भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच अरुणाचल प्रदेश के तवांग में झड़प हुई है। दो साल पहले लद्दाख में भी इससे भी बड़ी झड़प हुई थी। इस तरह की झड़प या विवाद की रिपोर्टें कभी डोकलाम में तो कभी नाथू ला में भी आती रही हैं। एक मामला पूरी तरह और ठीक से सुलझता नहीं है कि अगली कोई घटना घट जाती है। आख़िर ऐसा क्यों होता है?
दोनों देशों के बीच विवाद की वजह क्या है, यह जानने से पहले यह जान लें कि ताज़ा मामला क्या है। सरकार ने ही आज संसद में बयान दिया है कि तवांग में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प हुई थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि चीनी सैनिकों ने 9 दिसंबर को यांगस्ते इलाक़े में एलएसी पर अतिक्रमण कर यथास्थिति को एकतरफा बदलने की कोशिश की लेकिन हमारी सेना ने इसका दृढ़ता और बहादुरी से सामना किया। राजनाथ सिंह ने कहा कि इस दौरान दोनों देशों के सैनिकों के बीच हाथापाई भी हुई है और भारतीय सेना ने चीनी सैनिकों को हमारे क्षेत्र में घुसपैठ करने से रोका और उनके इलाक़े में वापस जाने के लिए मजबूर कर दिया।
तो सवाल है कि आख़िर चीनी सैनिक ऐसा क्यों करते हैं? क्या यह बिना किसी राजनैतिक इशारे के संभव है? और यदि चीन के राजनैतिक नेतृत्व की ओर से सीमा पार करने के लिए संकेत मिल रहे हैं तो चीन की इसके पीछे की मंशा क्या है? आख़िर उसकी नज़रें सीमा क्षेत्रों में क्यों है?
दरअसल, इस समस्या का मूल कारण बेहद ख़राब ढंग से तय 3,440 किमी की लंबी विवादित सीमा है। इसी कारण है कि कभी राजनैतिक नेतृत्व की विस्तारवादी नीति की वजह से तो कभी चीनी सैनिक अन्य वजहों से भी सीमा का उल्लंघन कर देते हैं। सीमाई क्षेत्रों में नदियाँ, झीलें और हिमाच्छादन होने के कारण सीमा रेखा अस्पष्ट सी दिखती है। एक वजह यह भी है कि कई बिंदुओं पर सैनिक आमने-सामने आ जाते हैं और जिससे टकराव हो जाता है। लेकिन इसकी मुख्य वजह उस सीमा को लेकर दोनों देशों की अलग-अलग धारणा है। यानी एक पक्ष अपनी सीमा को कहीं और तक मानता है तो दूसरा पक्ष कहीं और तक। समझौते हुए हैं, लेकिन एक पक्ष समझौते को धता बताते हुए सीमा क्षेत्र का उल्लंघन कर बैठता है।
विवाद की एक वजह यह भी है कि दोनों देश सीमा पर बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए भी प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। इस सीमा को वास्तविक नियंत्रण रेखा के रूप में भी जाना जाता है। बुनियादी ढाँचे के निर्माण से दोनों देशों को एक दूसरे के प्रति संदेह पैदा हो रहा है। यानी साफ़ शब्दों में कहें तो क्षेत्र का सैन्यीकरण हो रहा है।
दोनों देशों में क्या है विवाद
चीन के साथ भारत की सीमा तीन सेक्टर्स- ईस्टर्न, मिडल और वेस्टर्न में बाँटी जाती है। ईस्टर्न सेक्टर में सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा चीन से लगती है। मिडल सेक्टर में हिमाचल और उत्तराखंड की सीमा है और वेस्टर्न सेक्टर में लद्दाख है।
ईस्टर्न सेक्टर
चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी के हिस्से पर अपना दावा जताता रहा है। दरअसल, चीन की नज़र अरुणाचल प्रदेश में पड़ने वाले तवांग पर है। तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल है। इसे एशिया का सबसे बड़ा बौद्ध मठ भी कहा जाता है। चीन तवांग को तिब्बत का हिस्सा बताता रहा है। लेकिन वास्तविक स्थिति यह है कि 1914 में हुए एक समझौते के अनुसार तवांग को अरुणाचल का हिस्सा बताया गया था।
ईस्टर्न सेक्टर में ही नाथू ला आता है। यह भारत के सिक्किम और दक्षिणी तिब्बत की चुम्बी घाटी को जोड़ता है। यहीं से कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए तीर्थयात्री गुजरते हैं। नाथू ला को लेकर भारत-चीन में कोई विवाद तो नहीं है, लेकिन यहाँ भी कभी-कभी भारत-चीन की सेनाओं में झड़पों की ख़बरें आती रही हैं।
वेस्टर्न सेक्टर
इस सेक्टर में आने वाले लद्दाख की पैंगोंग त्सो झील है। इस झील का 44 किमी क्षेत्र भारत और क़रीब 90 किमी क्षेत्र चीन में पड़ता है। एलएसी भी इसी झील से गुजरती है। एलएसी को लेकर दोनों पक्षों के बीच यहाँ अक्सर विवाद होता रहा है।
गलवान घाटी में भी विवाद होता रहा है। यह घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच स्थित है। यहाँ पर एलएसी अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। जून 2020 में इसी गलवान घाटी में हिंसक झड़प हुई थी जब 20 भारतीय सैनिक देश के लिए शहीद हो गए थे और 40 से अधिक चीनी सैनिक मारे जाने या घायल होने के दावे कई मीडिया रिपोर्टों में किए गए थे।
पूर्वी लद्दाख में उस झड़प के बाद डिसइंगेजमेंट के लिए दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों के बीच कई दौर की वार्ता हुई। पूर्वी लद्दाख में पेट्रोलिंग प्वाइंट-15, गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्र पर भारत और चीन के बीच डिसइंगेजमेंट की प्रक्रिया सितंबर महीने में पूरी होने की रिपोर्ट आई थी।
डोकलाम विवाद
मैकमोहन लाइन विवाद
जब भारत ब्रिटेन का उपनिवेश था तभी 1914 में विवाद सुलझाने के लिए शिमला में एक सम्मेलन हुआ था। इसमें तीन पक्ष थे- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत। उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन थे। उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची। इसे ही मैकमोहन लाइन कहा जाता है। मैकमोहन लाइन में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया था। आज़ादी के बाद भारत ने मैकमोहन लाइन को माना, लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया। चीन दावा करता रहा है कि अरुणाचल दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है और चूँकि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका है।
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