सुप्रीम कोर्ट से पत्रकार सिद्दीक कप्पन को जमानत मिल गई, लेकिन उनकी मुश्किलों का अंत नहीं हुआ। उसी ईडी ने उनका भी रास्ता रोक दिया है। ईडी ने कप्पन के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का केस दर्ज कर रखा है, इसलिए कप्पन को जब तक उस मामले में जमानत नहीं मिल जाती, तब तक वो जेल से बाहर नहीं आ सकते। पीटीआई समेत तमाम मीडिया रिपोर्ट में डीजी जेल पीआरओ संतोष वर्मा के हवाले से बताया गया है कि इस केस में जमानत मिलने तक पत्रकार कप्पन को जेल में ही रहना होगा। कप्पन अक्टूबर 2020 से जेल में हैं।
लखनऊ की एक अदालत ने सोमवार को कप्पन की रिहाई का आदेश जारी किया था। लेकिन आदेश जब जेल में पहुंचा तो कप्पन के वकील को ईडी की एफआईआर के बारे में जानकारी दी गई।
हाथरस में 2020 में एक दलित लड़की की रेप के बाद हत्या का मामला सामने आया था। इस मुद्दे ने तूल पकड़ा तो कप्पन भी उसे कवर करने के लिए हाथरस जा रहे थे। यूपी पुलिस ने कप्पन के साथ तीन अन्य अतिकुर्र रहमान, आलम और मसूद को मथुरा इलाके में गिरफ्तार किया और इन पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) से कथित तौर पर संबंध रखने और हिंसा भड़काने की साजिश का आरोप लगाया। पुलिस ने इन पर यूएपीए भी लगा दिया। यूपी पुलिस ने इस मामले को ऐसा रंग दिया था कि जैसे सिद्दीक कप्पन और बाकी लोग योगी सरकार को पलटने आए थे। इस योगी सरकार के खिलाफ साजिश बताया गया था। मीडिया ने पुलिस सूत्रों के हवाले से बिना पुष्टि के तमाम खबरें छापीं और दिखाई थीं।
बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सिद्दीक कप्पन को जमानत दे दी थी। अदालत ने जमानत के लिए कई शर्तें रखीं, जिसमें जेल से रिहा होने के बाद उन्हें अगले छह सप्ताह तक दिल्ली में रहना होगा और हर सोमवार को निजामुद्दीन पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट करना होगा।
कप्पन को जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का विपक्षी दलों और पत्रकार संगठनों ने स्वागत किया था। इन लोगों ने दावा किया कि कप्पन को उत्तर प्रदेश सरकार ने एक "सॉफ्ट टारगेट" बनाया था। इन लोगों ने उम्मीद जताई है कि कप्पन को मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम मामले में भी जमानत मिल जाएगी। कहा जा रहा है कि कप्पन के बैंक खाते में बहुत ज्यादा पैसे नहीं थे। ईडी ने महज 20-30 हजार रुपये के लेन-देन को कथित मनी लॉन्ड्रिंग मान लिया। जबकि वो पैसे उनकी संस्था ने उनकी पत्रकारिता करने के बदले भेजे थे।
बता दें कि हाथरस में 14 सितंबर, 2020 को गैंगरेप के एक पखवाड़े बाद दिल्ली के एक अस्पताल में दलित लड़की की मौत हो गई थी। उसका अंतिम संस्कार आधी रात को उसके गांव में पुलिस सुरक्षा में चुपचाप किया गया था। इस रेप केस मामले में यूपी की बीजेपी सरकार की खासी किरकिरी हुई थी। दलित संगठनों का आरोप है कि इस मामले में आज तक उस परिवार को इंसाफ नहीं मिला है।
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