ज्ञानवापी मस्जिद विवाद के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि वह वाराणसी की जिला अदालत के फैसले का इंतजार करेगी। सुप्रीम कोर्ट में अंजुमन इंतजामिया मस्जिद कमेटी की ओर से याचिका दायर की गई थी जिसमें हिंदू संगठनों द्वारा दायर मुकदमे पर सवाल खड़े किए गए थे। अब इस मामले में अगली सुनवाई अक्टूबर के पहले हफ्ते में होगी।
मस्जिद कमेटी की याचिका में वाराणसी की सिविल कोर्ट के द्वारा दिए गए सर्वे के आदेश को चुनौती दी गई थी। इससे पहले वाराणसी की सिविल कोर्ट में 5 हिंदू महिलाओं ने मुकदमा दर्ज कराया था जिसमें मस्जिद के अंदर देवी-देवताओं की पूजा की इजाजत की मांग की गई थी।
बता दें कि मई के महीने में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह पूरा मामला वाराणसी के जिला जज को ट्रांसफर कर दिया था। अदालत ने आदेश दिया था कि इस मामले में आई तमाम अर्जियों को भी जिला जज के पास ट्रांसफर किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने दो अन्य याचिकाओं पर भी सुनवाई से इनकार कर दिया। इसमें एक याचिका मस्जिद में कथित रूप से मिले शिवलिंग को लेकर दायर की गई थी और इस याचिका में शिवलिंग बताई जा रही आकृति की कार्बन डेटिंग और जीपीएस सर्वे कराने की मांग की गई थी। सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुझाव दिया कि इस मामले में कोई भी प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित नहीं रहनी चाहिए क्योंकि जिला अदालत ही आईपीसी के तहत ऑर्डर 7 रूल 11 पर और कमिश्नर की नियुक्ति को लेकर आई आपत्तियों के मामले में फैसला लेने के लिए सक्षम है।
मस्जिद कमेटी की ओर से पेश हुए सीनियर एडवोकेट हुजैफा अहमदी ने कहा कि वहां पर पूरे इलाके को सील कर दिया गया है जबकि पिछले कई सालों से यथा स्थिति बनाए रखी गई थी। लेकिन अब इस धार्मिक स्थान के चरित्र को पूरी तरह बदल दिया गया है।
उन्होंने अपनी दलील में कहा कि आयोग के गठन का आदेश पूरी तरह एकतरफा है और उन्हें अपनी आपत्तियों को दर्ज कराने की अनुमति नहीं दी गई। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या आप को आयोग को नियुक्त करने के संबंध में नोटिस नहीं दिया गया था, ऐसे में हम एक आदेश दे सकते हैं जिससे आपको इसकी इजाजत मिल जाएगी कि आप उन सभी आपत्तियों को उठा सकते हैं जो आप उठाना चाहते थे।
जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह निचली अदालत को निर्देश देंगे कि मस्जिद कमेटी की आपत्तियों पर फैसला किए बिना आयोग की रिपोर्ट पर भरोसा ना किया जाए। बेंच ने कहा कि वह ऑर्डर 7 रूल 11 के मामले में आने वाले फैसले का इंतजार करेगी। बेंच में जस्टिस पीएस नरसिम्हा भी शामिल थे।
इस मामले में सिविल जज सीनियर डिवीजन, वाराणसी के समक्ष याचिका दायर की गई थी जिसमें कहा गया था कि मुगल शासक औरंगजेब ने ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को ध्वस्त करने के बाद किया था। मुस्लिम पक्ष की ओर से ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत मांग की गई थी कि हिंदू पक्ष की ओर से दायर याचिका को खारिज कर दिया जाए। लेकिन पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने इससे इनकार किया था और कहा कि अब इस मामले को जिला जज के द्वारा ही देखा जाएगा।
उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस जगह पर शिवलिंग मिलने का दावा किया गया है उस जगह को पूरी तरह सील कर दिया जाए और मुसलिम पक्ष को वजू व नमाज से नहीं रोका जाए।
फव्वारे और शिवलिंग का विवाद
ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वे के बाद से हिंदू और मुसलिम पक्ष एक नई लड़ाई में उलझ गए हैं। हिंदू पक्ष का कहना है कि मस्जिद के अंदर से जो आकृति मिली है वह शिवलिंग की है जबकि मुसलिम पक्ष ने साफ कहा है कि यह फव्वारा है।
मुसलिम पक्ष ने कहा था कि शिवलिंग में कोई सुराख नहीं होता जबकि इस आकृति में एक सुराख है। फव्वारे और शिवलिंग के बीच चल रहे इस विवाद को लेकर सोशल मीडिया पर भी काफी जोरदार बहस हुई थी।
मई के महीने में यह मामला काफी गर्म रहा था और इस मामले में तमाम राजनेताओं के बयान भी आए थे। जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि केंद्र सरकार मुद्दों से ध्यान भटकाना चाहती है। जबकि एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि ज्ञानवापी मस्जिद है और कयामत तक मस्जिद ही रहेगी।
क्या है पूरा विवाद?
क्या है ज्ञानवापी मस्जिद विवाद, इसे जानना बेहद जरूरी है। चूंकि वापी का मतलब होता है कुआं इसलिए ज्ञानवापी का मतलब है ज्ञान का कुआं।
- ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में सबसे पहले वाराणसी की एक अदालत में याचिका दायर की गई थी और इस पर ही सर्वे का फैसला आया था। याचिका में कहा गया था कि हिंदुओं को श्रृंगार गौरी, भगवान गणेश, हनुमान और अन्य देवी-देवताओं की पूजा की इजाजत दी जाए। याचिका में कहा गया था कि मसजिद की पश्चिमी दीवार पर श्रृंगार गौरी की छवि है।
- याचिका में यह भी मांग की गई थी कि मस्जिद के प्रबंधकों को पूजा, दर्शन, आरती करने में किसी भी तरह के हस्तक्षेप से रोका जाए। यहां यह भी बताना जरूरी है कि 1991 तक यहां पर नियमित रूप से पूजा होती थी। लेकिन अब यहां साल में एक बार नवरात्रि के दिन ही पूजा का कार्यक्रम होता है।
अदालत पहुंचा मामला
1991 में ज्ञानवापी मस्जिद के मामले में स्थानीय पुजारियों ने वाराणसी की एक अदालत का दरवाजा खटखटाया और कहा कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को गिरा दिया था और ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण उसके ही आदेश पर हुआ था।
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण महाराजा विक्रमादित्य ने 2050 साल पहले कराया था। उन्होंने यह भी दावा किया था कि ज्ञानवापी परिसर में भगवान विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग मौजूद है।
- याचिकाकर्ताओं की मांग थी कि जिस जमीन पर ज्ञानवापी मस्जिद बनी है उसे हिंदुओं को दिया जाना चाहिए। उन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर पूजा की अनुमति देने की भी मांग की थी।
- वाराणसी की अदालत में से होता हुआ यह मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट तक गया और हाई कोर्ट ने 1993 में इस मामले पर स्टे लगा दिया।
इसके बाद साल 2019 के दिसंबर महीने में वाराणसी के एक वकील विनय शंकर रस्तोगी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण यानी एएसआई के द्वारा सर्वे कराए जाने की मांग की। अप्रैल, 2021 में दिल्ली की 5 महिलाओं - राखी सिंह, लक्ष्मी देवी, सीता साहू और दो अन्य ने वाराणसी की एक अदालत में याचिका दायर कर श्रृंगार गौरी, गणेश, हनुमान नंदी आदि देवी-देवताओं की हर दिन पूजा की अनुमति देने की इजाजत मांगी।
26 अप्रैल, 2022 को वाराणसी की एक अदालत ने मस्जिद में सर्वे कराए जाने का आदेश दिया। इस तरह पिछले तीन दशक से यह मामला अदालत में चल रहा है।
अपनी राय बतायें