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महंगाई से राहत कहां, फिर दूध के दाम क्यों बढ़ाए

महंगाई कम होने का आंकड़ा मंगलवार को आया और उसी दिन अमूल, मदर डेरी समेत तमाम पैकेट में दूध बेचने वाली कंपनियों ने दो रुपये प्रति लीटर रेट बढ़ा दिए। महंगाई के कम होने का जो दावा किया गया था, उसे दूध के दामों की बढ़ोतरी ने काफूर कर दिया है।  महंगाई कम होने का जो आंकड़ा जारी हुआ है, उसमें कहा गया कि जुलाई में फुटकर महंगाई दर 6.71 फीसदी हो गई, जो पिछले पांच महीने में कम हो गई। उससे पहले यह 7.75 फीसदी पर बनी हुई थी। महंगाई का जुलाई का प्रोजेक्शन जहां राहत भरा दिखाया गया, वहां एसबीआई चीफ दिनेश खारा का कहना है कि इसका असर सितंबर में देखने को मिलेगा। 

महंगाई इस देश का सबसे बड़ा मुद्दा है, लेकिन वो नहीं भी है। आंकड़े आते हैं और चले जाते हैं। प्रतीकात्मक विरोध प्रदर्शनों के अलावा बात आगे नहीं बढ़ती। महंगाई अभी जो आंकड़ा आया है, वो जरा भी राहत भरा नहीं है। भारतीय रिजर्व बैंक की जो सहनशीलता लिमिट है, उसके मुताबिक 4 से 6 फीसदी पर यह महंगाई दर होना चाहिए। हालांकि केंद्र सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक से कहा हुआ है कि 4 फीसदी के स्तर पर महंगाई दर रहना चाहिए।

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महंगाई कम होना और उसका आंकड़ा आना जनता के लिए एक फरेब बन गया है। अभी जो आंकड़ा आया, उसमें कहा गया है कि खाद्य वस्तुओं, तेल, फैट आदि की कीमत कम होने से महंगाई दर में कमी आई है। लेकिन सच यह नहीं है। दिल्ली एनसीआर की मंडियों में अगर पालक का साग 150 रुपये किलो और नीबू 200 रुपये किलो, रसोई गैस का सिलिंडर 1054 रुपये में मिल रहा हो तो महंगाई कम होने की बात बेमानी है। 

हाल ही में पैक्ड दूध, दही, पनीर, छाछ आदि दुग्ध आधारित प्रोडक्ट्स पर सरकार ने जीएसटी 5 फीसदी लगा दी है। इसके बाद सरकार की सफाई आई कि जो खुला दूध बिकता है, उस पर जीएसटी नहीं बढ़ाया गया है। यानी पशु पालक अपना जो दूध डेरी समितियों तक पहुंचाते हैं, उनका प्रॉफिट मार्जिन इस जीएसटी की वजह से नहीं बढ़ेगा। लेकिन उसी दूध को पैक कर बेचने वाली कंपनी अमूल, मेदर डेरी, पराग, वीटा, वेरका आदि का प्रॉफिट मार्जिन बढ़ जाएगा। इकोनॉमिक टाइम्स की एक के मुताबिक अमूल का 2021-22 का सालाना टर्नओवर 61,000 करोड़ पहुंच गया, जो अब तक का सबसे अधिक है। बीच में जब लॉकडाउन था तो अमूल समेत सभी कंपनियों का टर्नओवर और प्रॉफिट मार्जिन गिरा था। पैक दूध में अमूल भारत का मार्केट लीडर है। शहरों में पैक दूध की सबसे ज्यादा खपत है। 

दूध की कीमतें बेशक बढ़ती रहें लेकिन भारत सरकार इस बात से खुश है कि अप्रैल 2022 से महंगाई दर का जो आंकड़ा 7 फीसदी से ऊपर चला गया था, वह नीचे आ रहा है। एसबीआई चीफ दिनेश खारा का कहना है कि सितंबर अंत तक महंगाई से राहत दिखने लगेगी। उनका कहना है कि कच्चे तेल के कीमतों में कमी आ रही है तो इसका असर पड़ना ही है। एसबीआई चीफ के इस बयान से कोई कितना खुश होगा, यह नहीं पता, लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि जनता को महंगाई से छुटकारा नहीं मिल रहा है, भारत सरकार के आंकड़े कुछ भी बताते रहें। 

महंगाई की मुख्य वजह पेट्रोल, डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी है। लेकिन तेल पर एक्साइज ड्यूटी को लेकर केंद्र और राज्यों की नूरा कुश्ती हाल ही में देखने को मिली थी। पिछले सात वर्षों में, केंद्र सरकार ने पेट्रोल पर 23.42 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 28.23 रुपये प्रति लीटर टैक्स बढ़ा दिया है। नवंबर 2021 और मई 2022 में टैक्स में कमी की गई। पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 16 रुपये घटाए गए। इसके बावजूद, टैक्स अभी भी 2014 की तुलना में पेट्रोल पर 10.42 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 12.23 रुपये प्रति लीटर से अधिक हैं। केंद्र सरकार का कहना है कि राज्य अपने टैक्स घटाएं तो जनता को बढ़ती तेल कीमतों से राहत मिले। असल में यह राजनीतिक बयान था। 
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केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 1 अगस्त को संसद में महंगाई, जीएसटी दरों में वृद्धि और पेट्रोल और डीजल पर करों पर दिए गए भाषण पर प्रतिक्रिया देते हुए, त्याग राजन ने कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि राज्य सरकारों ने पेट्रोल और डीजल पर टैक्स को कम नहीं किया है, जबकि केंद्र सरकार ने अपने करों को कम कर दिया। तमाम विपक्ष शासित राज्यों ने इस पर ऐतराज किया। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अपना हिस्से का टैक्स क्यों नहीं घटाता। इस कड़ी बयानबाजी के बाद दोनों पक्ष शांत हो गए। जनता बढ़ती तेल की कीमतों की चुभन रोजाना बर्दाश्त करती है। विश्व बाजार से कच्चे तेल की कीमतों में कमी की खबरों के बावजूद भारत की जनता को तेल की कीमत में कमी का फायदा नहीं मिलता।  

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क़मर वहीद नक़वी
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