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सेना ने कविता ट्वीट की, 'दुष्ट कौरवों ने तुमको कायर समझा उतना ही'

भारतीय वायु सेना के नियंत्रण रेखा के पार आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक-2 करने के बाद भारतीय सेना ने रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की एक कविता को ट्वीट किया है। उनकी कविताओ में विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की बात कही गई है। आज़ादी के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये ‘दिनकर’ की कविता 'क्षमाशील हो रिपु-समक्ष’ के कुछ अंश को भारतीय   सेना के आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया गया है।

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भारतीय सेना ने कविता का कुछ अंश ही ट्वीट किया है। ‘दिनकर’ की पूरी कविता यहाँ पढ़ें।

शक्ति और क्षमा 

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल

सबका लिया सहारा

पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे

कहो, कहाँ, कब हारा?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष

तुम हुये विनत जितना ही

दुष्ट कौरवों ने तुमको

कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का

कुफल यही होता है

पौरुष का आतंक मनुज

कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को

जिसके पास गरल हो

उसको क्या जो दंतहीन

विषरहित, विनीत, सरल हो।

तीन दिवस तक पंथ मांगते

रघुपति सिन्धु किनारे,

बैठे पढ़ते रहे छन्द

अनुनय के प्यारे-प्यारे।

उत्तर में जब एक नाद भी

उठा नहीं सागर से

उठी अधीर धधक पौरुष की

आग राम के शर से।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि

करता आ गिरा शरण में

चरण पूज दासता ग्रहण की

बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो, तो शर में ही

बसती है दीप्ति विनय की

सन्धि-वचन संपूज्य उसी का

जिसमें शक्ति विजय की।

सहनशीलता, क्षमा, दया को

तभी पूजता जग है

बल का दर्प चमकता उसके

पीछे जब जगमग है।

जहाँ नहीं सामर्थ्य शोढ की,

क्षमा वहाँ निष्फल है।

गरल-घूँट पी जाने का

मिस है, वाणी का छल है।

फलक क्षमा का ओढ़ छिपाते

जो अपनी कायरता,

वे क्या जानें प्रज्वलित-प्राण

नर की पौरुष-निर्भरता?

वे क्या जाने नर में वह क्या

असहनशील अनल है,

जो लगते ही स्पर्श हृदय से

सिर तक उठता बल है?

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जानें राष्ट्रकवि ‘दिनकर’ को

रामधारी सिंह 'दिनकर' हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। 'दिनकर' देश की आज़ादी से पहले एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। 

बिहार के सिमरिया घाट में 23 सितंबर, 1908 को जन्मे 'दिनकर' ने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। 24 अप्रैल 1974 में उनका निधन हो गया था।

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क़मर वहीद नक़वी
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