बेल्जियम के एंटवर्प शहर के सेंट्रल स्टेशन से मुश्किल से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित है होवेनिएर स्ट्राट। यह हीरे की खरीद-बिक्री का बाज़ार है। यहां दुनिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा डायमंड बोर्स/एक्सचेंज मौजूद है। दो वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके में हर रोज अरबों डॉलर के हीरों की खरीद-बिक्री होती है।

भारत का हीरा उद्योग मुश्किल दौर से गुजर रहा है। लैब में बने हीरों की बढ़ती चुनौती, वैश्विक मंदी, ट्रंप के टैरिफ़ और चीन की प्रतिस्पर्धा इसे बर्बादी की ओर धकेल रही है। जानें इसके पीछे की वजहें और भारत के लिए आगे की राह।
करीब पचास साल पहले एंटवर्प के हीरा व्यापार पर ऑर्थोडॉक्स यहूदियों का एकाधिकार हुआ करता था। लेकिन यह परिदृश्य तब बदलने लगा जब 1960 के आसपास हीरा पॉलिशिंग के व्यवसाय में भारी मंदी छा गई। व्यापार में आई इस मंदी से परेशान गुजरात के पालनपुर के कुछ जैन हीरा व्यापारियों ने अवसरों की तलाश में एंटवर्प में कदम रखा। उस समय भी एंटवर्प खदानों से निकले कच्चे हीरों की खरीद-बिक्री का सबसे बड़ा केंद्र था। कुछ ही सालों में ये गुजराती व्यापारी—झवेरी, चोकशी, कोठारी, भंसाली, मोदी, मेहता—यहूदी व्यापारियों को पीछे छोड़ते हुए हीरे के पर्याय बन गए। उसके बाद से आज तक एंटवर्प के हीरा कारोबार पर गुजरात के पालनपुरी जैन कारोबारियों का नियंत्रण है। एंटवर्प के अलावा तेल अवीव और न्यूयॉर्क में भी कटिंग, पॉलिशिंग और बिक्री के क्षेत्र में उनकी मज़बूत उपस्थिति है। दुनिया के क़रीब 60% हीरा व्यापार पर गुजरात के एक छोटे से कस्बे पालनपुर के जैन व्यापारियों का कब्जा है।