प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने धार्मिक कट्टरता की बात करते हुए तालिबान और उसके जरिए अफ़ग़ानिस्तान पर भारत सरकार की संभावित नीति का संकेत दे दिया है। ऐसे समय जब कुछ को छोड़ तमाम देश अफ़ग़ानिस्तान के मामले में 'देखो और इंतजार करो' की नीति पर चल रहे हैं, भारत ने एक अहम संकेत दे दिया।
संघाई सहयोग संगठन यानी संघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) के सम्मेलन को शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए संबोधित करते हुए मोदी ने कहा,
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एससीओ की 20वीं वर्षगांठ इस संगठन के भविष्य के बारे में भी सोचने का अवसर है। इन समस्याओं का बढ़ता हुआ कारण कट्टरपंथ है। अफ़ग़ानिस्तान में हालिया घटनाओं ने इस चुनौती को और स्पष्ट कर दिया है।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
मोदी की बातों से यह भी साफ है कि वे एससीओ के देशों से इस मुद्दे पर कुछ करने को कह रहे हैं। यह अहम इसलिए है कि एससीओ के संस्थापक देश ताज़िकिस्तान, कज़ाख़स्तान, उज़बेकिस्तान और किर्गीस्तान अफ़ग़ानिस्तान के पड़ोसी देश हैं।
मध्य एशिया के इन देशों से अफ़ग़ानिस्तान के रिश्ते ऐतिहासिक काल से हैं और आज भी हैं। वे तालिबान सरकार के प्रति क्या रवैया अपनाते हैं, यह अफ़ग़ानिस्तान के लिए अहम है।
इनसे किसी देश ने अब तक तालिबान को मान्यता नहीं दी है।
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भारत मानता है कि अफ़ग़ानिस्तान में बनी तालिबान सरकार समावेशी नहीं है, क्योंकि यह बिना किसी समझौते या फिर क़रार के बनाई गई है। दुनिया को इस सरकार पर सोच-समझकर कोई ना कोई फ़ैसला लेना ही पड़ेगा।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
प्रगतिशील मूल्य
मोदी ने कहा, "अगर हम इतिहास पर नज़र डालें तो मध्य एशिया का क्षेत्र प्रगतिशील संस्कृति और मूल्यों का गढ़ रहा है। सूफ़ीवाद जैसी परम्पराएँ यहाँ सदियों से पनपीं और पूरे क्षेत्र और विश्व में फैलीं। इनकी छवि हम आज भी इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत में देख सकते हैं।"
उन्होंने इसके आगे कहा,
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मध्य एशिया की इस धरोहर के लिए एससीओ को कट्टरपंथ से लड़ने का एक साझा टेंपलेट बनाना चाहिए। भारत में और एससीओ के लगभग सभी देशों में, इसलाम से जुड़ी उदारवादी, सहिष्णु और समावेशी संस्थाएं और परम्पराएं मौजूद हैं।
नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री
Addressing the SCO Summit. https://t.co/FU9WtFBWeF
— Narendra Modi (@narendramodi) September 17, 2021
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