ख़बर है कि क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा अखिल भारतीय न्यायपालिका सेवा के अंतर्गत एक प्रवेश परीक्षा आयोजित कराने और उसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन जातियों (एससी/एसटी) के लिए आरक्षण प्रदान करने की बात कही है। उन्होंने कहा है कि इससे वंचित वर्गों से प्रशिक्षित न्यायिक अधिकारियों को तैयार करने में मदद करेगी और न्यायपालिका के प्रतिनिधित्व मामले में सुधार आएगा।
सिर्फ़ चुनावी ढोंग है न्यायपालिका में आरक्षण की बात
- विचार
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- 27 Dec, 2018

कानून मंत्री ने न्यायपालिका में आरक्षण देने की बात तो कही है लेकिन अब जब सरकार के सिर्फ़ कुछ महीने शेष हैं तो ऐसे में यह चुनाव में वोट बँटोरने के सिवा और कुछ नहीं है।
खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने इस क़दम का स्वागत किया है और कहा है कि इससे काफ़ी समय से लंबित उनकी माँग पूरी होगी। वाह पासवान जी, चार साल तक सत्ता की मलाई खाने के बाद अब याद आया कि यह माँग वर्षों से लंबित थी। अगर वर्षों से लंबित थी, तो इसके लिए सरकार पर दबाव क्यों नहीं बनाया, जैसे अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए बनाते हो? सौदेबाजी के सिवा कुछ सीखा है पासवान ने, वह भी जनता के हित में नहीं, अपने हित में।
क़ानून मंत्री ने सही कहा है कि न्यायपालिका में प्रतिनिधित्व अनुपात सही नहीं है। जिस देश में मनुष्य की पहचान जातियों से होती है, और शासन-प्रशासन में ब्राह्मणों का वर्चस्व है, वहाँ विविधता को स्थापित करना जरूरी है, वरना साम्प्रदायिक असुंतलन लोकतंत्र के लिए ख़तरा बन सकता है। आज स्थिति यह है कि भारत की न्यायपालिका में ब्राह्मण जजों की संख्या सर्वाधिक और दलित वर्गों की संख्या नगण्य है।