मराठा आरक्षण का मामला अभी तक ख़त्म नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने एक अंतरिम फ़ैसला में कहा है कि नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले के मामले में इस साल यह आरक्षण लागू नहीं होगा। लेकिन इस कोटा के तहत पोस्ट ग्रैजुएट मेडिकल कोर्स में जो दाखिले हो चुके हैं, उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही मुख्य न्यायाधीश से कहा है कि वह इस मामले पर सुनवाई करने के लिए एक बड़ी बेंच का गठन करें। सुप्रीम कोर्ट में मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने यह फ़ैसला दिया।
देश से और खबरें
चुनौती देने वाली याचिका
याचिका में बंबई हाई कोर्ट के जून 2019 के उस फ़ैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें आरक्षण को वैध ठहराया गया था। इसमें यह भी कहा गया था कि 16 प्रतिशत आरक्षण ठीक नहीं है। रोज़गार में 12 प्रतिशत और सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में 13 प्रतिशत आरक्षण से ज़्यादा नहीं होना चाहिए।हाई कोर्ट का फ़ैसला महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट पर आधारित था।
बता दें कि प्रदेश में मराठा आरक्षण की माँग साल 1980 से चल रही थी और 2009 के चुनाव में विलासराव देशमुख ने यह घोषणा की थी कि यदि कांग्रेस की सरकार आयी तो मराठा समाज को आरक्षण देने पर विचार किया जाएगा। जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे ने आरक्षण को चुनौती देते वाली याचिका पर यह फ़ैसला सुनाया। याचिका में मराठाओं को आरक्षण देने वाली याचिका को उनके लिए स्थायी बैसाखी बताया गया था। याचिका में यह भी कहा गया था कि यह सुप्रीम कोर्ट द्वारा किसी भी राज्य में 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण न देने के फ़ैसले का भी उल्लंघन है।
2009 से 2014 तक विभिन्न राजनीतिक दलों व सत्ताधारी दलों के नेताओं ने यह माँग राज्य सरकार के समक्ष रखी। 25 जून 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने मराठा आरक्षण को मंजूरी दे दी। आदेश के अनुसार शिक्षा और नौकरी के क्षेत्र में मराठा समाज को 16% और साथ ही 5% आरक्षण मुसलिम समाज को देने का निर्णय भी किया गया था। लेकिन नवम्बर 2014 में इस आरक्षण को अदालत में चुनौती दी गयी थी। इस दौरान राज्य में सत्ता परिवर्तन हुआ और बीजेपी- शिवसेना की सरकार आ गयी।
अपनी राय बतायें