पटेल की चिट्ठी
‘नेहरू अभिनंदन ग्रंथ - अ बर्थडे बुक’ में नेहरू के नाम पटेल की लिखी एक चिट्ठी छपी थी। मौक़ा था नेहरू के 60वें जन्मदिन पर आयोजित एक समारोह का। 14 अक्टूबर 1949 को लिखी चिट्ठी पटेल और नेहरू के रिश्तों पर रोशनी डालती है। इससे यह भी साफ़ होता है कि पटेल देश के पहले प्रधानमन्त्री के बारे में क्या सोचते थे। जो लोग यह साबित करने में लगे हैं कि नेहरू और पटेल में नहीं बनती थी या यह कि पटेल की उपेक्षा हुई और कांग्रेस या सरकार में उन्हें वह स्थान नहीं मिला, जिसके वे हक़दार थे, यह उनके लिए एक जवाब हो सकता है।पटेल इसी ख़त में आगे लिखते हैं, ‘आज़ादी की सुबह के ठीक पहले उन्हें हमारा मुख्य प्रकाश स्तंभ होना चाहिए, और स्वतन्त्रता मिलने के बाद जो एक-के-बाद-एक समस्याएँ आती गईं, एेसे में वे ही हमारी टुकड़ी की अगुवाई कर सकते हैं।'
नेहरू-पटेल मतभेद
ऐसा नहीं है कि नेहरू और पटेल में मतभेद नहीं थे। शंकर घोष की पुस्तक ‘नेहरू - अ बायोग्रफ़ी’ में इसकी झलक मिलती है। घोष लिखते हैं कि कश्मीर, हिंदू-मुसलिम एकता और दूसरे कई मुद्दों पर नेहरू और उनके गृह मंत्री के विचार नहीं मिलते थे। पर अंत में पटेल अपने प्रधानमंत्री की बात मान लिया करते थे।'शंकर घोष ने अपनी किताब में लिखा कि दोनों के बीच मतभेद इस कदर बढ़ गए कि दोनों ने महात्मा गाँधी से अलग-अलग मिल कर शिकायतें कीं। गाँधी ने उस समय तक भारत में मौजूद लॉर्ड माउंटबेटन से उन दोनों को समझाने को कहा।पटेल की दावेदारी
इसी तरह बीजेपी नेहरू की विरासत को नकारने और कांग्रेस को घेरने के लिए कहती है कि प्रधानमन्त्री पद के असली दावेदार पटेल ही थे, नेहरू नहीं। वह तर्क देती है कि 16 में से 15 प्रदेश कांग्रेस समितियों ने पटेल के पक्ष में वोट दिया था। बीजेपी नेता सुब्रमण्यन स्वामी ने कुछ दिनों पहले ही यह मामला एक बार फिर उठाया। पर सवाल यह है कि क्या प्रधानमन्त्री का चुनाव प्रदेश कांग्रेस समितियाँ करती हैं? क्या नरेंद्र मोदी को उनकी पार्टी की प्रदेश समितियों ने प्रधानमन्त्री चुना? नहीं।
पटेल की विरासत
सरदार की विरासत को हथियाने की कोशिश में लगी बीजेपी यह तर्क देती है कि हिंदू-मुसलिम एकता पर उनके विचार संघ से मिलते हैं। पर गृह मंत्री पटेल ने गाँधीजी की हत्या के बाद आरएसएस को प्रतिबंधित कर दिया था। उन्होंने 18 जुलाई 1948 को श्यामाप्रसाद मुखर्जी को एक चिट्ठी लिखी।
पटेल ने लिखा, ‘दोनों संगठनों, आरएसएस और हिंदू महासभा, ख़ास कर संघ के क्रियाकलापों की वज़ह से देश में ऐसा ज़हरीला वातावरण बना, जिसमें इतनी घिनौनी त्रासदी हुई… आरएसएस की गतिविधियाँ सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए स्पष्ट रूप से घातक हैं।’
बाबरी मसजिद और पटेल
बीजेपी जिस समय पटेल की मूर्ति लगवा रही है, उसी समय बाबरी मसजिद पर खुलेआम सुप्रीम कोर्ट को धमका भी रही है। पटेल राम मंदिर-बाबरी मसज़िद मुद्दे पर बीजेपी या आरएसएस के साथ नहीं थे। साल 1949 में जब कुछ हिंदुओं ने बाबरी मसज़िद के अंदर राम की मूर्ति रख दी, पटेल काफ़ी गुस्सा हुए थे। उन्होंने तत्कालीन मुख्यमन्त्री गोविंद बल्लभ पंत को कड़ी चिट्ठी लिख कर चेतावनी देते हुए कहा था, ‘इस तरह के विवाद का निपटारा बल प्रयोग से करने का कोई सवाल ही नहीं उठता है।’इस्तीफ़े की पेशकश
महात्मा गाँधी की हत्या के बाद पटेल इतने मर्माहत हुए कि उन्होंने पद से हटने की इच्छा जताई और इस बाबत नेहरू को एक चिट्ठी भी लिखी।नेहरू ने इसकी भनक लगते ही एक ख़त पटेल के नाम लिखा।नेहरू ने लिखा, ‘जैसा कि मैंने आपको अपनी पहली चिट्ठी में लिखा था, कई मुद्दों पर हमारे विचार और स्वभाव नहीं मिलने के बावजूद हम लोगों को एकसाथ ही काम करना चाहिए जैसा कि हम अब तक करते आए हैं।'
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