क्या आपको पता है कि भारत की जनसंख्याी कितनी है? या फिर उत्तर प्रदेश, राजस्थान, बिहार की कितनी है? यदि आप कहते हैं कि देश की जनसंख्या 140 करोड़ है तो यह पूरी तरह मनगढ़ंत आँकड़ा है। 13 साल पहले हुई जनगणना के आधार पर यदि अनुमान लगाया जाएगा तो इसे मनगढ़ंत नहीं कहा जाएगा तो और क्या! तो सवाल है कि जब जनगणना के आँकड़े ही नहीं हैं तो फिर इसका पता कैसे चलेगा कि कितने लोग भूखा पेट सो रहे हैं या फिर कितने लोग नौकरी कर रहे हैं और कितने बेरोजगार हैं? कितने लोगों को गरीबी से बाहर निकाल दिया या फिर कितने को गरीबी में धकेल दिया, क्या इसका कभी पता चल पाएगा? कितनी जनसंख्या पर कितने अस्पताल, डॉक्टर या नर्स हैं, क्या इसका पता चल पाएगा?
जनगणना में देरी क्यों कर रही मोदी सरकार? जानें कितना नुक़सान
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- 7 Oct, 2024
जनगणना होने से क्या देश की वास्तविक स्थिति का अंदाज़ा नहीं लग जाएगा? बेरोजगारी कितनी है, गरीबी कितनी बढ़ी? सरकार देरी क्यों कर रही है? आख़िर जनगणना नहीं होने की वजह से कितना बड़ा नुक़सान हो रहा है?

यदि आपके पास इन सवालों के जवाब नहीं हैं तो फिर कल्पना कीजिए कि सरकार से पूछने पर आपको जवाब क्या मिलेगा! एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में संसद में 35 सवालों में स्वास्थ्य, शिक्षा, श्रम, पर्यावरण, कृषि, वित्त, लिंग, कानून और न्याय पर डेटा की मांग की गई थी। सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र यानी भारत के लोगों की ओर से सरकार से सवाल कर रहे हैं। इन 35 सवालों में से कम से कम 17 का उत्तर न देने का सबसे आम कारण बताया गया 'ऐसा कोई डेटा नहीं रखा जाता है।' जाहिर है जब जनगणना के आँकड़े ही नहीं हैं तो आँकड़ों से जुड़े सवालों का जवाब यही दिया जाएगा या फिर आधा सच या झूठ बताया जाएगा!