939.23 करोड़ रुपये की सब्सिडी को मंजूरी दी।

देश में कितने फर्टिलाइजर कारखाने

नीति आयोग के मुताबिक देश में 56 बड़े प्लांट नाइट्रोजनयुक्त, फॉस्फेटिक और जटिल उर्वरक का उत्पादन कर रहे हैं। जबकि 72 मीडियम और छोटी उत्पादन इकाइयां भी उर्वरक का उत्पादन करते हैं, जिनमें सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) होता है। भारत में उर्वरक उद्योग द्वारा निर्मित मुख्य उत्पाद फॉस्फेट आधारित उर्वरक, नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक और जटिल उर्वरक हैं। भारतीय उर्वरक बाजार की वैल्यू 2020 में 8 अरब 87 करोड़ रुपये आंकी गई थी।

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क़मर वहीद नक़वी
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