सुप्रीम कोर्ट ने भले ही एससी/एसटी कोटे के अंदर कोटे का रास्ता साफ करके ज्यादा हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए उप-वर्गीकरण की अनुमति दी है, लेकिन मोदी सरकार ने ओबीसी जातियों में उपवर्गीकरण की रिपोर्ट पर चुप्पी सााध रखी है। उसने रोहिणी आयोग की सिफारिशों को स्वीकार तक नहीं किया है।
ओबीसी उप-वर्गीकरण की जांच करने और आरक्षण लाभों के समान वितरण के लिए अक्टूबर 2017 में सरकार ने रोहिणी आयोग गठित किया था। आयोग ने 31 जुलाई, 2023 को राष्ट्रपति अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट अभी तक सार्वजनिक नहीं की गई है।
सूत्रों ने बताया कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय, जो ओबीसी कल्याण से संबंधित नीतिगत मुद्दों को देखता है, को अभी तक राष्ट्रपति भवन से रिपोर्ट नहीं मिली है। इसीलिए मंत्रालय ने अभी तक आयोग की सिफारिशों पर विचार शुरू नहीं किया है। राष्ट्रपति को यह रिपोर्ट मंत्रालय को भेजनी होगी जिसके बाद ही विभाग इस पर गौर करता है। रोहिणी आयोग की रिपोर्ट, मंडल आयोग की रिपोर्ट की तरह है, जिसे एक बार सरकार ने स्वीकार किया तो उसे संसद में भी पेश करना होगा।
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कांग्रेस और अन्य दलों ने जाति जनगणना के लिए दबाव बनाकर सरकार को मुश्किल में डाल दिया है। जाति की राजनीति चुनाव नतीजों को तय करने में प्रमुख भूमिका निभाती है, चाहे वह लोकसभा चुनाव हो या विधानसभा चुनाव। हिन्दू वोट बैंक के लिए मेहनत करने वाली भाजपा जाति की राजनीति से घबराती है।
दरअसल, सरकार किसी विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव के बीच में भानुमति के इस पिटारे को खोलना नहीं चाहती है। मंडल कमीशन की रिपोर्ट जब आई तो इसने देश की राजनीति को बदल दिया था। तमाम क्षेत्रीय नेताओं का उभार मंडल आयोग की रिपोर्ट आने के बाद हुआ।
रोहिणी आयोग द्वारा अपनी रिपोर्ट का मसौदा तैयार करते समय किए गए एक अध्ययन में पाया था कि ओबीसी की लगभग 5,000-6,000 उप-श्रेणियों/समूहों में से सिर्फ 40 में एक फीसदी आबादी ने केंद्रीय आरक्षण के 50 फीसदी लाभ पर कब्ज़ा कर लिया है। यह लाभ सरकारी नौकरियों से लेकर शैक्षणिक संस्थानों तक फैला हुआ है।
गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपने फैसले में आरक्षित श्रेणी समूहों को उप-वर्गीकृत करने की राज्यों की पावर को बरकरार रखा। सुनवाई के दौरान, मोदी सरकार ने इसी आधार पर एससी और एसटी के बीच उप-वर्गीकरण का समर्थन किया।
राष्ट्रव्यापी जाति जनगणना की मांग के साथ-साथ ओबीसी उपवर्गीकरण को व्यापक रूप से राजनीतिक हथियार की तरह देखा जा रहा है। विपक्ष और कांग्रेस विशेष रूप से रोहिणी आयोग के निष्कर्षों को सार्वजनिक करने और सरकार पर जाति जनगणना कराने के लिए दबाव डाल रही है। इस साल के अंत में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले भी यह मुद्दा महत्वपूर्ण है।
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