भूमि अधिग्रहण क़ानून पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई से ख़ुद ही हटने से जस्टिस अरुण मिश्रा ने इनकार कर दिया है। संविधान पीठ इस क़ानून के प्रावधानों की व्याख्या करने के मामले में सुनवाई कर रहा है। जस्टिस मिश्रा इस बेंच में शामिल हैं। खंडपीठ के सामने कुछ भूमि संघों ने इस आधार पर जस्टिस मिश्रा को ख़ुद से हट जाने की माँग की थी क्योंकि जस्टिस मिश्रा ही इस बेंच का नेतृत्व कर रहे हैं जिन्होंने 2018 में इस मामले में फ़ैसला दिया था। इन संघों का मानना है कि जिस जज ने फ़ैसला दिया है फिर वही जज फिर से मामले पर पुनर्विचार कैसे कर सकते हैं।
इस संविधान पीठ में जस्टिस अरुण मिश्रा के अलावा जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस विनीत शरण, जस्टिस एम. आर. शाह और जस्टिस एस रविंद्र भट्ट हैं। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि जस्टिस अरुण मिश्रा को पाँच जजों की संविधान पीठ से हटाया गया तो यह इतिहास में एक काला अध्याय होगा। बेंच ने कहा कि यह न्यायपालिका पर हमले जैसे है।
जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘क्या यह न्यायालय को बदनाम नहीं कर रहा है? यदि आपने इसे मेरे ऊपर छोड़ दिया होता तो मैंने फ़ैसला किया होता... लेकिन आप मुझे… और भारत के मुख्य न्यायाधीश को बदनाम करने के लिए सोशल मीडिया पर जा रहे हैं? ...क्या ऐसा अदालत का माहौल हो सकता है? यह ऐसा नहीं हो सकता... मुझे एक न्यायाधीश बताएँ जिसने इस पर कोई विचार नहीं किया है। क्या इसका मतलब यह होगा कि हम सभी अयोग्य हैं? ... इस मामले को मेरे सामने सूचीबद्ध नहीं किया जाना चाहिए था। लेकिन अब यह मेरे सामने है, इसलिए मेरी ईमानदारी का सवाल उठ गया है।’
उन्होंने कहा, ‘मेरे विचार के लिए मेरी आलोचना की जा सकती है, मैं हीरो नहीं हो सकता..., लेकिन अगर मैं संतुष्ट हूँ कि मेरा विवेक स्पष्ट है, भगवान के सामने मेरी ईमानदारी स्पष्ट है, तो मैं हिलूँगा नहीं। अगर मुझे लगता है कि मैं किसी भी बाहरी कारणों से प्रभावित होऊँगा,तो मैं सबसे पहले यहाँ से अलग हो जाऊँगा।’
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने किसान संगठनों के वकील श्याम दीवान से कहा कि सुनवाई से जस्टिस मिश्रा को हटाने की माँग करना ग़लत है। क्या आप पाँच जजों की पीठ में अपनी पसंद का व्यक्ति चाहते हैं।
पहले भी सुर्खियों में रहे थे जस्टिस मिश्रा
जस्टिस अरुण मिश्रा केसों के आवंटन पर शिकायत को लेकर पहली बार सुर्खियों में नहीं हैं। इससे पहले पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के कार्यकाल के दौरान जब सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी तब यह माना गया था कि उनका इशारा जस्टिस अरुण मिश्रा पर ही था। जजों की प्रेस कॉन्फ़्रेंस के अगले दिन कोर्ट में जजों की चाय की बैठक को लेकर 17 जनवरी 2018 को 'इंडिया टुडे' ने एक रिपोर्ट छापी थी। इसमें सूत्रों के हवाले से लिखा गया था कि 'जस्टिस अरुण मिश्रा ने कोर्ट में हाल में हुए घटनाक्रमों पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी।
बता दें कि 12 जनवरी 2018 को तत्कालीन चार वरिष्ठ जज- जस्टिस जे चेलमेश्वर, रंजन गोगोई, एम.बी लोकुर और कुरियन जोसेफ़ ने केसों के आवंटन और न्यायिक नियुक्तियों पर चिंता जताते हुए प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी। तब यह रिपोर्टें आईं थीं कि उनकी आपत्ति इस बात को लेकर थी कि बड़े-बड़े चुनिंदा केसों को किसी वरिष्ठतम जज या उनकी बेंच को नहीं दिया जा रहा था। तब जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच के सामने शोहराबुद्दीन केस को सुनने वाले जज लोया की मौत का मामला, सहारा-बिड़ला डायरी केस, गोधरा केस को खोलन के लिए दायर की गई पूर्व आईपीएस संजीव भट्ट की याचिका जैसे मामले पड़े थे। उससे कुछ दिन पहले ही जस्टिस अरुण मिश्रा ने 2जी स्पेक्ट्रम मामले में भी फिर से जाँच रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था।
'इंडिया टुडे' की उस रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया था कि जस्टिस मिश्रा ने ख़ुद पर काफ़ी ज़्यादा काम का बोझ होने की बात भी कही थी। रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस मिश्रा ने भावुक होते हुए कहा था, ‘मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी अर्जित किया है वह प्रतिष्ठा है और आपने इस पर हमला करने की कोशिश की है… आप इसे मुझे वापस कैसे करेंगे? बेहतर होता कि आप मेरी प्रतिष्ठा पर हमला करने के बजाय मुझे गोली से मार देते।’
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