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मिडिल क्लास के उभार वाली यह रिपोर्ट बहुत लुभावनी है!

भारत में मध्य वर्ग (मिडिल क्लास) तेजी से बढ़ रहा है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि लोगों का जीवन स्तर सुधर रहा है तो मिडिल क्लास भी बढ़ रहा है। भारतीय मीडिया ने बुधवार को PRICE (पीपुल रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकोनॉमी) की रिपोर्ट जारी करते हुए उसके आंकड़े भी दिए हैं। प्राइस की रिपोर्ट के मुताबिक 5 से 30 लाख की सालाना आमदनी वाला मिडिल क्लास 2005-2006 में जहां 14 फीसदी था, वो 2021 में बढ़कर 31 फीसदी हो गया। यह बढ़ोतरी दोगुना से ज्यादा है। प्राइस का कहना है कि 2047 तक भारतीय मिडिल क्लास की यह बढ़ोतरी 63 फीसदी होने का अनुमान है। यानी अभी जो मिडिल क्लास का औसत 3 में 1 का है वो 25 वर्षों में डबल हो जाएगा। 
हालांकि रिपोर्ट इस बात पर मौन है कि 2020 में जब कोविड आया, लॉकडाउन लगा, इकोनॉमी की धीमी हुई, उससे सबसे ज्यादा मिडिल क्लास प्रभावित हुआ। लाखों लोगों की नौकरियां चली गईं। उनका जिक्र या उससे संबंधित आंकड़ा इस रिपोर्ट में नहीं है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने 2021 की अपनी रिपोर्ट में कहा था कि करीब 1 करोड़ लोग भारत में अपनी नौकरी से हाथ धो बैठे और 97 फीसदी घरों की आमदनी घट गई। सिर्फ तीन फीसदी लोगों की आमदनी में इस दौरान इजाफा हुआ था। 2020 में बेरोजगारी दर पिछले 29 वर्षों में सबसे खराब थी। 

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प्राइस के सीईओ और एमडी राजेश शुक्ला का कहना है कि 2047 तक अगर राजनीतिक और आर्थिक सुधारों ने अपना प्रभाव दिखाया, तो भारत मध्यम वर्ग का एक बड़ा उभार और उससे ऊपर एक बड़ी तादाद मलाईदार धनी लोगों की होगी। रिपोर्ट बताती है कि भारत में पिछले 26 वर्षों में, अति-समृद्ध परिवारों में 18 गुना की बढ़ोतरी हुई है।

प्राइस के मुताबिक महाराष्ट्र सबसे अमीर प्रदेश है। जहां 6. 4 लाख सुपर-रिच परिवारों के साथ 2021 में प्रति वर्ष 2 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई वाले लोग थे। "द राइज़ ऑफ़ इंडियाज मिडिल क्लास" रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली दूसरे नंबर पर है, जहां सुपर रिच 1. 81 लाख लोग, गुजरात 1. 41 लाख घरों के साथ तीसरे नंबर पर, तमिलनाडु 1. 37 लाख घरों के साथ चौथे और पंजाब 1 लाख घरों के साथ पांचवें नंबर पर हैं।

इस रिपोर्ट से पता चला कि देश में "सुपर रिच" की तादाद 1994-95 में 98,000 से बढ़कर 2020-21 में 1.80 लाख घरों तक पहुंच गई है। सूरत और नागपुर में उच्च आय वर्ग में सबसे अधिक वृद्धि हुई है। रिपोर्ट कहा गया है कि 2047 में मिडिल क्लास बढ़कर 63% हो जाएगा। प्राइस के सीईओ राजेश शुक्ला का कहना है कि भारतीय मिडिल क्लास पर बहुत कुछ लिखा गया है, लेकिन इस "मिडिल" शब्द को परिभाषित करना शिक्षाविदों और मार्केटियर्स के लिए हमेशा समस्याग्रस्त रहा है। उनका कहना है कि पूरी दुनिया में मिडिल क्लास की एक ही स्वीकार्य परिभाषा नहीं है। हर देश में सर्वे का डेटा अलग-अलग अनुमान लगाता है।
आमतौर पर ऐसे अनुमान 50 से 400 मिलियन तक लोगों पर आधारित हैं। इसीलिए इस वर्ग की परचेजिंग पावर (खरीदारी की क्षमता) पर सवाल उठाते हैं। प्राइस की रिपोर्ट ने मोटे तौर पर इन समूहों को श्रेणियों में बांटा है, जिनमें "निराश" (जिनकी सालाना पारिवारिक आमदनी 1,25,000 रुपये या 2020-21 में 1,700 डॉलर से कम है) से लेकर "सुपर रिच" (सालाना पारिवारिक आमदनी 2 करोड़ या 270,000 डॉलर 2020-21 में) है। इन्हीं में वो मध्यम वर्ग भी है जिसकी सालाना आमदनी 5 लाख रुपये से 30 लाख रुपये या $6,700- $40,000 के बीच है)। राजेश शुक्ला का कहना है कि इन श्रेणियों के लिए खपत के अलग-अलग पैटर्न देखे जा सकते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि "निराश" की श्रेणी में आने वाले परिवार शायद ही कार खरीदते हैं। 2020-21 में कार की चाहत रखने वाले हर 10 घरों में से पांच से कम के पास कार थी।

'साधक' श्रेणी में, जिनकी सालाना आमदनी 5 लाख रुपये से 15 लाख रुपये के बीच है, हर 10 में से लगभग तीन घरों में कार है। “अमीर” या 30 लाख रुपये से अधिक की वार्षिक घरेलू आय वाले लोगों में, प्रत्येक घर के पास एक कार है। "करोड़पति" की श्रेणी में प्रति परिवार लगभग तीन कारें हैं। इसी तरह, एयर-कंडीशनर के मामले में, जबकि "निराश" परिवारों के पास कोई नहीं है, सर्वे के अनुसार, "आकांक्षी" प्रत्येक 100 में से दो और "सुपर रिच" के लगभग आधे के पास एसी हैं।

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अखिल भारतीय सर्वे पर आधारित यह रिपोर्ट शहरों में भारत के अमीर वर्गों के उदय का भी विवरण देती है और बताता है कि कैसे ये शहर अमीर भारतीयों की बढ़ती संख्या के घर हैं। इसमें दस लाख से अधिक की आबादी वाले 63 शहरों की तरक्की शामिल है।

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क़मर वहीद नक़वी
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