पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बुधवार को विपक्षी दलों के नेताओं को पत्र लिखकर साथ आने और लोकतंत्र को बचाने की अपील की है। ममता ने पत्र में यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी समेत तमाम विपक्षी नेताओं से कहा है कि यह एकजुट होने का समय है क्योंकि बीजेपी लोकतंत्र पर हमला कर रही है।
नंदीग्राम में चुनाव प्रचार मंगलवार शाम को खत्म हो गया। उसके बाद टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने बुधवार को ग़ैर-बीजेपी नेताओं को व्यक्तिगत रूप ने चिट्ठी लिखी है। उन्होंने आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव और समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव को चिट्ठी लिख कर बीजेपी की नीतियों के ख़िलाफ़ एकजुट होने की अपील की है।
ममता बनर्जी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के अलावा एनसीपी नेता शरद पवार, डीएमके प्रमुख एम. के. स्टालिन, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन रेड्डी, नेशनल कॉन्फ्रेंस के फारूक अब्दुल्ला, पीडीपी की महबूबा मुफ्ती और सीपीआईएमएल लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य को भी यह ख़त भेजा है।
ममता ने 7 बिंदुओं से साधे निशाने
1. ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों में एक के बाद एक नियमानुसार चुनी हुई सरकारों के लिए केंद्र राज्यपाल के कार्यालय का दुरुपयोग कर मुश्किलें खड़ी कर रहा है। पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों में राज्यपाल बीजेपी के पदाधिकारी की तरह व्यवहार कर रहे हैं, न कि निष्पक्ष संवैधानिक अधिकारी की तरह।
2. केंद्र में बीजेपी सरकार अपने राजनीतिक फायदे के लिए ग़ैर बीजेपी दलों के ख़िलाफ़ सीबीआई, ईडी और दूसरे संस्थानों का इस्तेमाल खुलेआम बदले की कार्रवाई के तौर पर करती रही है। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु में दोनों जगहों पर चुनाव चल रहे हैं तब मोदी सरकार ने ईडी को तृणमूल कांग्रेस और डीएमके के लोगों के ख़िलाफ़ लगा दिया है। अपेक्षा के अनुरूप ये संस्थाएँ गैर बीजेपी नेताओं को ही निशाना बनाती हैं और बीजेपी से जुड़े नेताओं को कभी नहीं।
3. मोदी सरकार जानबूझकर उन राज्यों के फंड के रुपये रोके बैठी है जहाँ गैर बीजेपी दलों की सरकारें हैं ताकि विकास और कल्याणकारी योजनाओं को लागू करने में दिक्कतें आएँ और लोगों को उसका लाभ नहीं मिले।
4. राष्ट्रीय विकास परिषद, अंतर राज्यीय परिषद और योजना आयोग (जिसको बिना दाँत-नाखून वाले थिंक टैंक नीति आयोग बना दिया गया है) को निष्क्रिय कर मोदी सरकार ने हर उस प्लेटफॉर्म को निष्क्रिय कर दिया है जहाँ राज्य सरकारें केंद्र सरकार के सामने अपनी वाजिब माँगें, ज़रूरतें, चिंताएँ और विचार रख सकती थीं।
5. बीजेपी ने संदेहास्पद स्रोतों से असीमित संसाधन इकट्ठे कर लिए हैं जिसका वह कायदे से चुनी गईं ग़ैर बीजेपी सरकारों को बेदखल करने और ग़ैर बीजेपी दलों में तोड़फोड़ करने के लिए इस्तेमाल कर रही है।
6. देश की संपत्ति को थोक में और बिना सोचे-समझे निजीकरण की मोदी सरकार की नीतियाँ भी लोकतंत्र पर हमला हैं, क्योंकि ये संपत्तियाँ देश के लोगों की हैं।
7. कुल मिलाकर केंद्र-राज्य संबंध और केंद्र की सत्ताधारी पार्टी व विपक्षी पार्टियों के बीच संबंध आज़ाद भारत के इतिहास में इतनी ख़राब कभी नहीं रहीं जितनी अब हैं। इसका दोष सीधे तौर पर प्रधानमंत्री के तानाशाही रवैये को जाता है।
समझा जाता है कि इस चिट्ठी के ज़रिए ममता बनर्जी पूरे विपक्ष को एकजुट करना चाहती हैं। पाँच राज्यों में हो रहे चुनाव के बीच चिट्ठी लिख कर वह बीजेपी पर दबाव बना रही हैं।
एनसीटी विधेयक पर दिया था 'आप' का साथ
इसके ठीक पहले जब राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के शासन से जुड़े एनसीटी बिल को राज्यसभा में पेश किया गया था तो तृणमूल कांग्रेस ने उसका ज़ोरदार विरोध किया था। इस विधेयक के ज़रिए दिल्ली सरकार के ऊपर लेफ़्टिनेंट गवर्नर को अधिकार सौंप दिया गया।
तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने पहले राज्यसभा के स्पीकर एम वेंकैया नायडू से आग्रह किया कि चुनाव प्रचार की वजह से बहुत सांसद राज्यसभा में मौजूद नहीं हो सकते, लिहाजा, इस विधेयक पर बहस चुनावों के बाद कराया जाए।
लेकिन स्पीकर ने इसे खारिज कर दिया। बहस के दौरान टीएमसी के सदस्यों विधेयक का ज़ोरदार विरोध किया था। समाजवादी पार्टी और राष्ट्री जनता दल के सदस्यों ने भी इसका विरोध किया था।
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