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मोदी की यूएस यात्राः भारत को कुछ हासिल हुआ या फायदे में अमेरिका रहा?

प्रधानमंत्री मोदी की यूएस यात्रा के दौरान ट्रम्प के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस में दोनों ने जमकर एक दूसरे की तारीफ की। लेकिन ट्रम्प की नजर सिर्फ अमेरिका के लिए धंधा करने पर थी। जिसमें टैरिफ सबसे बड़ा मुद्दा था। इस पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प भारतीय पीएम के सामने जरा भी नहीं झुके। मोदी के यूएस पहुंचने से ठीक पहले ट्रम्प ने अमेरिकी वस्तुओं पर विदेशी आयात करों का जवाब हर देश द्वारा लगाए गए समान दरों पर देने का प्रस्ताव रख दिया। ट्रम्प लंबे समय से विदेशी वस्तुओं पर उच्च टैरिफ दर के लिए भारत की आलोचना करते रहे हैं, यहां तक ​​कि उन्होंने कथित तौर पर मोदी को “टैरिफ किंग” भी कहा है।

अकेले अमेरिकी टैरिफ पर ही भारत को बड़ा नुकसान नहीं होने जा रहा है। इसके अलावा रक्षा सौदे, व्यापार संतुलन में बदलाव (हालांकि यह टैरिफ का ही हिस्सा है), पावर डील, परमाणु रिएक्टर, डिफेंस डील आदि ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें अमेरिका भारत से समझौते होने पर फायदे में रहेगा। कुछ प्वाइंट्स पर नजर डालना जारी है। 
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रक्षा सौदा रूस से दूर करेगा

अमेरिका से भारत अरबों डॉलर का रक्षा उपकरण खरीदेगा। जिसमें एफ-35 लड़ाकू विमान का ऑफर अमेरिका ने दिया है। जीई 414 और 404 इंजन, स्ट्राइकर कॉम्बैट वाहन, प्रीडेटर ड्रोन शामिल हैं। यह सौदा एक तरह से भारत को रूस से दूर करने की रणनीति का हिस्सा है। तेजस विमान के लिए जीई कंपनी का इंजन अभी तक अमेरिका ने नहीं दिया है। वो भारत को तकनीक ट्रांसफर नहीं करना चाहता। इसी तरह एफ 35 फाइटर प्लेन का ऑफर भी बिना तकनीक ट्रांसफर के है। रूस ने भारत को तमाम रक्षा सौदों में तकनीक ट्रांसफर के साथ डील दी है। 

व्यापार संतुलन में बदलावः भारत ने 35 अरब अमेरिकी डॉलर का व्यापार घाटा अमेरिकी पक्ष में ट्रांसफर करने पर सहमति व्यक्त की है। भारत अब यूएस से तेल खरीदेगा तो उससे इसकी भरपाई हो पाएगी। अभी तक भारत रूस और ईरान से सस्ता तेल खरीदता रहा है। ट्रम्प ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि भारत ने अमेरिकी वस्तुओं पर टैरिफ में कमी की घोषणा की है और कहा कि वह और मोदी एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लक्ष्य के साथ व्यापार संबंधी असमानताओं पर बातचीत शुरू करेंगे। उन्होंने कहा कि भारत के साथ अमेरिकी व्यापार घाटे की पूर्ति तेल और गैस की बिक्री से की जा सकती है।

यूएस की एलएनजी खरीदने में दिलचस्पी क्यों

रूस और कतर से भारत को तरल प्राकृतिक गैस (एलएनजी) की सप्लाई सस्ते दामों पर हो रही है। लेकिन अब इसे मोदी सरकार के अभिन्न मित्र ट्रम्प के दबाव पर बदला जा रहा है। रॉयटर्स की एक खबर ने तीन दिन पहले ही बताया दिया था कि मोदी अभी जब फ्रांस में हैं और यूएस जाने वाले हैं तो भारत की तीन बड़ी तेल कंपनियों गेल, इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम ने अमेरिकी कंपनियों से बातचीत शुरू कर दी है।
संयुक्त रक्षा विकासः दोनों देश भारत की रक्षा तैयारियों के लिए संयुक्त उत्पादन पर सहमत हो गये हैं। लेकिन यूएस ने साफ कहा कि वह रक्षा उपकरण, हथियारों की तकनीक तो बेचेगा लेकिन सोर्स कोड नहीं देगा। भारत में अब निजी क्षेत्र को रक्षा उपकरण उत्पादन की छूट है। लेकिन वो सिर्फ कागजी कहानी है। अडानी डिफेंस समेत तमाम निजी कंपनियां पहले से ही इज़राइल और यूएस की कंपनियों से रक्षा उपकरण खरीद रही हैं और भारत में उन पर अपना ठप्पा लगाकर भारतीय सेना को सप्लाई कर रही हैं। बेशक यूएस के संयुक्त उत्पादन की डील होगी लेकिन वो सिर्फ नाम के लिए, क्योंकि जब अमेरिका भारत को सोर्स कोड ही नहीं देगा तो यहां पर उत्पादन किस तरह संभव होगा।

एआई में बढ़ेगा यूएस का दबदबा

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में वर्चस्व हासिल करने की लड़ाई शुरू हो चुकी है। इसका एक छोर अमेरिका ने संभाल रखा है और दूसरा चीन ने। चीन का एआई मॉडल सस्ता है। अमेरिका का बहुत ही महंगा। भारत में एआई पर अभी कुछ भी नहीं हुआ है। भारत का अपना कोई भी महंगा या सस्ता एआई मॉडल नहीं है। अमेरिका इस कमजोर नस को जानता है। वो चाहता है कि भारत भी एआई के यूएस मॉडल को अपनाये। इससे एआई के मामले में भारत पूरी तरह यूएस पर निर्भर हो जाएगा। इसी को बढ़ावा देने के लिए दोनों देशों ने अमेरिका-भारत ट्रस्ट (TRUST-Transforming the Relationship Utilizing Strategic Technology) की घोषणा की है। इसके जरिये आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस ही नहीं, क्वांटम, जैव प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और अंतरिक्ष जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाएगा। इसमें निजी क्षेत्र का सहयोग लिया जाएगा। 

मोदी-ट्रम्प में समानताएं और चंद संवाद

  • मोदी और ट्रंप दोनों ही दक्षिणपंथी नेता हैं। अपने-अपने देश में लोकतांत्रिक संस्थाओं के पतन के जिम्मेदार वहां के विपक्ष द्वारा ठहराये जा चुके हैं। 
  • हाल ही में दोनों नेताओं ने अपने-अपने देशों में फिर से चुनाव जीता है। मोदी ने जून में और ट्रंप ने पिछले नवंबर में।
  • ट्रंप ने मोदी को “महान नेता” कहा तो मोदी ने ट्रंप को “मेरे मित्र” कहा। पीठ थपथपाने के बीच मोदी ने ट्रंप के नारे “अमेरिका को फिर से महान बनाओ” पर गर्व जताया। फिर उस नारे को भारतीय अंदाज में पेश किया।
  • मोदी ने अनुवादक के माध्यम से कहा, “अमेरिका के लोग MAGA से अवगत हैं। हमारा नजरिया भी ‘भारत को फिर से महान बनाओ’ या MIGA है। और जब MAGA प्लस MIGA होता है, तो यह मेगा बन जाता है। 
  • बीजेपी नेता और आरएसएस के स्वयंसेवक रहे मोदी ने अपने हिंदू बहुसंख्यकवादी नजरिये की तुलना ट्रम्प के "अमेरिका फर्स्ट" एजेंडे से की। मोदी ने अनुवादक के जरिये कहा, "एक बात जिसकी मैं गहराई से सराहना करता हूं और जो मैंने राष्ट्रपति ट्रम्प से सीखा है, वह यह है कि वह राष्ट्रीय हित को सर्वोच्च रखते हैं। और उनकी तरह, मैं भी भारत के राष्ट्रीय हित को हर चीज से ऊपर रखता हूं।"
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हम भी खुश-तुम भी खुश

पीएम मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर दोनों ही अमेरिका के साथ सौदों से खुश हैं। जयशंकर ने खुद स्वीकार किया है कि उन्होंने 40 वर्षों तक अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंधों पर काम किया है। अब, उनके लिए यह मिशन पूरा हो गया है। मोदी का अमेरिका से लगाव पुराना है। गुजरात के लोग अमेरिका में जमे हुए हैं। इसलिए मोदी अमेरिका और ट्रम्प को कभी नाराज नहीं करते हैं। अन्यथा 33 गुजरातियों को हथकड़ी-बेड़ी लगाकर ट्रम्प ने भारत भेज दिया, लेकिन मोदी ने उफ तक नहीं किया।

(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)
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