उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थ नगर में जहाँ लापरवाही से कोविशील्ड व कोवैक्सीन की मिक्स वैक्सीन लग गई थी, लेकिन उसके नतीजे अब बेहतर आए हैं। ग़लती से जिन 18 लोगों को दो अलग-अलग टीके लग गए थे उन पर शोध किया गया। इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर ने खुलासा किया है कि कोविशील्ड और कोवैक्सीन का मिश्रण वास्तव में बेहतर परिणाम दे सकता है। हालाँकि, यह परिणाम सिर्फ़ 18 लोगों पर ही शोध पर आधारित है और इसे बड़े पैमाने पर नहीं किया गया है। इसका शोध किसी विज्ञान की पत्रिका में भी प्रकाशित नहीं किया गया है।
इससे पहले इंग्लैंड में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कंपनी और फाइज़र की वैक्सीन के कॉकटेल पर भी शोध हुआ था। उसके परिणाम भी काफ़ी अच्छे आए थे। हालाँकि भारत में फाइज़र वैक्सीन उपलब्ध नहीं है, लेकिन ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका कंपनी द्वारा विकसित वैक्सीन ही सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ़ इंडिया द्वारा भारत में कोविशील्ड के नाम से बनाई जा रही है।
अब जो ताज़ा रिपोर्ट आई है उसके अनुसार आईसीएमआर के अध्ययन में कहा गया है कि एक एडिनोवायरस वेक्टर प्लेटफॉर्म-आधारित वैक्सीन के बाद पूरी तरह से निष्क्रिय वायरस वाली वैक्सीन देना न केवल सुरक्षित था, बल्कि इससे बेहतर इम्युनोजेनेसिटी भी मिली। आसान शब्दों में कहें तो कोविशील्ड और कोवैक्सीन की कॉकटेल वैक्सीन लेने से कोरोना संक्रमण के ख़िलाफ़ बेहतर सुरक्षा मिल सकती है।
बता दें कि उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर ज़िले के बढ़नी प्राथमिक हेल्थ सेंटर में इस साल मई में स्वास्थ्यकर्मियों की बड़ी लापरवाही हुई थी। 18 लोगों को पहली खुराक कोविशील्ड की और दूसरी खुराक कोवैक्सीन की लगा दी गई थी। हालाँकि इसके बाद भी किसी को कोई स्वास्थ्य संबंधी समस्या नहीं हुई थी।
इन 18 लोगों दो अलग-अलग टीकों की खुराक लगने पर अध्ययन किया गया। इसके जो परिणाम आए उसकी तुलना उन लोगों से की गई जिन 40 लोगों को कोविशील्ड की दो खुराक और 40 लोगों को कोवैक्सीन की दो खुराक लगी थी। अध्ययन मई से जून 2021 तक किया गया।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन यानी सीडीएससीओ के विशेषज्ञों की एक कमेटी ने जुलाई में कोवैक्सीन और कोविशील्ड को मिलाकर यानी कॉकटेल वैक्सीन पर शोध की सिफारिश की है।
कमेटी ने कहा है कि शोध का उद्देश्य यह आकलन करना है कि क्या किसी व्यक्ति को दो अलग-अलग वैक्सीन की खुराक दी जा सकती है। कमेटी की सिफारिश के अनुसार वेल्लोर में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज द्वारा 300 स्वस्थ स्वयंसेवकों पर परीक्षण किया जाएगा।
ऐसा शोध इंग्लैंड में ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका और फाइज़र की वैक्सीन के कॉकटेल पर हुआ। दोनों टीकों की एक-एक खुराक को 4 हफ़्ते के अंतराल पर लेने से शरीर में काफ़ी ज़्यादा एंटी-बॉडी बनती है। इसका मतलब है कि शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली काफ़ी ज़्यादा बेहतर होती है। इस शोध की रिपोर्ट दो कारणों से उत्साहजनक है। एक, इसके बेहतर परिणाम आए हैं और दूसरा, किसी वैक्सीन की कमी होने पर दूसरी वैक्सीन की खुराक भी लगाई जा सकती है। जिस क्रम में लोगों को टीके मिले, उसके परिणाम भी प्रभावित हुए। फाइज़र के बाद एस्ट्राज़ेनेका की अपेक्षा एस्ट्राज़ेनेका के बाद फाइजर के टीके लगाने से काफ़ी ज़्यादा एंटीबॉडी और टी-कोशिकाएँ बनीं। कोरोना वायरल जैसे संक्रमण से लड़ने में कारगर होती हैं।
वैश्विक स्तर पर टीकों के मिश्रण की चर्चा हो रही है। अभी तक के शोध भविष्य में संक्रमण के प्रति सुरक्षा बढ़ाने के लिए दो टीकों को मिलाने के पक्ष में हैं। इसके बावजूद यह मुद्दा संवेदनशील है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी दी है कि लोगों को टीकों को मिलाकर लेने का फ़ैसला नहीं करना चाहिए।
नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. वीके पॉल ने पहले कहा था कि सैद्धांतिक रूप से दो टीकों को मिलाने में कोई समस्या नहीं है क्योंकि ऐसी स्थिति में दूसरी खुराक बूस्टर शॉट का काम करेगी। इसके बावजूद अभी तक तकनीकी तौर पर कहीं भी आम लोगों के लिए वैक्सीन मिलाकर यानी कॉकटेल लेने की अनुमति नहीं है। भारत में भी इसकी अतिरिक्त सावधानी बरती जा रही है कि किसी व्यक्ति को अलग-अलग कंपनियों की दो खुराक न लग जाएँ।
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