किसान आंदोलन में आढ़तियों, पंजाबी गायकों और किसान नेताओं पर आयकर विभाग (आईटी) की छापेमारी के बाद नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) की ओर से समन किए जाने की बात सामने आई है। एनआईए ने लोक भलाई इंसाफ वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष बलदेव सिंह सिरसा को समन भेजा है। सिरसा किसान आंदोलन में खासे सक्रिय हैं और सरकार के साथ हो रही बातचीत में भी लगातार हिस्सा ले रहे हैं।
सिरसा से कहा गया है कि वे नई दिल्ली में स्थित एनआईए के हेडक्वार्टर में 17 जनवरी को उपस्थित हों। सिरसा को यह समन सिख फ़ॉर जस्टिस (एसएफ़जे) के संयोजक गुरपतवंत सिंह पन्नू के ख़िलाफ़ दर्ज एक मामले में भेजा गया है।
सिरसा ने ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह किसानों के आंदोलन को पटरी से उतारने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार ने पहले सुप्रीम कोर्ट के जरिये ऐसा करने की कोशिश की और अब वह एनआईए का इस्तेमाल कर रही है।
सिरसा ने कहा कि किसान आंदोलन से जुड़े कई लोगों को इस तरह के समन भेजे गए हैं और यह किसानों को डराने की कोशिश है। उन्होंने कहा, ‘हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा। हम नहीं झुकेंगे। एनआईए दिन-रात 26 जनवरी को होने वाली किसान ट्रैक्टर परेड को न होने देने की कोशिश में जुटी है।’
किसान आंदोलन पर देखिए वीडियो-
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अदालत से कहा था कि सरकार को पता चला है कि दिल्ली के बॉर्डर्स पर चल रहे किसानों के आंदोलन में खालिस्तानी तत्वों की घुसपैठ हो गई है।
एनआईए ने एसएफ़जे के ख़िलाफ़ दर्ज की गई एफ़आईआर में उस पर और कुछ अन्य खालिस्तान समर्थक संगठनों पर साज़िश रचने का आरोप लगाया है। एफ़आईआर में कहा गया है कि भारत सरकार के ख़िलाफ़ अभियान चलाने के लिए विदेशों से बहुत सारा पैसा इकट्ठा किया जा रहा है और अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी सहित कई देशों में भारतीय दूतावासों के बाहर प्रदर्शन भी किए जा रहे हैं।
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एफ़आईआर में दावा किया गया है कि एसएफ़जे और कुछ अन्य खालिस्तान समर्थक संगठन इस पूरी साज़िश में शामिल हैं और इसके लिए सोशल मीडिया पर लगातार अभियान चला रहे हैं। इसके अलावा ये संगठन युवाओं को अलग खालिस्तान राष्ट्र के लिए भड़का रहे हैं।
शुक्रवार को सरकार के साथ हुई नौवें दौर की बैठक के दौरान किसान नेताओं ने उनके आंदोलन का समर्थन करने वालों के ख़िलाफ़ केंद्रीय एजेंसियों द्वारा की जा रही छापेमारी और उनके ख़िलाफ़ यूएपीए जैसा कड़ा क़ानून लगाए जाने का मुद्दा उठाया था। इस पर सरकार की ओर से कहा गया कि वह इस मामले को देखेगी।
मोदी सरकार पर आरोप लगता रहा है कि वह अपने राजनीतिक विरोधियों और उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने वालों को चुप कराने के लिए देश की प्रतिष्ठित जांच एजेंसियों का इस्तेमाल करती है।
इससे पहले किसान आंदोलन का समर्थन करने वाले पंजाबी गायकों और किसान नेताओं के ख़िलाफ़ जांच एजेंसियां ईडी और सक्रिय हो गई थीं और आईटी महकमा आढ़तियों के ख़िलाफ़ नोटिस देने से लेकर छापेमारी तक की कार्रवाई कर चुका है।
किसान नेताओं ने चेताया
किसान नेता इस तरह की हरक़तों की निंदा करते हुए सरकार को चेता चुके हैं कि अगर वह किसान आंदोलन का समर्थन करने वालों को निशाना बनाएगी तो यह समाधान की दिशा में नहीं बल्कि कलह को बढ़ाने वाला होगा। भारतीय किसान यूनियन की हरियाणा ईकाई के अध्यक्ष गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने भी सरकार को इसे लेकर कड़े शब्दों में चेताया था।
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