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कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव का रोचक है इतिहास

कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव कभी आसान नहीं रहा है। पार्टी का ज्यादातर इतिहास मनोनीत या नामजद कांग्रेस अध्यक्षों से भरा हुआ है। लेकिन पार्टी में जब भी इस पद के लिए चुनाव हुए वो बेहद रोचक रहे। 2022 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए फिलहाल दो नाम अशोक गहलोत और शशि थरूर सामने आए हैं। हालांकि राहुल गांधी पर लगभग पूरे देश की प्रदेश कांग्रेस कमेटियों से कांग्रेस अध्यक्ष पद स्वीकार करने का आग्रह हो रहा है। लेकिन राहुल लगातार इनकार कर रहे हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष पद ने पार्टी के 137 साल के इतिहास में चयन प्रक्रिया पर आम रजामंदी के साथ केवल कुछ ही मुकाबलों को देखा है। हालांकि सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी जब कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव पर अलग तरह से चुटकी लेती रहती है लेकिन बीजेपी में तो कांग्रेस जैसा भी लोकतंत्र नहीं है। वहां सबकुछ आरएसएस की ओर से तय किया जाता है। संघ का सरसंघ चालक भी नहीं चुना जाता है, बल्कि उसे नए सरसंघ चालक को पुराना वाला मनोनीत करके जाता है। इस तरह संघ परिवार के तमाम संगठनों और उसके राजनीतिक मुखौटे बीजेपी में किसी तरह का चुनाव नहीं होता है। अभी बेशक जेपी नड्डा बेशक अध्यक्ष हैं लेकिन पार्टी पर पूरा नियंत्रण पीएम मोदी और उनके नंबर 2 अमित शाह का है। नड्डा महज हुक्म बजाने वाले अध्यक्ष हैं।
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बहरहाल, पार्टी की सबसे पुरानी परंपरा यह थी कि इंडियन नेशनल कांग्रेस के वार्षिक सत्र की अध्यक्षता करने के लिए एक प्रेरक और एक नेता को आमंत्रित किया जाता था। आमंत्रित व्यक्ति अगले वार्षिक सत्र तक कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालता था। फिर उसके बाद अगले सत्र में भी किसी अन्य नेता से आने और अध्यक्षता करने का अनुरोध किया जाता था। 

बोस बनाम सीतारमैया

कांग्रेस का पुराना इतिहास टटोलने से पता चलता है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सही मायने में पहला चुनाव 1939 में सुभाष चंद्र बोस और पट्टाभि सीतारमैया के बीच हुआ था। सीतारमैया को हालांकि महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के शीर्ष नेताओं का समर्थन प्राप्त था लेकिन बोस जीत गए थे।
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस
पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता रहे प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब 'द कोएलिशन इयर्स' में इस ऐतिहासिक चुनाव का जिक्र किया है। प्रणब मुखर्जी ने लिखा- हालांकि सीतारमैया को गांधीजी जैसे वरिष्ठ नेताओं का समर्थन प्राप्त था, लेकिन बोस उस समय कांग्रेस के युवकों द्वारा समर्थित अधिक लोकप्रिय आइकन थे। इसीलिए सुभाष चंद्र बोस ने भारी जीत हासिल की। लेकिन इसने एक अजीब स्थिति पैदा कर दी। इस चुनाव की वजह से गांधी जी ने जोर देकर कहा था कि सीतारमैया की हार, उनकी अपनी हार है। 1930 के दशक के अंत में गांधी जी और बोस के बीच के अलग-अलग रिश्ते कांग्रेस के इतिहास का एक दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय हैं।

टंडन जीते, लेकिन नेहरू से मतभेद रहे

बहरहाल, आजादी के बाद 1950 में फिर से, इस पद के लिए चुनाव पार्टी के नासिक अधिवेशन से पहले हुआ। जब जेबी कृपलानी और पुरुषोत्तम दास टंडन के बीच चुनाव लड़ा गया था। टंडन विजयी हुए लेकिन बाद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ मतभेदों की वजह से कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। तब नेहरू ने 1951 और 1955 के बीच पार्टी प्रमुख और पीएम के दो पदों पर काम किया। नेहरू ने 1955 में कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ दिया और यूएन धेबर उनके उत्तराधिकारी बने।

इंदिरा युग की शुरुआत और उथल-पुथल

इंदिरा गांधी ने 1959 में धेबर के बाद कांग्रेस अध्यक्ष संभाला। लेकिन 1960 में नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस अध्यक्ष चुन लिए गए। इस दौरान कांग्रेस में काफी हलचल के दिन थे। इंदिरा गांधी से तमाम लोगों के मतभेद बढ़ रहे थे। नीलम संजीव रेड्डी को वो इंदिरा गांधी बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं। 1966 में जब कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव आया तो मोरारजी देसाई ने इंदिरा को चुनौती दी। लेकिन कामराज की मदद से इंदिरा चुनाव जीत गईं। लेकिन इसके बाद कांग्रेस दो गुटों में बंट गई। इससे इंदिरा की पार्टी पर पकड़ और भी मजबूत हो गई। इमरजेंसी के बाद कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई। लेकिन इंदिरा इस पद पर बनी रहीं और 1984 में जब उनकी हत्या हुई है, तब तक वो दोनों पदों पर थीं।
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इंदिरा गांधी

कांग्रेस बंटी, इंदिरा और पावरफुल

इंदिरा गांधी 1959, 1966-67, 1978-1984 तक कांग्रेस अध्यक्ष रहीं। बीच में के. कामराज 1964-67 तक अध्यक्ष रहे। लेकिन वो इंदिरा गांधी की ही पसंद थे। कांग्रेस जब तक बंटी नहीं थी, एस निजलिंगप्पा 1968-69 में कांग्रेस अध्यक्ष रहे। निजलिंगप्पा अलग हुए। असली कांग्रेस का दावा किया लेकिन तमाम नेता इंदिरा गांधी के साथ चले गए।  
इसके बाद इंदिरा गांधी के ही पसंद वाले कांग्रेस अध्यक्षों का बोलबाला रहा। इसके बाद जगजीवन राम 1970-71 में कांग्रेस अध्यक्ष बने। फिर डॉ शंकर दयाल शर्मा 1972-74 तक कांग्रेस अध्यक्ष बने रहे। 1975-77 में देवकांत बरुआ कांग्रेस अध्यक्ष बने और उसी दौरान बरुआ ही वो शख्स थे जिन्होंने इंदिरा गांधी को भारत का पर्याय (इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया) बता दिया था। यह इमरजेंसी का दौर था। इंदिरा गांधी की हत्या के 1985 से 1991 तक उनके बेटे राजीव गांधी कांग्रेस अध्यक्ष रहे। 1992-96 के बीच पी.वी. नरसिंह राव कांग्रेस अध्यक्ष रहे। लेकिन गांधी परिवार ने राव के कार्यकाल को कभी पसंद नहीं किया।

गांधी परिवार की पसंदः राव के बाद फिर गांधी परिवार की पसंद सीताराम केसरी 1996 में अध्यक्ष बने। हाल के वर्षों का इतिहास भी कम रोचक नहीं है। गांधी परिवार की ओर से सीताराम केसरी ने 1997 में शरद पवार और राजेश पायलट को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीता था। बाद में, केसरी को 5 मार्च, 1998 के सीडब्ल्यूसी प्रस्ताव के माध्यम से हटा दिया गया और सोनिया गांधी, जो पार्टी के अगस्त 1997 के कोलकाता सत्र में केवल एक साल पहले एआईसीसी की प्राथमिक सदस्य बनी थीं, को पद स्वीकार करने के लिए कहा गया था।

कांग्रेस के इतिहास से पता चलता है कि 1947 और 1964 के बीच और फिर 1971 से 1977 तक कांग्रेस अध्यक्ष ज्यादातर तत्कालीन प्रधानमंत्री द्वारा सुझाए गए ही उम्मीदवार थे।  

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सोनिया गांधी
सोनिया औपचारिक रूप से 6 अप्रैल, 1998 को एआईसीसी द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष चुनी गईं। बीच में सन् 2000 में चुनाव की नौबत आई। जब कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव हुआ तो स्व. राजीव गांधी के राजनीतिक सलाहकार रहे जितेंद्र प्रसाद ने सोनिया गांधी को चुनौती दी। जितेंद्र प्रसाद चुनाव हार गए। फिर 2017 में राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बने। 2019 में पार्टी के हारने के बाद उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया।इस समय सोनिया गांधी ही कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं।

22 साल से इंतजार

इस तरह पिछले 22 साल से कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए कोई मुकाबला नहीं हुआ। राहुल गांधी को 2017 में सर्वसम्मति से चुना गया था क्योंकि उनके पास कोई चुनौती नहीं थी। फिर उन्होंने पार्टी के हारने पर इस्तीफा दे दिया था। कांग्रेस पार्टी अभी भी गांधी परिवार के मोह से निकल नहीं पा रही है। इस बीच पार्टी में गुलाम नबी आजाद, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा के नेतृत्व में एक गुट उभरा जिसने पार्टी का चेहरा बदलने की वकालत की। लेकिन इसे विद्रोह माना गया। गुलाम नबी पार्टी छोड़कर जा चुके हैं और इन दिनों पीएम मोदी की तारीफ में जुटे हैं और जम्मू कश्मीर में अपनी खोई जमीन तलाश रहे हैं। 

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ऐसे में जब राहुल गांधी अनिच्छुक हैं तो कांग्रेस के पास मौका है कि वो अध्यक्ष पद का चुनाव होने दे। बेहतर होता कि वो अपनी पंसद के अशोक गहलोत को नहीं लाती। तब यह देखना दिलचस्प होता कि कांग्रेस में गांधी परिवार के बाद ऐसा कौन सा आम राय वाला नेता है जो अध्यक्ष बन सकता है। अगर अशोक गहलोत चुनाव लड़ते हैं और जीतते हैं तो उन्हें गांधी परिवार का ही शख्स माना जाएगा। 

कांग्रेस ने 2010 में हर पांच साल में आंतरिक चुनाव कराने के लिए अपने संविधान में संशोधन किया था। देखना है कि इस बार कोई मुकाबला होता है या नहीं। अभी अशोक गहलोत और शशि थरूर दो नाम उभरे हैं। नामांकन प्रक्रिया 24 सितंबर से शुरू होगी। अगर ये दोनों नामांकन दाखिल करते हैं तो मुकाबला होगा। शशि थरूर ने भी दो दिन पहले सोनिया से मुलाकात कर चुनाव लड़ने की अनुमति मांगी है। गांधी परिवार को थरूर को भी मौका देना चाहिए। कुल मिलाकर कांग्रेस देश की एक बड़ी पार्टी है और उसके अध्यक्ष का चुनाव कम महत्वपूर्ण नहीं है। हालांकि पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम का कहना है कि अध्यक्ष कोई भी बन जाए, राहुल गांधी ही कांग्रेस की मुख्य भूमिकाओं में रहेंगे। 

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क़मर वहीद नक़वी
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