प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में कई क़ानूनों को बदला, नोटबंदी और जीएसटी जैसे क़दम भी उठाये, लेकिन एक क़ानून ऐसा था जिसमें वह बहुत चाहकर भी बदलाव नहीं कर पाए थे और वह था भूमि अधिनियम क़ानून 2013। इसको लेकर अध्यादेश भी लाया गया, लेकिन जब अध्यादेश की समय-सीमा 31 अगस्त 2015 को पूरी होने जा रही थी, उससे एक दिन पहले मोदी ने 'मन की बात' में कहा कि सरकार ने तय किया है कि इसे समाप्त होने दिया जाए और भूमि अधिग्रहण क़ानून में अब वही स्थिति बनी रहेगी जो पहले थी। पूर्ण बहुमत वाली मोदी सरकार के लिए यह बड़ी किरकिरी थी और कमज़ोर विपक्ष के लिए बड़ी जीत। मोदी सरकार अब पिछले के मुक़ाबले और अधिक बहुमत के साथ सरकार में आयी है और दूसरी सरकार के कार्यकाल का पहला संसद-सत्र शुरू हो चुका है। ऐसे में अब यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या वह पिछली बार की तरह अपने दूसरे कार्यकाल में भी प्राथमिकता ज़मीन अधिग्रहण क़ानून को बदलने को ही देगी?

मोदी सरकार इस बार अधिक बहुमत के साथ सत्ता में आयी है। ऐसे में अब यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या वह पिछली बार की तरह अपने दूसरे कार्यकाल में भी प्राथमिकता ज़मीन अधिग्रहण क़ानून को बदलने को ही देगी?