गुवाहाटी हाई कोर्ट और मेघालय हाई कोर्ट में दो जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर कर पूर्वोत्तर राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की गई है। इन याचिकाओं के पीछे संघ परिवार की सोची-समझी साज़िश नजर आती है।
पूर्वोत्तर में हिंदुओं के लिए अल्पसंख्यक के दर्जे की मांग के पीछे संघ की साज़िश?
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- 17 Sep, 2020

संघ परिवार की विचारधारा से जुड़े एक वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर लक्षद्वीप, मिजोरम, नगालैंड, मेघालय, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और पंजाब में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग की थी। याचिका में कहा गया था कि इन राज्यों में अल्पसंख्यक होने के बावजूद हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया गया और अल्पसंख्यकों को मिलने वाले लाभ बहुसंख्यक वर्ग के लोग ले रहे हैं और हिंदू इन सुविधाओं से वंचित हैं।
कश्मीर से धारा 370 हटाने का मसला हो, नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) लागू करना हो या एनआरसी के जरिये मुसलमानों से नागरिकता छीनकर उनको डिटेंशन कैंपों में कैद करने की मंशा हो, संघ परिवार की विभाजनकारी सोच के आधार पर ही सरकार सारे फ़ैसले करती रही है। ऐसा लगता है कि बहुसंख्यकवाद के दबदबे वाली मानसिकता के कारण ही हिंदुओं के लिए आठ राज्यों में अल्पसंख्यक के दर्जे की मांग की जा रही है।