मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न की शिकायत के मामले में दिलचस्प मोड़ आ गया है। इस मामले में 20 अप्रैल को उनकी ओर से की गई कार्रवाई में ‘प्रक्रिया की ग़लती’ का हवाला देकर आलोचना किए जाने के बाद गोगोई ने जस्टिस एस. ए. बोबडे को आगे की कार्रवाई करने को कहा है। बोबडे उनके बाद वरिष्ठतम जज हैं और नवंबर में उनके रिटायर होने के बाद मुख्य न्यायाधीश बन सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के दो संगठनों ने कहा था कि यौन उत्पीड़न की शिकायत मिलने के बाद मुख्य न्यायाधीश ने जिस तरह कुछ जजों की बैठक बुलाई थी और उसकी अध्यक्षता भी खुद ही की थी, वह ग़लत था। इसके अलावा लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता और दूसरे अहम लोगों ने एक चिट्ठी लिख कर इस मामले की जाँच कराने की माँग की थी। इसके बाद रंजन गोगोई ने बोबडे से कहा है कि वह इस मामले में आगे की कार्रवाई करें।
सुप्रीम कोर्ट की एक पूर्व अस्थायी महिला कर्मचारी ने जजों को चिट्ठी लिख कर शिकायत की थी कि मुख्य न्यायाधीश ने उसके साथ यौन प्रताड़ना किया था और विरोध करने के बाद उसे नौकरी से निकाल दिया गया था, दिल्ली पुलिस में काम कर रहे उसके पति और देवर को निलंबित कर दिया गया था।
‘न्यायिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन’
सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन ने सोमवार को एक बयान में कहा कि सुप्रीम कोर्ट का शनिवार का सत्र ‘स्थापित न्यायिक प्रक्रियाओं का उल्लंघन था।’
बयान में अपील की गई है कि ‘पूर्ण कोर्ट अगली बैठक के लिए प्रिंट, टेलीविज़न, सोशल मीडिया और दूसरी जगहों पर मौजूद इससे जुड़ी सामग्री इकट्ठी करे।’
सर्वोच्च अदालत के वकीलों के संगठन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड्स असोसिएशन ने शनिवार की बैठक को ‘प्रक्रिया की ग़लती’ बताते हुए माँग की कि ‘पूर्ण अदालत की अगुआई में एक कमेटी का गठन किया जाए जो आरोपों की निष्पक्ष जाँच करे।’
दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों का संगठन सुप्रीम कोर्ट इंप्लॉयज़ वेलफ़ेयर असोसिएशन खुल कर मुख्य न्यायाधीश के पक्ष में आ गया। संगठन ने एक बयान में कहा है कि ‘इस तरह के मनगढ़ंत, झूठे और बेबुनियाद आरोपों का विरोध करता है, ये आरोप संस्था की छवि ख़राब करने के लिए लगाए गए हैं।’
निष्पक्ष जाँच की माँग
इसके साथ ही लेखिका अरुंधति राय, सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर और अरुणा राय जैसे 33 मशहूर लोगों ने एक साझे बयान में माँग की है कि मुख्य न्यायाधीश पर लगे आरोपों की निष्पक्ष जाँच के लिए स्वतंत्र कमेटी बनाई जानी चाहिए।
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यह न्यायपालिका के लिए गंभीर संकट का समय है। यदि अदालत इस चुनौती का पूरी विश्वसनीयता से सामना नहीं करेगी तो जनता के बीच इसकी साख काफ़ी गिरेगी।
33 प्रतिष्ठित नागरिकों के बयान का हिस्सा
इन लोगों ने बयान में यह भी कहा है कि जब तक इन आरोपों की जाँच पूरी नहीं हो जाती, मुख्य न्यायाधीश हर तरह के प्रशासनिक कामकाज से दूर रहें क्योंकि शिकायत करने वाली महिला ने जिन प्रत्यक्षदर्शियों के नाम लिए हैं, उनमें से ज़्यादातर अदालत में काम करते हैं।
इस बयान पर एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक आकार पटेल, हर्ष मंदर, पी साइनाथ, योगेंद्र यादव और दूसरे मशहूर और महत्वपूर्ण लोगों के दस्तख़त हैं।
क्या है मामला?
सुप्रीम कोर्ट की एक 35 वर्षीया महिला जूनियर क्लर्क ने 19 अप्रैल को अदालत के 22 जजों को एक चिट्ठी लिखी। उन्होंने उसमें कहा कि 10 और 11 अक्टूबर 2018 को जब वह रंजन गोगोई के घर पर थी, गोगोई ने उसके साथ अभद्र व्यवहार (सेक्सुल अडवांसेज) किया था, जिसका उन्होंने विरोध किया था। वह गोगोई के आवासीय कार्यालय में अगस्त 2018 से काम कर रही थी, इस घटना के बाद उन्हें वहाँ से हटा दिया गया। दो महीने बाद 21 दिसंबर, 2018 को उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। उन्हें नौकरी से निकालने के लिए जो तीन कारण बताए गए थे, उनमें एक यह भी था कि उसने पूर्व स्वीकृति के बग़ैर ही एक दिन की आकस्मिक छुट्टी ले ली थी।
‘हम सरकार नहीं, आपसे डरते हैं’
यह पूरा मामला इससे भी अधिक गंभीर है। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि वरिष्ठ वकील यतीन ओझा ने रंजन गोगोई को एक बेहद कड़ी चिट्ठी लिख कर उन पर काफ़ी गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने लिखा है, ‘जज सरकार से नहीं डरते हैं, बल्कि वे आपसे डरते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि यदि उन्होंने आपके ज़रिए सरकार को नाराज़ कर दिया तो सरकार उन्हें इसकी सज़ा देगी।’ ओझा ने बहुत ही गंभार आरोप लगाते हुए मुख्य न्यायाधीश से कहा है कि वह अपने बेटे और दामाद की आयकर रिटर्न्स का खुलासा करें, जिन्होंने अरबों रुपये कमाए हैं। गोगोई ने शनिवार की बैठक के बाद कहा था कि इतनी लंबी न्यायिक सेवा के बाद उनके बैंक खाते में 6.80 लाख रुपये हैं, उनसे ज़्यादा पैसे तो उनके चपरासी के पास हैं।
मुख्य न्यायाधीश पर इस तरह के आरोप उस समय लग रहे हैं जब न्यायपालिका को लेकर कई तरह की बातें कही जा रही हैं। रंजन गोगोई ने ज़ोर देकर कहा है कि उन पर इस तरह के आरोप इसलिए लगाए जा रहे हैं कि वह बहुत जल्द ही एक अति महत्वपूर्ण मामले में फ़ैसला सुनाने वाले हैं और उसके पहले पूरी न्यायपालिका पर ही प्रश्न चिह्न लगाया जा रहा है।
लेकिन कई लोगों का कहना है कि ख़ुद मुख्य न्यायाधीश ने तयशुदा प्रक्रियाओं का उल्लंघन किया है। लोगों का यह भी कहना है कि पूरे मामले में निष्पक्ष जाँच होनी चाहिए और गोगोई उसमें अपनी बात रखें।
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