जाति जनगणना की मांग को लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाक़ात की है। मुलाक़ात के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि सभी लोगों ने अपनी बातों को प्रधानमंत्री के सामने रखा और पीएम ने उनकी बात को ध्यान से सुना है। नीतीश ने कहा कि पीएम से मांग की गई कि इस मामले में जल्द से जल्द क़दम उठाया जाए।
तेजस्वी यादव ने कहा कि मंडल कमीशन के बाद ही पता चला कि देश में हज़ारों जातियां हैं। उन्होंने कहा कि जब जानवरों, पेड़-पौधों की गिनती होती है तो इंसानों की भी होनी चाहिए। उन्होंने सवाल उठाया कि आख़िर जाति जनगणना क्यों नहीं होनी चाहिए और जब जनगणना ही नहीं होगी तो लोगों के लिए कल्याणकारी योजनाएं कैसे बनेंगी।
विपक्षी दल तो जाति जनगणना की मांग कर ही रहे हैं, बीजेपी के ही गठबंधन सहयोगी और कई बीजेपी सांसद भी इसके पक्ष में हैं। समझा जाता है कि इसको लेकर मोदी सरकार पर काफ़ी दबाव है।
इस दबाव को ऐसे भी समझा जा सकता है कि इस महीने की शुरुआत में ही नीतीश कुमार ने आरोप लगाया था कि प्रधानमंत्री मोदी उनको मुलाक़ात का समय नहीं दे रहे हैं। वह लगातार इस बात को दोहराते रहे। अपना दल जैसे दूसरे सहयोगी भी जाति जनगणना की मांग करने लगे। धीरे-धीरे दबाव बढ़ता गया। इसके बाद ख़बर आई कि प्रधानमंत्री ने मिलने का समय दे दिया है।
दो दिन पहले ही नीतीश ने कहा था कि वह सोमवार को प्रधानमंत्री से मुलाक़ात करेंगे। उन्होंने कहा है कि राज्य से 10 दलों के नेताओं का प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर जाति जनगणना की मांग करेगा। इसमें बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव भी शामिल होंगे।
नीतीश ने कहा, 'लोगों की इच्छा है कि जाति जनगणना होनी चाहिए। मुझे उम्मीद है कि इस पर सकारात्मक चर्चा होगी।' नीतीश कुमार ने शनिवार को समस्तीपुर ज़िले के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का सर्वेक्षण कर लौटने पर पत्रकारों के सवालों का जवाब दे रहे थे।
बिहार में बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चलाने वाले जेडीयू नेता नीतीश कुमार ने इस महीने की शुरुआत में ही इस मामले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखकर मुलाक़ात के लिए समय मांगा था। अगस्त के पहले हफ़्ते में नीतीश ने कहा था कि उन्हें उस पर कोई जवाब नहीं मिला था। इसके कुछ दिन बाद ही नीतीश ने कहा था कि यदि केंद्र ने जाति आधारित जनगणना शुरू नहीं की तो इसके लिए राज्य स्तर पर चर्चा शुरू की जा सकती है।
क़रीब एक पखवाड़े पहले पत्रकारों से बातचीत में नीतीश ने एक ऐसी जनगणना की मांग दोहराई थी जिसमें भारत की जाति की विभिन्नता को ध्यान में रखा गया हो और जैसा बिहार विधानसभा ने सर्वसम्मति से 2019 में और फिर 2020 में एक प्रस्ताव पारित किया था।
तब मुख्यमंत्री ने कहा था, 'यह समझना चाहिए कि निर्णय केंद्र को लेना है। हमने अपनी मांग रखी है। यह राजनीतिक नहीं है, यह एक सामाजिक मामला है।' यह पूछे जाने पर कि यदि केंद्र ऐसा नहीं करता है तो क्या राज्य भी इस तरह की कवायद करेगा, उन्होंने कहा था, 'फिर हम यहाँ इस पर चर्चा करेंगे, ठीक न?'
यह घटनाक्रम तब हो रहा है जब जाति आधारित जनगणना के लिए कई विपक्षी दल दबाव डाल रहे हैं। इस मामले में अब तक केंद्र सरकार जाति आधारित जनगणना के पक्ष में नहीं है।
पिछले महीने लोकसभा में एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था कि भारत सरकार ने जनगणना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अलावा अन्य जाति आधारित आबादी की जनगणना नहीं करने के लिए नीति के रूप में तय किया है।
बिहार में बीजेपी को छोड़कर क़रीब-क़रीब सभी पार्टियाँ जाति आधारित जनगणना की मांग करती रही हैं।
आरजेडी नेता लालू यादव ने भी हाल ही में इसकी मांग की थी। उनके बेटे तेजस्वी यादव लगातार इसकी मांग करते रहे हैं। तेजस्वी यादव तो तर्क देते आए हैं कि 'जब जानवरों की गणना हो सकती है तो जाति जनगणना क्यों नहीं?' उन्होंने तो यहाँ तक मांग की थी कि यदि केंद्र सरकार सहमत नहीं है तो नीतीश कुमार सरकार को ख़ुद से ही ऐसा कर देना चाहिए। तेजस्वी यादव ने कहा था कि नीतीश कुमार को या तो बिहार के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करना चाहिए या प्रधानमंत्री से बात कर इस मुद्दे को उठाना चाहिए।
नीतीश कुमार ने कहा था कि जाति आधारित जनगणना से कुछ लोगों को दिक्कतें होंगी, यह बात पूरी तरह निराधार है। नीतीश ने पिछले कहा था, 'यह केंद्र पर निर्भर है कि वह जाति की जनगणना करे या न करे... हमारा काम अपने विचार रखना है। यह मत सोचो कि एक जाति पसंद करेगी और दूसरी नहीं... यह सभी के हित में है।' उन्होंने कहा था, 'समाज में कोई तनाव पैदा नहीं होगा। खुशी होगी। हर वर्ग के लोगों को योजनाओं से लाभ होगा।'
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