‘राष्ट्रवाद’ और आतंकवाद को मुद्दा बनाती रही बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार क्या अब एनआईए को ‘हथियार’ के तौर पर इस्तेमाल करेगी? यह सवाल इसलिए क्योंकि एनआईए को अधिक अधिकार देने वाले राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (संशोधन) विधेयक 2019 को लोकसभा में सरकार ने पारित करा लिया है और इस पर कांग्रेस ने आरोप लगाया है कि सरकार भारत को ‘पुलिस राज’ बनाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने यह भी आशंका जताई कि इसका दुरुपयोग ‘राजनीतिक बदले’ की कार्रवाई के लिए भी किया जा सकता है। कांग्रेस के इन आरोपों में कितनी सचाई है?
आतंकवाद के ख़िलाफ़ बीजेपी ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ की नीति अपनाने की बात करती रही है और इस विधेयक को पारित कराने के समय भी सरकार ने इसी तर्क को दोहराया। यानी सरकार का साफ़ तौर पर कहना है कि यह आतंकवाद के ख़िलाफ़ और ‘राष्ट्रहित’ में ज़रूरी क़दम था। लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह बिल राष्ट्रहित में है क्योंकि यह जाँच करने वाली इस एजेंसी को अधिक शक्ति देता है।
गृह राज्य मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कहा, ‘हम आतंकवाद को ‘ज़ीरो टॉलरेंस’ से लड़ना चाहते हैं और इस विधेयक को राष्ट्रीय हित में लाया गया है। मैं आप सभी से इसके पारित कराने के लिए प्रार्थना करता हूँ।’ रेड्डी ने यह भी कहा कि एनआईए अच्छा काम कर रही है और 90% से अधिक मामलों में दोष साबित करने में सफल रही है। इसने अब तक 272 मामले दर्ज किए हैं, जिनमें से 52 में फ़ैसला भी आ गया है।
नये क़ानून में क्या मिलेंगे अधिकार?
गृह राज्य मंत्री रेड्डी ने सदन को बताया कि नया क़ानून एनआईए को विदेशों में भारतीयों और भारतीय संपत्ति को निशाना बनाने वाले आतंकवाद के मामलों की जाँच करने की अनुमति देगा। साथ ही यह एजेंसी को सशस्त्र आतंकवाद के अलावा हथियारों और मानव तस्करी के मामलों की जाँच करने का अधिकार भी देगा। रेड्डी ने आतंकवाद की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मौजूदगी का हवाला देते हुए कहा कि यह ज़रूरी है कि एनआईए को आतंकवादियों की भारतीय, भारतीय दूतावास और विदेशों में अन्य संपत्तियों को निशाना बनाने की घटनाओं की जाँच करने का अधिकार हो।
एनआईए की स्थापना 2009 में मुंबई आतंकवादी हमले के मद्देनज़र की गई थी जिसमें 166 लोगों की जान चली गई थी। बता दें कि अनुसूचित अपराधों में सूचीबद्ध अपराधों की जाँच करने और उन पर मुक़दमा चलाने के लिए विधेयक एक राष्ट्रीय स्तर की एजेंसी की वकालत करता है। इसके अलावा, यह ऐसे अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालयों के गठन की अनुमति देता है।
कांग्रेस ने क्यों किया विधेयक का विरोध?
कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा कि जाँच एजेंसियों का ‘राजनीतिक बदले’ के लिए दुरुपयोग किया जाता है और उनसे ‘मीडिया के माध्यम से रिपोर्टें लीक’ कराकर ‘दोष साबित होने तक निर्दोष’ के न्याय की भावना को ही उलट दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि जाँच एजेंसियों को ‘राजनीतिक बदले’ के लिए दुरुपयोग करने वाले के रूप में देखा जाता है, ऐसे में जब एक जाँच एजेंसी को सशक्त करने का प्रयास किया जाता है तो इसके साथ एक मौलिक समस्या आ जाती है। तिवारी ने हालाँकि कहा कि उनका आरोप किसी विशेष सरकार पर नहीं है और यह सामान्य है। उन्होंने सरकार पर देश को ‘पुलिस राज’ में बदलने के प्रयास करने का आरोप लगाया और कहा कि इसके प्रभाव उसके कार्यकाल से अधिक रहेंगे।
उन्होंने यह भी दावा किया कि एनआईए अधिनियम की संवैधानिक वैधता का मामला, जिसके कारण जाँच एजेंसी का गठन हुआ, अभी भी सुलझा नहीं है। इसकी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएँ विभिन्न अदालतों में लंबित हैं।
मनीष तिवारी ने कहा कि भारत के संस्थापकों ने नागरिक स्वतंत्रता को प्रमुखता दी है क्योंकि उन्होंने देखा था कि भारतीयों को दबाए रखने के लिए अंग्रेज़ों द्वारा कई आपराधिक क़ानून लाए गए थे।
इससे पहले एन. के. प्रेमचंद्रन और सौगत रॉय सहित कई विपक्षी सदस्यों ने बजट-संबंधी चर्चा के बीच इस क़ानून पर बहस कराने के सरकार के फ़ैसले पर सवाल उठाया था, लेकिन स्पीकर ओम बिरला ने फ़ैसला सुनाया कि बहस शुरू हो सकती है। बाद में यह बिल पास भी हो गया।
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