छात्रों के ख़िलाफ़ जामिया मिल्लिया इसलामिया ही नहीं अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय यानी एएमयू में भी बर्बरता की गई थी। फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि एएमयू में छात्रों के ख़िलाफ़ स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल किया गया था और पुलिस कार्रवाई में एक छात्र को हाथ तक खोना पड़ा। एएमयू में यह घटना 15 दिसंबर को हुई थी जब छात्रों का एक समूह दिल्ली के जामिया मिल्लिया इसलामिया में पुलिस कार्रवाई के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहा था।
नागरिकता क़ानून और जामिया मिल्लिया इसलामिया में पुलिस कार्रवाई के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले एएमयू के छात्रों पर पुलिस कार्रवाई कितनी बर्बर थी, इस पर फ़ैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस ने छात्रों के ख़िलाफ़ उन स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल किया जिनका आतंकी अभियानों और युद्ध जैसी परिस्थितियों में उपयोग किया जाता है। रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है और विश्वविद्यालय प्रशासन भी कैंपस और इसमें रहने वाले लोगों की उत्तर प्रदेश पुलिस की बर्बरता से रक्षा करने की अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में विफल रहा।
13 सदस्यों की टीम ने इस फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट को तैयार किया है। इसमें पूर्व आईएस अधिकारी हर्ष मंदर, बुद्धिजीवी नंदिनी सुंदर, कार्यकर्ता जॉन दयाल, लेखक नताशा बधवार जैसे कार्यकर्ता शामिल थे। टीम ने विश्वविद्यालय में छात्रों, शिक्षकों और दूसरे प्रत्यक्षदर्शियों के बयानों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एक छात्र जिसने आँसू गैस का गोला समझकर स्टन ग्रेनेड को हाथ में उठा लिया था उसने अपना हाथ खो दिया। बता दें कि तब रिपोर्टें आई थीं कि पुलिस प्रदर्शन करने वालों के ख़िलाफ़ आँसू गैस के गोले दाग रही थी और कई बार प्रदर्शन करने वाले उन गोलों को अपनी तरफ़ से दूर फेंक देते थे।
फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट में तथ्यों की पड़ताल के आधार पर कहा गया है कि आँसू गैस के गोले छोड़ने के साथ ही स्टन ग्रेनेड फेंके गए थे।
'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, अलीगढ़ (शहर) एसपी अभिषेक ने कहा, 'हो सकता है कि पुलिस कर्मियों ने स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल किया हो...। अब यदि इसकी बात की जाए कि कितने स्टन ग्रेनेड इस्तेमाल किए गए तो... यह जाँच के बाद ही कहा जा सकता है। हमारे पास उसकी क्लिपिंग है जिसमें छात्र आँसू गैस के गोले वापस फेंक रहे थे। स्टन ग्रेनेड ख़तरनाक नहीं है और यह सिर्फ़ तेज़ आवाज़ करता है जिसे भीड़ को तितर-बितर करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।'
स्टन ग्रेनेड कितना घातक?
दावा किया जाता रहा है कि स्टन ग्रेनेड ख़तरनाक विस्फोटक चीज नहीं है और इसका इस्तेमाल तात्कालिक तौर पर दुश्मन को सुनने और देखने की क्षमता को ख़त्म करने के लिए किया जाता है। हालाँकि कई बार इससे हमेशा के लिए बहरे होने की रिपोर्टें तक आई हैं। स्टन ग्रेनेड से आग लगने जैसी घटनाओं में कई लोगों की जानें तक चली गई हैं। 14 नवंबर 2019 को को बगदाद में स्टन ग्रेनेड से घायल एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। अमेरिका के जॉर्जिया में मई 2014 में 19 महीने के बच्चा बुरी तरह से जल गया था। हालाँकि उसकी जान बच गई थी। ऐसे ही कई मामलों में लोगों के गंभीर रूप से घायल होने की ख़बरें हैं। अमेरिका की स्वात पुलिस को इसके लिए कई बार आलोचना झेलनी पड़ी है। पहली बार स्टन ग्रेनेड का इस्तेमाल अंग्रेज़ों की सेना की स्पेशल एयर सर्विस ने 1970 में किया था।
'एएमयू प्रशासन की लापरवाही'
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है, 'उन्होंने (रजिस्ट्रार ने) पुलिस की कार्रवाई को ज़रूरी व संयमित क़रार देते हुए सही ठहराया और यहाँ तक कि पुलिस द्वारा स्टन ग्रेनेड के इस्तेमाल पर भी ढुलमुल जवाब दिया। ये उपकरण अस्थायी रूप से अंधे और दुश्मन को बहरा करने वाले हैं, जिन्हें कभी-कभी चोट लगने और आग की लपटें उठने के कारण के तौर पर जाना जाता है। संभावना है कि इसी से एक छात्र ने अपना हाथ खो दिया... और संभवतः छात्रावास के कमरों में आग भी लगी।’
जय श्री राम के नारे
रिपोर्ट में कहा गया है, 'छात्रों ने कहा कि पुलिस कर्मियों व जवानों ने छात्रों पर हमला करते हुए और उनके स्कूटरों, गाड़ियों में आग लगाते हुए जय श्री राम के नारे लगाए।' रिपोर्ट में पुलिस द्वारा धार्मिक शब्दों का इस्तेमाल करते हुए आतंकवादी बोले जाने का ज़िक्र किया गया है।
रिपोर्ट में सवाल उठाए गए हैं कि 'कुलपति का दावा है कि विश्वविद्यालय में उन्होंने जवानों को बुलाया था तो यह साफ़ नहीं है कि आरएएफ़ के जवानों ने गेट को क्यों ध्वस्त किया।'
नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे छात्रों के ख़िलाफ़ पुलिस कथित तौर पर जामिया मिल्लिया इसलामिया कैंपस में घुस गई थी और छात्रों की पिटाई की थी। इस ख़बर के बाद ही पहले अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय और बाद में देश भर के कई बड़े-बड़े विश्वविद्यालयों में जामिया छात्रों के समर्थन में प्रदर्शन किया गया था। वे नागरिकता क़ानून का भी विरोध करते रहे हैं। नागरिकता क़ानून के तहत 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश से भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध नहीं माना जाएगा। उन्हें इस देश की नागरिकता दी जाएगी। हालाँकि, इस क़ानून में मुसलिमों के लिए यह प्रावधान नहीं है। इसी को लेकर विरोध हो रहा है।
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