दिल्ली हाई कोर्ट के जिस
सेवानिवृत्त जज के इंटरव्यू को लेकर क़ानून मंत्री ने न्यायपालिका के अधिकारों पर
सवाल उठाया था, आज उन्हीं
सेवानिवृत्त जज ने क़ानून मंत्री को सख़्त हिदायत दे दी। उन्होंने साफ़ शब्दों में
क़ानून मंत्री किरण रिजिजू से कह दिया कि वह उनके कंधे पर बंदूक़ रखकर चलाना बंद
करें।
दिल्ली हाईकोर्ट के सेवा
निवृत जज आर एस सोढ़ी का यह इंटरव्यू ऐसे समय आया है जब केंद्र सरकार और
न्यायपालिका को लेकर जजों की नियुक्ति के लिए बने कोलोजियम पर खींचतान चल रही है।
दिल्ली हाईकोर्ट के
रिटायर्ड जज आरएस सोढ़ी ने बीते दिनों लॉस्ट्रीट भारत नाम के यूट्यूब चैनल को दिए
इंटरव्यू में जस्टिस सोढ़ी ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार संविधान को
हाईजैक किया है। ऐसा करते हुए उनका कहना है कि न्यायाधीशों को हम खुद ही नियुक्त
करेंगे, और इसमें सरकार की कोई
भूमिका नहीं होगी।
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किरण रिजिजू ने आरएस
सोढ़ी की इस इंटरव्यू की एक क्लिप निकाल कर ट्विटर पर लिखा था कि वास्तव में यह
अधिकांश लोगों के विचार हैं। सुप्रीम कोर्ट में बैठे लोग वह लोग हैं जो जो संविधान
के प्रावधानों और लोगों के जनादेश की अवहेलना करते हैं, और सोचते हैं कि वे भारत के संविधान से ऊपर हैं।
रिटायर्ड जस्टिस सोढ़ी
किरण रिजिजू के इस ट्वीट पर ही अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा
कि मैं इस मुद्दे को उठाने के लिए कानून मंत्री को धन्यवाद देता हूं। लेकिन मैं
राजनीतिक व्यक्ति नहीं हूं। कॉलेजियम प्रणाली असंवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट और
हाईकोर्टों में एक सचिवालय होना चाहिए यह मेरी निजी राय है।
जस्टिस सोढ़ी ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि यह कैसे हो सकता है कि दो-तीन जस्टिस ही मिलकर तय करें कि कौन जस्टिस बनेगा? कॉलेजियम प्रणाली फेल हो गई है लेकिन संवैधानिक निकायों को न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में सार्वजनिक आलोचना से बचना चाहिए।
न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका की शक्तियों पर चल रही बहस में वह कहां हैं? इस पर बात करते हुए जस्टिस सोढ़ी ने कहा कि संसद कानून बनाने में सर्वोच्च है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कानूनों की जांच करने में सक्षम है।
एक जज की स्वतंत्र आवाज
यही भारतीय लोकतंत्र की असली खूबसूरती और इसकी सफलता है। जनता अपने चुने हुए
प्रतिनिधियों के माध्यम से स्वयं शासन करती है। निर्वाचित प्रतिनिधि लोगों के
हितों और कानूनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र और संविधान
सर्वोच्च है।
राज्यों के हाईकोर्ट,
सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं हैं लेकिन हाई
कोर्ट के जस्टिस सुप्रीम कोर्ट की तरफ देखना शुरु करते हैं और अधीन हो जाते हैं।
जस्टिस सोढ़ी ने कहा कि उन्हें क्यों लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिसों का एक
पैनल जिसे कॉलेजियम कहा जाता है, जो जजों की
नियुक्तियां करता है, हाईकोर्ट और
सुप्रीम कोर्ट के लिए काम नहीं करता है।
रिजिजू का हालिया बयान
न्यायपालिका और सरकार के बीच लंबे समय से चली आ रही खींचतान की अगली कड़ी है। जो
हाल के महीनों में और तेज हुई है। रिजिजू के साथ राज्यसभा के उप-सभापतिजगदीप धनखड़
की टिप्पणियों से, कोलोजियम को लेकर
बहस और तेज कर दी है। जिससे न्यायपालिका पर दबाव बढ़ा है।
पिछले दिनों केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने सीजेआई को एक पत्र लिखकर जजों की नियुक्ति में सरकार के प्रतिनिधि को शामिल करने की मांग की थी।
पिछले हफ्ते, सुप्रीम कोर्ट ने न्यायपालिका में होने वाली
नियुक्तियों और पदोन्नतियों पर सरकार की आपत्तियों को लेकर चल रही न्यायपालिका और
सरकार के बीच चल रही बातचीत को सार्वजनिक कर दिया था। इसमें एक वकील सौरभ कृपाल जिसे सुप्रीम कोर्ट
जज के रूप में नामित करना चाहता उसको लेकर सरकार के विरोध की वजहों को भी
सार्वजनिकक कर दिया था। सौरभ कृपाल अगर जज बनते तो वे भारत के पहले समलैंगिक जज
होते।
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