राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी ने भीमा कोरेगाँव मामले में यलगार परिषद के 15 लोगों के ख़िलाफ़ अभियोग पत्र दाखिल कर दिया है, लेकिन उन पर प्रधानमंत्री की हत्या करने की साजिश रचने का आरोप नहीं लगाया गया है। उन पर राज्य के विरुद्ध युद्ध छेड़ने समेत कुल 16 अभियोग लगाए गए हैं।
इससे यह सवाल उठना लाज़िमी है कि एनआईए ने पूरा मामला ही प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश रचने के इर्द-गिर्द बुना था और वही अभियोग नहीं लगाया गया है। तो क्या एनआईए ने यह झूठा मामला गढ़ा था और इससे जुड़ा कोई साक्ष्य नहीं होने के कारण उसने इसे चार्ज शीट में शामिल नहीं किया?
जिस समय यह मामला उठा था, उसी समय एनआईए की इस थ्योरी पर सवाल उठे थे और उसके तर्कों का मजाक उड़ाया गया था। लेकिन एनआईए अपनी बात पर अड़ा हुआ था।
पहले एनआईए ने क्या कहा था?
इसके पहले इसी महीने विशेष अदालत में दाखिल मसौदा चार्जशीट में एनआईए ने कहा था कि 'अभियुक्तों ने लोक सेवकों की हत्या करने या उसकी कोशिश करने के लिए परिष्कृत हथियारों को एकत्रित करने की साजिश रची थी।'
इस मामले की शुरुआती जाँच करने वाली पुणे पुलिस ने कहा था कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने के लिए ये हथियार एकत्रित किए गए थे।'
अब एनआईए के अफ़सरों का कहना है कि मसौदा चार्जशीट में किसी व्यक्ति विशेष की हत्या करने की बात नहीं कही गई थी। इस मामले को सुनवाई के दौरान उठाया जाएगा।
क्या है चार्जशीट में?
एनआईए ने चार्जशीट में कहा है कि ये 15 अभियुक्त भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) और यलगार परिषद के सदस्य हैं और उन्होंने दलितों और समाज के दूसरे वर्गों की भावनाओं को उसका कर हिंसा भड़काई थी।
चार्जशीट में यह भी कहा गया है कि परिष्कृत हथियार एम-4 खरीदने के लिए आठ करोड़ रुपए की माँग की गई थी और विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्रों को अपने संगठन में जोड़ा गया था।
कौन-कौन हैं चार्जशीट में?
एनआईए चार्जशीट में सुधीर धलवाले, रोना विल्सन, सुरेद्र गाडलिंग, शोमा सेन, महेश राउत, पी. वरवर राव, वर्नों गोंजाल्विस, अरुण फ़रेरा, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, हैनी बाबू, रमेश गायचोर, ज्योति जगताप और सागर गोरखे के नाम हैं।एनआईए ने फंसाया था?
बता दे कि इसके पहले भीमा कोरेगाँव मामले में गिरफ़्तार रोना विल्सन ने यह आरोप लगाया था कि उनके लैपटॉप बाहर से हमला कर उसके अंदर फ़ाइल डाले गए और उस आधार पर उन्हें फंसाया गया। महाराष्ट्र सरकार और पुलिस ने इससे इनकार किया था।
इसके पहले रोना विल्सन के वकील सुदीप पसबोला ने अमेरिकी अख़बार 'वाशिंगटन पोस्ट' में छपी खबर के हवाले से अदालत से कहा था कि रोना को फँसाया गया है, वे निर्दोष हैं।
'वाशिंगटन पोस्ट' की खबर में कहा गया था कि रोना विल्सन के लैपटॉप पर साइबर हमला कर बाहर से आपत्तिजनक सामग्री डाली गई और उस आधार पर ही उनके ख़िलाफ मामला चलाया गया।
इसके ठीक पहले आर्सेनल कंसलटिंग ने यह भी कहा था कि भीमा कोरेगाँव मामले के एक और संदिग्ध सुरेंद्र गाडलिंग के कंप्यूटर को भी हैक किया गया था और उसमें मैलवेअर डाला गया था।
कंप्यूटर हैक
आर्सेनल कंसलटिंग के अनुसार, ये मैलवेअर सुधा भारद्वाज और फ़ादर स्टैन स्वामी के कंप्यूटरों में भी डाले गए थे, उनके कंप्यूटर भी हैक किए गए थे।
बता दें कि स्टैन स्वामी को ज़मानत नहीं दी गई थी और पुलिस हिरासत में ही उनकी मौत हो गई।
हुआ क्या था?
6 जनवरी, 2018 को पाँच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, सुरेंद्र गाडलिंग, रोना विल्सन, सुधीर धवले, शोमा सेन और महेश राउत को देश के अलग-अलग हिस्से से गिफ़्तार किया। उन पर 1 जनवरी, 2018 को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव में भड़काऊ भाषण देने का मामला लगाया। उन पर 'अनलॉफ़ुल एक्टिविटीज़ प्रीवेन्शन एक्ट' (यूएपीए) के तहत मामला चलाया गया।
इसके बाद 28 अगस्त, 2018, को पुलिस ने और पाँच लोगों को गिरफ़्तार किया। ये थे, अकादमिक जगत की हस्ती सुधा भारद्वाज, जनकवि वरवर राव, दिल्ली के मानवाधिका कार्यकर्ता गौतम नवलखा, वरनॉन गोंज़ालविस और अरुण फ़रेरा। इन लोगों पर भी भीमा कोरेगाँव में हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया था।
इस मामले में कुल 16 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है, इनमें से स्टैन स्वामी की मौत हो गई है।
पुलिस ने कहा कि इन लोगों को 'प्रतिबंधित माओवादी गुटों से साँठगाँठ रखने' और 31 दिसंबर, 2017, को 'हिंसा भड़काने के मामले में शामिल' होने की वजह से गिरफ़्तार किया गया है।
भीमा कोरेगाँव
बता दें कि महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव में दलित संगठन एल्गार परिषद के कार्यक्रम में हिंसा हुई थी। भीमा कोरेगाँव में हर साल दलित एकत्रित होते हैं और 1818 में ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों पेशवाओं की हार पर जश्न मनाते हैं।
इस बार उस घटना के 200 साल पूरे हो रहे थे और इसलिए कार्यक्रम भी बड़ा था।उस युद्ध में दलित महार जाति के मुट्ठी भर सैनिकों ने पेशवाओं की बड़ी सेना को शिकस्त दी थी। पेशवाओं के समय दलितों पर सामाजिक अत्याचार होते थे और वे पेशवाओं की पराजय को अपनी मुक्ति की ओर बढ़ा हुआ कदम मानते हैं।
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