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एमके स्टालिन के साथ कमल हासन

हिन्दी विवादः तमिलनाडु-केंद्र में तनातनी बढ़ी, कमल हासन भी कूदे, जानिये इतिहास

केंद्र सरकार और तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके के बीच भाषा विवाद शनिवार को और गहरा हो गया। तमिलनाडु के लोकप्रिय फिल्म स्टार और नेता कमल हासन ने हिन्दी थोपने का आरोप लगाया। उन्होंने केंद्र सरकार को ऐसी किसी कोशिश से सचेत किया। केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने शुक्रवार को तमिलनाडु को राजनीति से ऊपर उठने को कहा था। इसके बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और कमल हासन ने हल्ला बोल दिया। तमिलनाडु में हिन्दी विरोध का इतिहास पुराना है और इसे गहराई से जानने की जरूरत है। तमिलनाडु के सभी क्षेत्रीय दल हिन्दी थोपे जाने के खिलाफ रहे हैं। 

मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने डीएमके को संकेत करते हुए कहा कि मोदी सरकार अपनी दो-भाषा नीति से पीछे नहीं हटेगी। प्रधान ने तमिलनाडु में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन को लेकर मुख्यमंत्री एमके स्टालिन पर हमला किया और उन पर “राजनीतिक नेरेटिव को बनाए रखने के लिए प्रगतिशील सुधारों को धमकियों में बदलने” का आरोप लगाया। डीएमके का आरोप है कि तमिलनाडु से केंद्रीय फंड के अपने हिस्से के बदले में नई शिक्षा नीति (NEP) और हिंदी को शामिल करते हुए तीन-भाषा नीति को लागू करने के लिए कहा जा रहा है।

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मक्कल नीधि मय्यम (एमएनएम) पार्टी के संस्थापक और अभिनेता कमल हासन ने भी हिंदी को बढ़ावा देने के खिलाफ अपनी आवाज उठाई है। उन्होंने कहा कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाना चाहिए और लोगों को अपनी पसंद की भाषा सीखने की आजादी होनी चाहिए। कमल हासन, जो हिंदी फिल्मों में भी काम कर चुके हैं, का कहना है कि वे बहुभाषी होने के पक्षधर हैं, लेकिन हिंदी को अनिवार्य करना तमिल लोगों को स्वीकार्य नहीं है।

तमिलों ने एक भाषा के लिए अपनी जान गंवाई है। उन चीजों के साथ मत खेलो। तमिलों, यहां तक ​​कि बच्चों को भी पता है कि उन्हें किस भाषा की जरूरत है। उन्हें यह चुनने का ज्ञान है कि उन्हें किस भाषा की जरूरत है।


-कमल हासन, नेता और एक्टर, 22 फरवरी 2025 सोर्सः द हिन्दू

यह विवाद तब शुरू हुआ जब स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर समग्र शिक्षा अभियान (एसएसए) के तहत 2,152 करोड़ रुपये का फंड फौरन जारी करने की मांग की। उन्होंने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की टिप्पणी पर चिंता व्यक्त की, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर तमिलनाडु एनईपी को लागू नहीं करता है तो फंड जारी नहीं किया जाएगा।

इसके बाद प्रधान ने भी स्टालिन पर पलटवार करते हुए दक्षिणी राज्यों को छात्रों के लाभ के लिए "राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठने" का आग्रह किया। प्रधान ने इस बात पर जोर दिया कि नई शिक्षा नीति एक "परिवर्तनकारी नजरिया है जो भारत की शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने के मकसद से यह ग्लोबल स्टैंडर्ड तक बढ़ाने का प्रयास है।"

शिक्षा मंत्री के जवाब पर स्टालिन ने एक और पलटवार किया, जिसमें उन्होंने केंद्र को "तमिलों की पहचान को चुनौती देने" के खिलाफ चेतावनी दी। 

मैं केंद्र सरकार को चेतावनी देता हूं: मधुमक्खी के छत्ते को मत छेड़ो। तमिलों की पहचान को चुनौती मत दो। जब तक मैं यहां हूं, जब तक डीएमके यहां है, तमिल, तमिलनाडु या तमिलों के खिलाफ इस धरती पर कुछ भी नहीं होने दिया जाएगा।


-एमके स्टालिन, डीएमके प्रमुख और मुख्यमंत्री तमिलनाडु 21 फरवरी 2025 सोर्सः द हिन्दू

अपने इसी बयान में स्टालिन ने बहुत साफ शब्दों में कहा- 

हम लोगों के कल्याण के लिए धन का इस्तेमाल करते हैं। आप उनका इस्तेमाल धार्मिक विभाजन पैदा करने और हिंदी थोपने के लिए करते हैं...


-एमके स्टालिन, डीएमके प्रमुख और मुख्यमंत्री तमिलनाडु 21 फरवरी 2025 सोर्सः द हिन्दू

केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के इस दावे पर कि  दक्षिणी राज्य शिक्षा का राजनीतिकरण कर रहे हैं, स्टालिन और कमल हासन बहुत नाराज नजर आ रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, नई शिक्षा नीति (एनईपी) शिक्षा में सुधार के लिए नहीं बल्कि हिंदी को बढ़ावा देने के लिए पेश की गई है। सीधे तौर पर थोपे जाने पर इसका कड़ा विरोध होगा, इसलिए इसे शिक्षा सुधार के नाम पर पेश किया गया है। केंद्रीय मंत्री दावा करते हैं कि मातृभाषाओं को समृद्ध किया जाएगा। हम जानते हैं कि अपनी मातृभाषा को कैसे समृद्ध किया जाए।"

ऐतिहासिक संदर्भ: गांधी, नेहरू और पेरियार

दक्षिण में हिंदी को बढ़ावा देने का प्रयास आज का नहीं है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गांधी ने हिंदी को दक्षिण भारत में प्रचारित करने के लिए 1918 में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की थी। उनका मानना था कि हिंदी सभी भारतीयों को एकजुट करने वाली भाषा हो सकती है। जवाहरलाल नेहरू ने भी हिंदी को राष्ट्रीय भाषा के रूप में समर्थन दिया था। हालांकि, तमिलनाडु में इन प्रयासों का कड़ा विरोध हुआ।

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द्रविड़ आंदोलन के जनक पेरियार ई.वी. रामास्वामी

पेरियार ई.वी. रामास्वामी, जो द्रविड़ आंदोलन के जनक माने जाते हैं, ने हिंदी को "उत्तरी आधिपत्य" (North Dominance) का प्रतीक माना। 1937 में, जब मद्रास प्रेसीडेंसी में सी. राजगोपालाचारी की कांग्रेस सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किया, तो पेरियार ने इसके खिलाफ आंदोलन शुरू किया। उनका कहना था कि हिंदी को थोपना तमिल लोगों को गुलाम बनाने की साजिश है। इस विरोध ने द्रविड़ आंदोलन को मजबूती दी। इससे कांग्रेस की लोकप्रियता में कमी आई थी।

नेहरू ने बाद में आश्वासन दिया कि हिंदी को तब तक थोपा नहीं जाएगा, जब तक गैर-हिंदी भाषी राज्य इसके लिए तैयार न हों। 1963 में आधिकारिक भाषा अधिनियम पारित करके अंग्रेजी के इस्तेमाल को जारी रखने की गारंटी दी गई। फिर भी, तमिलनाडु में हिंदी के प्रति अविश्वास बना रहा।

अंग्रेजों की चाल

ब्रिटिश औपनिवेशिक काल ने भी एक समय में तमिलनाडु जो उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी कहलाता था, के स्कूलों में हिंदी को एक विषय के रूप में पेश किया। तमिल जो एक शास्त्रीय भाषा है, जिसकी साहित्यिक परंपरा दो हजार वर्षों से अधिक पुरानी है, अंग्रेजों के इस कदम को सीधा दखल माना गया। 1930 के दशक में संगठित विरोध प्रदर्शन हुए। 

पेरियार ने हिंदी को ब्राह्मणवादी प्रभुत्व का एक उपकरण और तमिल पहचान के लिए खतरा माना था। तमिल भाषा के लिए उनके समय में ही आत्मदाह की घटनाएं हुईं। मजबूर होकर ब्रिटिश शासन को वहां हिंदी को अस्थायी रूप से अनिवार्य विषय के रूप में हटाना पड़ा।


1965 में विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व डीएमके नेता सी.एन. अन्नादुरई ने किया था। इसे अभूतपूर्व जनसमर्थन मिला। छात्र, श्रमिक और सामान्य नागरिक सड़कों पर उतरे। उन्होंने अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी के इस्तेमाल की मांग रखी। इस दौरान हिंसक प्रदर्शन के दौरान कई मौतें हुईं। आंदोलन तेज पकड़ने पर केंद्र सरकार को अपनी भाषा नीति में संशोधन करना पड़ा। 1963 में आधिकारिक भाषाओं का अधिनियम लाया गया, जो अंग्रेजी के साथ अन्य भाषाओं को पढ़ाने की मान्यता देता था।
हाल के वर्षों में, मोदी सरकार ने तमिलनाडु, केरल आदि में सरकारी कम्युनिकेशन में हिंदी के इस्तेमाल को बढ़ाने की कोशिश की है। उदाहरण के लिए, सरकार ने रेलवे साइनेज, डाक सेवाओं और टैक्स फॉर्म जैसी विभिन्न प्रशासनिक प्रक्रियाओं में हिंदी को अंग्रेजी के साथ शामिल करने के लिए निर्देश दिए हैं। हालांकि समर्थकों का कहना है कि इससे राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा मिलता है। लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह गैर-हिंदी बोलने वाले राज्यों की भाषाई विविधता की अनदेखी करने वाला बेकार का थोपा जाना या आग्रह है।
नई शिक्षा नीति (NEP) 2020 के जरिये सरकार ने हिंदी कौशल को बढ़ाने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। नई शिक्षा नीति बहुभाषावाद पर जोर देती है। आलोचकों का तर्क है कि यह नीति क्षेत्रीय भाषाओं के महत्व को कम करती है, जिससे गैर-हिंदी बोलने वाले राज्यों में युवा पीढ़ी अपनी मूल भाषाओं से दूर हो सकती है।

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डिजिटल मंच पर भी हिंदी को बढ़ावा देने की नीति को लेकर मुकाबला चल रहा है। केंद्र सरकार ने सोशल मीडिया, वेबसाइटों और मोबाइल एप्लिकेशन पर हिंदी-भाषा की सामग्री को प्रोत्साहित किया है। इस बढ़ावे को तमिलनाडु में संदेह की नजर से देखा जा रहा है। उदाहरण के लिए, सरकारी पोर्टल्स और ऐप्स के लिए हिंदी इंटरफेस का परिचय तमिल बोलने वालों को पसंद नहीं आ रहा है। वे अंग्रेजी या अपनी मातृभाषा का इस्तेमाल करने में अधिक सहज महसूस करते हैं।

(रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी)
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