बीस साल तक तालिबान को पालने-पोसने, उसे पैसे, हथियार और आतंकवादी प्रशिक्षण देने वाले पाकिस्तान को अब यह डर सताने लगा है कि यदि शरीआ में यकीन करने वाले इस संगठन ने सरकार में हर समुदाय को शामिल नही किया तो अफ़ग़ानिस्तान में गृह युद्ध छिड़ सकता है।
जिन इमरान ख़ान ने तालिबान को 'अफ़ग़ानिस्तान की जनता की ग़ुलामी की बेड़ियाँ तोड़ने वाला' क़रार दिया था, उन्हें अब लगने लगा है कि तालिबान को समावेशी सरकार बनाना चाहिए और सबको साथ लेकर चलना चाहिए।
क्या कहा इमरान ने?
उन्हें अब लगने लगा है कि ऐसा नहीं हुआ तो गृह युद्ध होगा और ऐसा होने पर अफ़ग़ानिस्तान से बड़े पैमाने पर शरणार्थी उनके देश पाकिस्तान में दाखिल होंगे।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने बीबीसी से बात करते हुए कहा,
“
यदि वे समावेशी सरकार नहीं बनाते हैं, यदि देर-सबेर सभी गुटों को सरकार में शामिल नहीं करते हैं तो धीरे-धीरे गृह युद्ध में फँस जाएंगे, इसका असर पाकिस्तान पर पड़ेगा।
इमरान ख़ान, प्रधानमंत्री, पाकिस्तान
आतंकवाद पर पाक चिंतित!
तालिबान को आतंकवाद का प्रशिक्षण देने वाले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने कहा, "यह आतंकवादियों के लिए आदर्श जगह होगी क्योंकि लड़ाई चलती रही तो किसी का कोई नियंत्रण नहीं होगा। ऐसे में अफ़ग़ानिस्तान की ज़मीन से आतंकवाद फैलेगा और यदि मानवीय संकट हुआ तो हमारे लिए शरणार्थी समस्या पैदा होगी।"
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तालिबान का जबाव
इमरान ख़ान का गुस्सा इससे समझा जा सकता है कि इसके पहले तालिबान इस मुद्दे पर उन्हें खरी- खोटी सुना चुका है। तालिबान के नेता मुहम्मद मोबीन ने कहा, "हमने समावेश सरकार पर ज्ञान देने के लिए किसी को अधिकृत नहीं किया है।"
मोबीन ने मंगलवार को अफ़ग़ान टेलीविज़न चैनल 'एरियाना' से कहा था,
“
हमें आज़ादी मिली है। पाकिस्तान की तरह हमें भी यह अधिकार है कि हम अपने हिसाब से शासन व्यवस्था तय करें।
मुहम्मद मोबीन, नेता, तालिबान
किसका दबाब किस पर?
दूसरी ओर पाकिस्तान का ज़ोर इस बात पर है कि जब तक सभी क़बीलों और नस्लों को सरकार में शामिल नहीं किया जाता है, अफ़ग़ानिस्तान में संकट बरक़रार रहेगा।
यह पाकिस्तान ही है, जिसने अपने खड़े किए हुए संगठन हक्क़ानी नेटवर्क के प्रमुख सिराजुद्दीन हक्क़ानी को प्रधानमंत्री बनाना चाहा था। तालिबान के मुख्यालय दोहा स्थित गुट के लोगों के विरोध के बाद पाकिस्तान को पैर पीछे खींचना पड़ा था।
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समझा जाता है कि चीन दबाव बना रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी सरकार बने क्योंकि उसकी नज़र बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव कार्यक्रम के तहत सड़क वगैरह बना कर आगे का रास्ता निकालना है, अफ़ग़ानिस्तान के खनिज का दोहन करना है। लेकिन यह तभी मुमकिन है जब वहां शांति कायम हो।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि पाकिस्तान चीन के दबाव में आकर अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी सरकार की बात कर रहा है।
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