एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक मणिपुर राज्य मंत्रिमंडल ने शनिवार शाम को शुक्रवार की गोलीबारी के दौरान नागरिकों पर केंद्रीय सुरक्षा बलों की "अवांछित कार्रवाई" (कथित) की निंदा की, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई और 50 से अधिक घायल हो गए। इसमें केंद्र को घटना से अवगत कराने का भी फैसला लिया गया। कैबिनेट मीटिंग की अध्यक्षता मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने की। राज्य में भाजपा की सरकार है। इससे पहले भी राज्य सरकार और राज्य पुलिस असम राइफल्स को अशांत क्षेत्र से हटाने की मांग कर चुकी है। असम राइफल्स ने कई बार मणिपुर पुलिस को उसकी कार्रवाइयों के लिए रोका है। चार दिन पहले मैतेई समर्थक संगठन की महिलाओं ने सेना के बैरिकेड को हटाने की मांग करते हुए उस पर हमला बोल दिया था, जिसमें सौ से ज्यादा लोग घायल हुए थे।
कैबिनेट ने राज्य के हालात की समीक्षा भी की। हालांकि राज्य मंत्रिमंडल अगले छह महीने के लिए विवादास्पद कानून सशस्त्र बल विशेष शक्तियां अधिनियम (Armed Forces Special Powers Act) के तहत 'अशांत क्षेत्र' के विस्तार को मंजूरी दे दी। इसके जरिए भारतीय सशस्त्र बलों और राज्य को विशेष पावर मिलती है। इसके तहत कुछ घोषित क्षेत्रों में नियंत्रण अर्धसैनिक बलों के पास होता है।
मणिपुर में चार महीने से जातीय हिंसा चल रही है। लेकिन राज्य सरकार लंबे समय तक इस हिंसा को नियंत्रित कर पाने में नाकाम रही। यहां तक राज्य में इंटरनेट बंद करके सूचनाओं को छिपाया गया। राज्य में 3 मई को बहुत वीभत्स घटना घटी जब कुछ महिलाओं से उनके परिवार के सामने सामूहिक बलात्कार किया गया और उनकी नग्न परेड कराई गई। जिनकी नग्न परेड कराई गई वो कुकी आदिवासी महिलाएं थी और आरोप मैतेई समुदाय के लोगों पर हैं। जिन महिलाओं की नग्न परेड कराई गई, उनके परिवार के लोगों की हत्याएं भी की गईं। राज्य सरकार ने इस लोमहर्षक घटना को छिपा लिया। इसका वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और पूरे देश में गुस्से की लहर दौड़ गई, तब जाकर एफआईआर दर्ज हुई।
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मणिपुर की एन बीरेन सिंह सरकार पर मैतेई लोगों के प्रति हमदर्दी का आरोप कुकी आदिवासी संगठनों ने लगाया है। मणिपुर में जब हालात नहीं संभले तो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वहां का दौरा किया और तमाम संगठनों और सरकारी अधिकारियों से बात की। हाल ही में एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक कमेटी भेजकर मणिपुर में जातीय हिंसा पर मीडिया कवरेज की जांच कराई। जांच रिपोर्ट ने मणिपुर सरकार की खामियों को उजागर किया तो एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष सहित चार सदस्यों पर दो एफआईआर करा दी गई। तब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप किया।
इसने जातीय हिंसा के दौरान विस्थापित लोगों के लिए एक स्थायी आवास योजना को भी मंजूरी दी। राज्य सरकार वहां घर बनाएगी जहां माहौल हिंसा प्रभावित लोगों के लिए उनके मूल निवास क्षेत्रों में लौटने के लिए अनुकूल होगा। पहले चरण में, लगभग ₹ 75 करोड़ की अनुमानित लागत से लगभग 1,000 स्थायी घरों का निर्माण किया जाएगा। स्थाई मकान पर 10 लाख रुपये, अर्ध-स्थायी मकान पर 7 लाख रुपये और अस्थाई मकान पर 5 लाख रुपये खर्च किए जाएंगे।
फंड दो समान किस्तों में जारी किया जाएगा - 50 प्रतिशत निर्माण शुरू होने से पहले, और बाकी बाद की तारीख में। हिंसा के दौरान लगभग 4,800 घर जला दिए गए या क्षतिग्रस्त हो गए। मणिपुर सरकार ने कहा कि 170 से अधिक लोग मारे गए हैं, 700 से अधिक घायल हुए हैं और विभिन्न समुदायों के 70,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं।
मणिपुर में जातीय अशांति के दौरान यौन उत्पीड़न और अन्य अपराधों की शिकार महिलाओं और बचे लोगों के लिए एक मुआवजा योजना भी घोषित की है। बता दें कि मणिपुर हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन 3 मई को शुरू हुए थे जो बाद में हिंसा में बदल गए। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की सिफारिश की थी। फैसला आते ही भाजपा सरकार की कैबिनेट ने निर्णय भी ले लिया। इस पर वहां जातीय संघर्ष शुरू हो गया जो अभी भी तमाम दावों के बावजूद काबूू में नहीं आया।
मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि नागा और कुकी सहित आदिवासी 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं।
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